‘गई भैंस पानी में’ बोलते तो खूब होंगे, आखिर क्या होता है इसका मतलब, क्यों बना ये मुहावरा?


बचपन से ही हम तमाम ऐसे मुहावरे और कहावतें खूब सुनते आए हैं, जिन्हें हम भी रोज़ाना की ज़िंदगी में इस्तेमाल करते हैं. कई बार हम ये तो जानते हैं कि इन्हें कहां इस्तेमाल करना है लेकिन इन कहावतों से जुड़े किस्से नहीं जानते. कुछ ऐसी ही कहावतों में शुमार है – ‘गई भैंस पानी में’. आखिर भैंस के पानी में जाने से ऐसा क्या होता है, जो ये मुहावरा बन गया.

‘गई भैंस पानी में’ हिंदी भाषा बहुत ही लोकप्रिय कहावत है. आपने शायद ही कभी सोचा होगा कि क्यों ये कहावत बनाई गई. आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे और ये भी समझाएंगे कि इस कहावत को बनाया क्यों गया. इंटरनेट पर भी कई लोगों ने इसके पीछे का किस्सा जानने की कोशिश की है. तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों बनी ये कहावत.

क्या है इस मुहावरे का मतलब?
हम सभी को पता कि भैंस एक पालतू और आज्ञाकार जानवर है. वैसे तो ये अपने मालिक के कहने को मानकर वैसा ही करती है, जैसा वो कहते हैं. यही वजह है कि भैंसों का पूरा झुंड भी चराना हो तो ज्यादा मुश्किल नहीं आती है. हालांकि एक परिस्थिति में ये ज़रा मुश्किल हो जाता है, जब भैंस किसी जलभराव, तालाब या सूख रही नदी में चली जाती है. दरअसल भैंस के शरीर में गर्मी बहुत ज्यादा होती है. ऐसे में वो अगर एक बार पानी में उतर जाए, तो घंटों वहीं रहने उसे पसंद होता है. ऐसी परिस्थिति में उसे मर्ज़ी के खिलाफ पानी से बाहर निकाल पाना मालिक के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है.

कहां इस्तेमाल होता है ये मुहावरा?
अब तक तो आप समझ गए होंगे कि भैंस के पानी में जाने से क्या होता है. ऐसे में जब कोई काम हमारे वश से बाहर होने लगता है और उसे काबू करना लगभग नामुमकिन सा लगने लगता है तो इसी कहावत का इस्तेमाल किया जाता है. आमतौर पर कोई बड़ी परेशानी आ जाए या सारी उम्मीदें अचानक समाप्त होने लगें, तो ‘गई भैंस पानी में’ कहा जाता है.

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