‘खुद को अनाथ न समझो, मैं तुम्‍हारा पिता’, PM मोदी ने पोलैंड पहुंच याद दिलाई 80 साल पुरानी घटना, गुजरात से कनेक्‍शन


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को पोलैंड पहुंच गए. एयरपोर्ट पर पोलैंड के डिप्‍टी पीएम उनकी अगवानी के ल‍िए खड़े थे. जैसे ही पीएम मोदी वारसॉ के एक होटल पहुंचे, वहां मौजूद सैकड़ों भारतीयों ने उनका स्‍वागत क‍िया. सम्‍मान में भारत माता की जय के नारे लगाए. कुछ ही देर बाद वे नवानगर के जाम साहब स्मारक पहुंच गए. ये वो जगह है, जिसका गुजरात से खास कनेक्‍शन है. यह स्‍मारक ज‍िस भारतीय महाराजा के नाम पर बना है, उन्‍होंने पोलैंड के 1000 अनाथ बच्‍चों को पेरेंट्स की तरह पाला था. तब उन्‍होंने बच्‍चों से कहा था, ‘खुद को अनाथ मत समझो, मैं तुम्‍हारा पिता हूं.’ पीएम मोदी ने उस जगह जाकर 80 साल पुरानी घटना याद दिला दी. इसके बारे में जानकर आप भी गर्व से भर उठेंगे.

वारसॉ के नवानगर में बना जाम साहब स्मारक गुजरात के नवानगर (अब जामनगर) के पूर्व महाराजा जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जाडेजा को समर्पित है. वारसॉ के लोग उन्‍हें बेहद सम्‍मान की नजर से देखते हैं. यहां उन्‍हें ‘सबसे अच्‍छे महाराजा’ (Good Maharaja Square) के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे एक जबरदस्‍त कहानी है, जो बताती है क‍ि भारतीय कहीं भी रहें, अपने मानवीय मूल्‍य और छाप छोड़कर ही आते हैं.

जाम साहब कौन थे?
जाम साहब का जन्‍म 1895 में सरोदा में हुआ था. उन्‍होंने राजकुमार कॉलेज, मालवर्न कॉलेज और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से पढ़ाई की. 1919 में उन्‍हें ब्रिटिश सेना में सेकेंड लेफ्ट‍िनेंट बना दिया गया. करीब 20 साल तक उन्‍होंने सेना में सेवाएं दी. राजपूताना राइफल्स से जुड़े और लेफ्टिनेंट-जनरल बने. अपने चाचा और प्रसिद्ध क्रिकेटर केएस रणजीत सिंहजी की मौत के बाद जाम साहब 1933 से 1948 तक नवानगर के महाराजा रहे. राजकुमार कॉलेज राजकोट की गवर्निंग काउंसिल के सबसे लंबे वक्‍त तक अध्‍यक्ष रहे.

पोलैंड से कैसे बना रिश्ता?
कहानी तकरीबन 80 साल पुरानी है. सेकेंड वर्ल्‍ड वॉर के दौरान अनाथ हुए पोलैंड के लगभग 1000 यहूदी बच्‍चों को जाम साहब साइबेर‍िया से भारत लेकर आए. उनके ल‍िए महल के दरवाजे खोल दिए. इन बच्‍चों की अभ‍िभावक के रूप में सेवा की. इन बच्‍चों को पोलैंड से सोवियत यूनियन ने साइबेर‍िया के रिफ्यूजी कैंप में डाल दिया था. जाम साहब ने बच्‍चों को देखा तो करुणा के भाव से भर गए. उनके ल‍िए सबकुछ करने का संकल्‍प ल‍िया. आज के जामनगर में एक कैंप लगाया. इसमें स्‍कूल, अस्‍पताल, लाइब्रेरी और बहुत सारी सुविधाएं मुहैया कराई. महाराज खुद भी बच्‍चों से मिलने जाते थे. उनके लिए आर्ट स्‍टूडियो, थिएटर ग्रुप्‍स और कल्‍चरल सेंटर तक बनवाया. इतना ही नहीं, ऐसे उन्‍होंने 5000 और बच्‍चों की मदद की.





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