क्या बेटियों से ज्यादा मुश्किल है बेटों की परवरिश? मां कैसे बच्चों को बना सकती है अपना दोस्त, जानें यहां


बॉलीवुड एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन हर ईवेंट पर बेटी आराध्या के साथ नजर आती हैं. कुछ लोग उन्हें इस बात पर ट्रोल करते हैं तो कुछ उनकी तारीफ. कुछ लोगों ने तो दोनों को बेस्ट फ्रेंड तक बना दिया है. इस मां-बेटी का रिलेशनशिप आम लोगों के लिए पेरेंटिंग का एक सबक हो सकता है. अगर मां बच्चे की दोस्त बन जाए तो पेरेंटिंग में आने वाली कई मुश्किलें आसानी से हल हो सकती हैं. लेकिन, कई मां जानती ही नहीं हैं कि वह अपने बच्चों की दोस्त कैसे बनें?

बच्चे की बेस्ट फ्रेंड नहीं, फ्रेंड बने
गुरुग्राम के डीजीएस काउंसलिंग सॉल्यूशन की फाउंडर और पेरेंटिंग काउंसलर डॉ. गीतांजलि शर्मा कहती हैं कि मां बच्चे की बेस्ट फ्रेंड नहीं फ्रेंड बने, क्योंकि बेस्ट फ्रेंड का मतलब है कि बच्चा जिस भी हाल में है, आप उसे वैसे ही स्वीकार कर रहे हैं और हमेशा उसकी नजरों में अच्छा रहना चाहते हैं. मां को ऐसे बैलेंस बैठना चाहिए कि वह बच्चे की मां का हक भी निभाए और दोस्त भी बने, क्योंकि आप हमेशा बच्चे की दोस्त नहीं बन सकती हैं. 

बच्चों को कंट्रोल न करें
कुछ पेरेंट्स बच्चे को अपने कंट्रोल में रखना चाहते हैं जो गलत है. हर मां को अपने बच्चे को ऐसे ट्रीट करना चाहिए जैसे कि वह एडल्ट हो. बच्चे को भी इज्जत चाहिए होती है, क्योंकि उसकी अपनी एक अलग पर्सनैलिटी है. उसका अपना एक अलग सोचने का तरीका है. अपनी पसंद और नापसंद है, इसलिए उसे फ्री छोड़ दें, लेकिन उसके साथ वक्त भी गुजारें. उसके साथ मूवी देखें, गेम्स खेले. उनसे अपने विचार साझा करें और उनसे उनके विचार जानें. इससे उनकी समझ विकसित होगी और वह आपके दोस्त बन पाएंगे.  

लड़का और लड़की में न करें भेदभाव
आजकल कहा जाता है कि लड़का और लड़की की पेरेंटिंग एक जैसी होनी चाहिए. मां को कभी बेटा और बेटी में भेदभाव नहीं करना चाहिए, लेकिन कई मां ऐसा करती हैं. लड़कियों को घर के कामों में लगा दिया जाता है और लड़कों को कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाती. दोनों को ही घर का काम सिखाना मां की जिम्मेदारी है. उन्हें लड़कों को भी खाना पकाना, कपड़े धोना, कमरा साफ करना सिखाना चाहिए. कई मां इस बात पर गर्व करती हैं कि हम लड़कियों को लड़कों की तरह बड़ा कर रहे हैं, लेकिन लड़कों को भी लड़कियों की तरह बड़ा करें. जिस दिन मां दोनों की ऐसी परवरिश करेंगी तभी समाज से जेंडर गैप दूर होगा.  

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मां को फ्रेंड के रूप में बच्चों का रोल मॉडल बनना चाहिए (Image-Canva)

लड़कों पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी
डॉ. गीतांजलि शर्मा कहती हैं कि हम जिस समाज में रह रहे हैं, वहां मां लड़कियों की परवरिश पर ज्यादा ध्यान देती हैं कि कहीं कुछ बेटी के साथ ऊंच-नीच ना हो जाए, जबकि लड़कियों से ज्यादा लड़कों की पेरेंटिंग ज्यादा मुश्किल होती है. हमारे समाज में मर्दों को स्ट्रॉन्ग कहा जाता है. मर्द रोता नहीं है, मर्द को दर्द नहीं होता… इस तरह की बातें लड़कों को एक्सप्रेसिव नहीं बनाती और वह अपने इमोशन को दबा देते हैं और बात भी नहीं करते. लड़कों में अगर टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का लेवल ज्यादा हो तो वह बहुत गुस्सैल बन जाते हैं. हर मां को अपने बेटे की परवरिश पर ज्यादा काम करना चाहिए.

