क्या है ISRO का मिशन SpaDeX, जिसे लॉन्च करने वाला भारत बना दुनिया का चौथा देश; जानिए इसकी खासियत
इसरो ने कहा है कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. स्पैडेक्स कक्षीय डॉकिंग में भारत की क्षमता स्थापित करने का एक महत्वाकांक्षी मिशन है, जो भविष्य में मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन और उपग्रह सेवा मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है. इसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होगा.
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देश का अपना स्टेशन – ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ का होगा निर्माण
अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग’ प्रौद्योगिकी भारत की अंतरिक्ष संबंधी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आवश्यक होगी, जिसमें चंद्रमा पर मानव को भेजना, वहां से नमूने लाना और देश के अपने अंतरिक्ष स्टेशन – भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन करना शामिल है. ‘डॉकिंग’ प्रौद्योगिकी का उपयोग तब भी किया जाएगा, जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए एक से अधिक रॉकेट प्रक्षेपण की योजना बनाई जाएगी.
इसरो ने कहा कि पीएसएलवी रॉकेट में दो अंतरिक्ष यान- स्पेसक्राफ्ट ए (एसडीएक्स01) और स्पेसक्राफ्ट बी (एसडीएक्स02) को एक ऐसी कक्षा में रखा जाएगा, जो उन्हें एक दूसरे से पांच किलोमीटर दूर रखेगी. बाद में, इसरो मुख्यालय के वैज्ञानिक उन्हें तीन मीटर तक करीब लाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद वे पृथ्वी से लगभग 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक साथ मिल जाएंगे.
लॉन्चिंग के 10 से 14 दिन बाद डॉकिंग अनडॉकिंग प्रक्रिया होने की उम्मीद
इसरो अधिकारियों ने बताया कि ये प्रक्रिया सोमवार को हुए प्रक्षेपण के लगभग 10 से 14 दिन बाद होने की उम्मीद है. ‘डॉकिंग’ और ‘अनडॉकिंग’ प्रयोगों के प्रदर्शन के बाद, दोनों उपग्रह दो साल तक अलग मिशन के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करना जारी रखेंगे. एसडीएक्स-एक उपग्रह हाई रेजोल्यूशन कैमरा (एचआरसी) से लैस है और एसडीएक्स-दो में दो पेलोड मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल (एमएमएक्स) पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर (रेडमॉन) हैं.
इसरो ने कहा कि ये पेलोड उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन और कक्षा में विकिरण पर्यावरण माप प्रदान करेंगे, जिनके कई अनुप्रयोग हैं. ‘स्पैडेक्स मिशन’ में ‘स्पेसक्राफ्ट ए’ में हाई रेजोल्यूशन कैमरा है, जबकि ‘स्पेसक्राफ्ट बी’ में मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर पेलोड शामिल हैं. ये पेलोड हाई रेजोल्यूशन वाली तस्वीर, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन आदि प्रदान करेंगे.
अंतरिक्ष में प्रयोग करेंगे स्टार्ट-अप और निजी संस्थान
सोमवार को दो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के बाद कुछ समय कक्षा में रहने वाले पीएसएलवी रॉकेट का चौथा चरण स्टार्ट-अप और निजी संस्थानों को बाहरी अंतरिक्ष में प्रयोग करने का अवसर देगा. भारत का अंतरिक्ष नियामक इन परियोजनाओं को वास्तविकता में बदलने में एक साझा कड़ी के रूप में उभर रहा है.
पीएसएलवी कक्षीय प्रयोग मॉड्यूल (पीओईएम) अंतरिक्ष में विभिन्न प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिए 24 प्रयोग करेगा. इनमें 14 प्रयोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की विभिन्न प्रयोगशालाओं से और प्रयोग 10 निजी विश्वविद्यालयों तथा ‘स्टार्ट-अप’ से संबंधित हैं.
स्टार्ट-अप और निजी विश्वविद्यालयों के उपकरणों के बीच एक साझा कड़ी भारत का अंतरिक्ष नियामक एवं प्रवर्तक भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अहमदाबाद मुख्यालय में स्थित तकनीकी केंद्र है.
इन-स्पेस के निदेशक राजीव ज्योति ने कहा, “हम उन्हें परीक्षण सुविधाओं के साथ-साथ किसी भी समस्या के समाधान के लिए सलाहकारों की मदद सहित सभी सहायता देते हैं.”
बाहरी अंतरिक्ष में बीज उगाने की कोशिश
बाहरी अंतरिक्ष में बीज के अंकुरण का प्रदर्शन, वहां मौजूद मलबे को पकड़ने के लिए एक रोबोटिक हाथ और हरित प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण इसरो के पीएसएलवी रॉकेट के चौथे चरण ‘पीओईएम-4′ से संबंधित नियोजित कुछ प्रयोग हैं.
इसरो ने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) द्वारा विकसित कक्षीय पादप अध्ययन के लिए कॉम्पैक्ट अनुसंधान मॉड्यूल (क्रॉप्स) के हिस्से के रूप में सक्रिय ताप नियंत्रण के साथ बंद बॉक्स जैसे वातावरण में बीज के अंकुरण और पौधे के पोषण से लेकर दो पत्ती वाले चरण तक लोबिया के आठ बीज उगाने की योजना बनाई है.
एमिटी विश्वविद्यालय, मुंबई द्वारा विकसित एमिटी अंतरिक्ष पादप प्रयोग मॉड्यूल (एपीईएमएस) के तहत सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण वातावरण में पालक के विकास का अध्ययन करने की योजना है. वहीं वीएसएससी द्वारा विकसित ‘डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर’ अंतरिक्ष वातावरण में ‘रोबोटिक मैनिपुलेटर’ से बंधे हुए मलबे को पकड़ने का प्रदर्शन करेगा.