घर-परिवार छोड़…65 साल से खेत में रह रहा यह बुजुर्ग, कभी नहीं हुआ बीमार, 90 साल की उम्र में भी है फिट


Agency:News18 Uttar Pradesh

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Saharnpur News: ईश्वर दत्त बताते हैं कि कुछ लोग अपने परिवार की सभी जिम्मेदारियों से फ्री होकर पहाड़ों पर जाकर अपना संयासी जीवन गुजारते हैं. लेकिन उन्होंने पहाड़ों पर नहीं बल्कि अपने ही बाग में रहकर अपना जीवन सं…और पढ़ें

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65 साल से अपने घर नहीं गया यह बुजुर्ग खेत में ही काट रहा अपना पूरा जीवन

हाइलाइट्स

  • 90 साल के ईश्वर दत्त 65 साल से खेत में रह रहे हैं.
  • ईश्वर दत्त ने अपने खेत में संयासी जीवन चुना.
  • 90 साल की उम्र में केवल एक बार बीमार हुए हैं.

अंकुर सैनी/सहारनपुर: जीवन का दस्तूर है एक न एक दिन सबको जाना है. कोई अपना साधारण जीवन जी कर जाता है, तो कोई संयासी बन. ऐसे ही सहारनपुर के गांव अध्याना के रहने वाले ईश्वर दत्त हैं, जो कि पिछले 65 साल से अपने खेत में रहकर सन्यासी की तरह जीवन काट रहे हैं. ईश्वर दत्त का जन्म 1934 को गांव अध्याना के एक जमींदार परिवार में हुआ था. उनको शुरू से ही खेतों में हरियाली के बीच रहना काफी पसंद था. बड़े होने के बाद भी उन्होंने हरियाली के बीच रहना पसंद किया. ईश्वर दत्त की शादी हुई और शादी के बाद बच्चे. बच्चे बड़े हो गए बच्चों की ईश्वर दत्त ने शादी कर दी और अपनी जिम्मेदारियों  से फ्री होकर दोबारा से हरियाली के बीच अपने जीवन को जीने के लिए पहुंच गए.

ईश्वर दत्त बताते हैं कि कुछ लोग अपने परिवार की सभी जिम्मेदारियों से फ्री होकर पहाड़ों पर जाकर अपना संयासी जीवन गुजारते हैं. लेकिन उन्होंने पहाड़ों पर नहीं बल्कि अपने ही बाग में रहकर अपना जीवन संयासी के रूप में जीना पसंद किया. ईश्वर दत्त बताते हैं कि वह पिछले 65 साल से खेत में रहकर ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं. ईश्वर दत्त ने अंग्रेजों का शासन काल भी देखा है. ईश्वर दत्त बताते हैं कि उनके इस खेत पर अंग्रेज शिकार करने आया करते थे. कई बार अंग्रेजों के शिकार से उन्होंने पशुओं को बचाया. 90 साल के उम्र में ईश्वर दत्त मात्र एक बार बुखार की चपेट में आए हैं.

ईश्वर दत्त 90 साल की उम्र में मात्र एक बार हुए हैं  बीमार

गांव अघ्याना के ईश्वर दत्त ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि सन 1934 को उनका जन्म गांव अध्याना के जमींदार परिवार में हुआ था. उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन काल था. अंग्रेज उनके खेतों पर शिकार करने आया करते थे. कई बार अंग्रेजों से उन्होंने पशुओं को बचाया, तो कई बार अंग्रेजों से उनका सामना भी हुआ. ईश्वर दत्त बताते हैं कि बचपन से ही उनको हरियाली काफी पसंद थी. छोटी उम्र में शादी हो जाने के बाद भी वह खेती करना ही पसंद करते थे. ईश्वर दत्त ने अपने बच्चों की शादी की और दोबारा से इस हरियाली को ही पसंद किया. ईश्वर दत्त बताते हैं कि वह 65 साल से अपने घर नहीं गए हैं. खेत में रहकर ही अपना संयासी जीवन काट रहे हैं. कुछ लोग अपनी जिम्मेदारियां से निकलने के बाद पहाड़ों पर संयासी बनकर बैठ जाते हैं, लेकिन उन्होंने पहाड़ों पर नहीं बल्कि अपने ही गांव के बाग में रहना पसंद किया. वह अपने खेत में रहकर सुबह शाम भजन करते हैं और अपने हाथों से ही बना खाना खाते हैं. ईश्वर दत्त का कहना है कि अंग्रेजी शासन काल के समय यहां पर बहुत बड़ा जंगल हुआ करता था. उन्होंने अपने हाथों से आम के बाग में एक-एक पेड़ लाकर लगाया है. जबकि उस समय पानी भी बहुत दूर से लाना पड़ता था. ईश्वर दत्त के पास चारों वेद, पुराण मौजूद हैं. साथ ही उनको टीवी में समाचार देखना काफी पसंद है. खाने में उनको गाजर का हलवा काफी पसंद है. खास बात यह है कि ईश्वर दत्त अपनी 90 साल की उम्र में सिर्फ एक बार बीमार हुए हैं. उस समय भी उनको हल्का बुखार आया था. 90 साल की उम्र में भी ईश्वरदात मार्केट तक पैदल चले जाते हैं.

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65 साल से खेत में रह रहा यह 90 साल का बुजुर्ग, कभी नहीं हुआ बीमार



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