बेटे को इज्जत करना सिखाएं
हर मां को बेटे को एंगर मैनेजमेंट सिखाना चाहिए. साथ ही उन्हें एक्सप्रेसिव बनाना चाहिए ताकि वह अपने दिल की बात बता सकें, वह खुलकर रो सकें. इसके अलावा उनमें दया की भावना पैदा करें क्योंकि कई बार लड़के हर चीज पर अपना हक जमाने लगाते हैं, खासकर लड़कियों पर. उन्हें लड़कियों की इज्जत करना सिखाएं, उन्हें बताएं कि लड़कियों का अपना वजूद होता है, वह इंसान होती हैं कोई चीज नहीं. लड़कों को लड़कियों की तरह केयरिंग और जिम्मेदार बनाएं. 

लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाएं
लड़कियों के हॉर्मोन्स उन्हें इमोशनल बनाते हैं इसलिए बेटियां मां से नजदीक जल्दी आती हैं. हर मां को अपनी बेटी की परवरिश ऐसे करनी चाहिए वह इनसिक्योर नहीं, बल्कि कॉन्फिडेंट और इंडिपेंडेंट बने. आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भर बनाना हर लड़की के लिए जरूरी है. लड़कियों को लड़कों से ज्यादा मूड स्विंग होते हैं और वह जल्दी रो पड़ती हैं इसलिए उन्हें मूड स्विंग मैनेजमेंट और इमोशंस पर कंट्रोल करना सिखाना चाहिए. ऐश्वर्या राय की पेरेंटिंग से हर मां एक प्रेरणा ले सकती हैं. वह हर इवेंट में अपनी बेटी को साथ ले जाती हैं, कभी उसे छुपाती या दबाती नहीं हैं. ऐसा कर वह अपनी बेटी को कॉन्फिडेंट बना रही हैं. उसके साथ वक्त गुजारती हैं जिससे दोनों के बीच बॉन्ड बन रहा है. वह बेटी को दुनियादारी सीखा रही हैं और जिंदगी बेहतर कैसे जी जा सकती हैं, उसके लिए मोटिवेट कर रही हैं.   

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बच्चे को गलती पर डांटने की बजाए उसे समझाना चाहिए (Image-Canva)

बच्चों से जितना बात, उतना अच्छा
पेरेंटिंग में बच्चे की हर उम्र अपने आप में चैलेंज है. लेकिन हर मां को अपने बच्चे से तभी बात शुरू कर देनी चाहिए जब वह प्रेग्नेंट हों. बच्चा गर्भ में भी बातें सुनता है. जन्म के पहले दिन से भी उससे लगातार बात करें. आपकी बातें वह धीरे-धीरे समझेगा लेकिन जब बड़ा होगा तो वह आपसे एक जुड़ाव और कंफर्ट महसूस करेगा. वह अपने आप अपनी बातें आपसे शेयर करने लगेगा. लेकिन कोई मां ऐसा नहीं पाई तो वह बच्चा जब बोलना सीखें तब उनसे अपनी बातें शेयर करें. उनसे सवाल पूछे कि उनका दिन कैसा गया, सबसे अच्छी चीज क्या लगती है, कौन सी चीजें उन्हें परेशान करती हैं. जब आप उनके सामने सवाल रखेंगे तो वह अपनी सोच बताएंगे और धीरे-धीरे आपसे कनेक्ट होने लगेंगे. 

 खुद में करें बदलाव, बच्चा भी बदल जाएगा
अधिकतर मां बच्चों को कोसती हैं, अपनी ख्वाहिशों को उन पर थापती हैं. वह चाहती हैं कि बच्चा उनके बनाए हर नियम कानून को माने लेकिन उन्होंने कभी खुद भी ऐसे रूल्स को फॉलो नहीं किए होंगे. हर मां को लगता है कि बच्चा उनकी बात सुने. डॉ. गीतांजलि शर्मा कहती हैं कि आपका व्यवहार ही बच्चे के लिए रोल मॉडल होता है. अगर आप बच्चे को बदलना चाहती हैं तो सबसे पहले वह बदलाव खुद में लाएं. बच्चा समझाने से ज्यादा आपकी जिंदगी से बेहतर सीखेगा. बच्चे को कभी मारे-पीटे नहीं. उससे बात करें और अपना उदाहरण दें.   

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