क्या कहता है विज्ञान: कितना बड़ा होना चाहिए एक क्षुद्रग्रह कि वह सही में टकरा सके पृथ्वी से?
बहुत कम ही कम क्षुद्रग्रह धरती तक पहुंच पाते हैंछोटे आकार के क्षुद्रग्रह वायुमंडल में ही जल जाते हैं कई बड़े क्षुद्रग्रह पहले ही बिखर कर छोटे हो जाते हैं
अगर में बिना स्पेस में देख यह दावा कर दूं कि एक क्षुद्रग्रह (Asteroid) या उल्कापिंड (Meteorites) पृथ्वी की ओर आ रहा है तो आप क्या कहेंगे? क्या आप यह मानेंगे कि मैं सही कह रहा हूं या क्या वैज्ञानिक मुझसे सहमत होंगे? सही जवाब है हां. वैज्ञानिक मेरी बात की पुष्टि करने की भी कोशिश नहीं करेंगे. क्योंकि वह जानते हैं कि यह तो सामान्य बात है. पर क्या ऐसे पिंड पृथ्वी से टकराते हैं? क्या किसी क्षुद्रग्रह या उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने की कुछ जरूरी शर्तें हैं? और क्या इसमे कोई कम से कम आकार की शर्त भी शामिल है? जी हां, ऐसा है! आइए जानते हैं कि इस विषय पर क्या कहता है विज्ञान (What does science say)?
बहुत सी चीजें टकरा सकती हैं
पृथ्वी के पास से यूं तो बहुत से पिंड गुजरते हैं, इनमें उल्का (Meteors) और क्षुद्रग्रह (Asteroids) दोनों शामिल हैं. लेकिन पृथ्वी से वहीं टकराएगा जो सीधे पृथ्वी के ऊपर आएगा. दिलचस्प बात यही है कि इनके पृथ्वी से टकराने की संभावना कम होती हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये कभी पृथ्वी पर नहीं आते हैं. लेकिन पृथ्वी की ओर आने वाले अधिकांश पिंड छोटे उल्का होते हैं. क्योंकि ये पृथ्वी तक पहुंचते तो हैं, लेकिन वायुमंडल से टकराते ही जलने लगते हैं और धरती तक पहुंचने से पहले ही जल कर खाक हो जाते हैं.
कब टकराता है कोई पिंड?
किसी भी वस्तु का पृथ्वी से टकराव हो, इसके लिए जरूरी है कि वह पहले पृथ्वी के पास से ना गुजरे बल्कि ठीक उसके ऊपर आए जिससे वह सीधे उसके वायुमंडल के अंदर ही प्रवेश कर धरती की ओर आए. इनकी रफ्तार 11 से 72 किलोमीटर प्रति सेकेंड की होती है. स्पेस में तो इससे समस्या नहीं होती है, लेकिन वायुमंडल के पदार्थों से गुजरने से इनमें घर्षण पैदा होता है, जिससे बहुत अधिक गर्मी पैदा होती है जिससे उल्कापिंड भाप भी बन सकता है पूरी तरह से जल भी सकता है. इस दौरान पिंड के कई कण आयनीकृत हो जाते हैं जिससे धरती पर लोगों को जलता हुआ उल्का दिखाई देता है.
वायुमंडल में ही जलने के कारण अधिकांश क्षुद्रग्रह धरती तक नहीं पहुंच पाते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
महीन भी हो सकता है आकार
इसके बाद उसका आकार इतना बड़ा होना चाहिए कि वायुमडंल से गुजरते हुए जलने से पहले ही पृथ्वी की सतह पर पहुंच जाए. इसके लिए उसका एक निश्चित आकार का होना जरूरी है. लेकिन यहां एक और बात है ऐसा बड़े उल्कापिडों या क्षुद्रग्रहों के साथ तो सही है, लेकिन छोटे उल्कापिंड (Meteoroids) जिनका आकार करीब एक इंच का है वे धीमी गति से वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और ना तो जलते हैं और ना ही भाप बनते हैं. और ये धरती पर पहुंच जाते हैं, लेकिन केवल सूक्ष्म धूल के रूप में. यानी क्षुद्रग्रह के मामले में यह बात लागून नहीं.
निश्चित नहीं आकार
लेकिन बड़े उल्कापिंड (Meteorites) या क्षुद्रग्रह (Asteroids) के साथ बात अलग है. कुछ वस्तुएं पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरते हुए जल्दी जल जाती हैं तो कुछ धीरे धीरे जलेंगी. सब इस पर निर्भर करेगा कि वह वस्तु किस चीज की बनी है और उसके पदार्थ कितने ज्वलनशील हैं. ऐसे में कोई ऐसा पिंड जो धरती पर गिरे और इंसान उसे खोजे उसके लिए आकार निर्धारित करना मुश्किल है.
टकराव के लिए क्षुद्रग्रह का कम से कम 50 मीटर बड़ा होना जरूरी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि किसी क्षुद्रग्रह को धरती की सतह तक पहुंचना है तो उसका आकार कम से कम 50 मीटर के व्यास का होना चाहिए. ध्यान देने वाली बात ये है कि कई क्षुद्रग्रह जब धरती तक आने की कोशिश करते हैं यहां तक पहुंचते पहुचते कई टुकड़ों में बंट जाते हैं.ऐसे में यह भी जरूरी है कि क्षुद्रग्रह पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से पहले बिखर ना जाए नहीं तो टुकड़े पहले ही जल सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 22, 2024, 14:38 IST