खेतों में इन सफेद फूलों का दिखना, प्रकृति का बड़ा संकेत, त्रेता युग में प्रभु राम ने बताया था रहस्य
सागर: जब मौसम विभाग नहीं था, तब किसान मानसून का अंदाजा कैसे लगाते थे? इस सवाल का जवाब प्रकृति में ही छिपा है. प्रकृति में कई ऐसी चीजें हैं जो आज भी मौसम की सटीक जानकारी देती हैं. इसके पहले आपने कुछ पक्षियों के बारे में सुना होगा, जिनके अंडे से बारिश का अंदाजा लगाया जाता था, लेकिन आज हम आपको एक घास के बारे में बताते हैं, जिसे आपने देखा तो खूब होगा, लेकिन उसकी खासियत से अनजान होंगे. इस घास का वर्णन स्वयं प्रभु राम ने त्रेता युग में भी किया है.
टेक्नोलॉजी कितनी भी सुदृढ़ हो जाए, लेकिन प्रकृति के आगे वो बेबस ही दिखती है. प्रकृति की ताकत का बेजोड़ नमूना कांस के पौधे हैं. खेतों में पाई जाने वाली कांस की घास से दादी-नानी के जमाने से लोग बारिश का अनुमान लगाते आ रहे हैं. आज भी लोग इसको देखकर अनुमान लगाते हैं. कांस की घास में सफेद फूल बारिश के बूढ़े होने का संकेत हैं. इसका मतलब अब मानसून के जाने का समय है. अब बारिश वैसी नहीं होगी, जैसी अभी तक हो रही थी, अब 10-15 मिनट की कहीं-कहीं पर बारिश होगी.
भगवान राम ने किया था इसका जिक्र
सागर की सनोदा की द्रोपदी बाई बताती हैं कि कांस घास के फूल से बारिश होने का अनुमान त्रेता युग से लगाया जाता है. रामायण में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि जब रावण माता सीता को लंका ले गया था, तब भगवान उनकी तलाश में भटकते हुए ऋषिमुख पर्वत पर पहुंच गए थे. वहां उन्होंने बाली का वध करके सुग्रीव को राज्य दिलाया था. सुग्रीव ने वादा किया था कि बारिश खत्म होते ही वे माता सीता को ढूंढने में मदद करेंगे, लेकिन सुग्रीव राज्य सत्ता में वादा भूल गए. तब भगवान ने लक्ष्मण से चर्चा करते हुए कहा था कि लक्ष्मण अब तो कांस में फूल आ गए हैं, बारिश बूढ़ी हो गई है. शरद ऋतु आने वाली है, लेकिन महाराज सुग्रीव ने अभी तक कोई खबर नहीं ली है. तुम उनको वादा याद दिलाओ.
गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं
गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए लिखा है ‘बरषा बिगत सरद रितु आई, लछमन देखहु परम सुहाई, फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई’ अर्थात हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई. फूले हुए कांस से सारी पृथ्वी छा गई. मानो वर्षा ऋतु ने (कांस रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है.
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FIRST PUBLISHED : September 10, 2024, 15:33 IST