चित्रकूट की पहाड़ियों में मिल रहे हैं दुर्लभ चित्र और पत्थर से बने औजार, जानें क्या है इसके पीछे का राज
विकाश कुमार/चित्रकूट: उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले का भगवान राम से गहरा जुड़ाव है. भगवान राम ने अपने वनवास काल का समय जंगल और पहाड़-पहाड़ियों में घूमकर बिताया है. उस समय उन्होंने झारखंड के कई इलाकों से लेकर चित्रकूट तक की धरती में अपने कदम रखे. भगवान राम के चलते चित्रकूट का अलग ही धार्मिक महत्व है. यहां भगवान राम के समय की कई चीजें मौजूद हैं. यहां के पहाड़, गुफा और नदियों का आदि काल से अब तक महत्व है. हालांकि, कई प्रचीन चीजें देखरेख के अभाव में नष्ट होती जा रही हैं लेकिन यहां आज भी उस दौर से जुड़े शैलचित्र और अन्य चीजें बीच-बीच में मिलती रहती हैं.
पाठा के जंगलों में मिल रहे शैलचित्र
अब लगातार चित्रकूट जनपद में मानिकपुर के आस-पास भी शैलचित्र मिल रहें है, इन शैलचित्रों में सामूहिकता का भाव दर्शाया गया है. इसके साथ ही विंध्यघाटी में मिले अब तक के पुरापाषाणकाल के शैलचित्र से पूरी तरह मिलान कर रहें है. पहले भी चित्रकूट के सरहट में शैलचित्र मिल चुके हैं लेकिन पुरातत्व प्रेमी अनुज हनुमत और उनकी टीम ने इस स्थल के आस पास शैलचित्रों के कई नए और वृहद पैनल खोज निकाले हैं. फिलहाल पुरातत्व विभाग और इतिहासकारों ने अब तक जो निष्कर्ष निकाला है उससे यह शैल चित्र पुरापाषाण काल की तरफ इशारा कर रहें है.
मानिकपुर की घाटी और इलाहाबाद की बेलन घाटी भौगोलिक दृष्टि से भी समान है. जिससे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि चित्रकूट में पुरापाषण कालीन संस्कृति नहीं पनपी होगी. हालांकि यह शोध का विषय है फिर भी शैलचित्रों के अंकन और सामूहिकता यहां पर पुरापाषाण युग की संस्कृति के होने का संकेत देते हैं. पुरापाषण काल के अब तक जितने भी शैलचित्र प्रमाणित हो चुके हैं उनमें लोग सामूहिकता में देखे जा सकते हैं. इन शैल चित्रों में लोग अपनी भावनाएं प्रदर्शित करते थे जैसे आखेट करना, पालतू जानवरों को प्रदर्शित करना, भोजन की तलाश में टहलना आदि.इसके साथ-साथ चित्रकूट में युद्ध से जुड़े भी दीवारों पर बने कई शैलचित्र मिले हैं. यानी शैलचित्रों को लेकर जिस तरह की निरंतरता और विभिन्नता चित्रकूट में मिलती है यह अपने आप में रोचक है.
चित्रकूट में भगवान राम ने काटा था वनवास
चित्रकूट में प्रभु श्रीराम, सीता और लक्ष्मण संग साढ़े ग्यारह वर्षों का वनवास काटने के लिए चित्रकूट का चयन करने के प्रमाण यहां की आध्यात्मिक और प्राचीनता में रचे बसे हैं। जगह.जगह इसके प्रमाण मिलते भी हैं। जिम्मेदारों की उपेक्षा और अपनी धरोहरों के प्रति उदासीनता इन पर भारी पड़ रही है। चौरासी कोस की परिक्रमा में ये अवशेष बिखरे हैं, जिन्हें संजोने की जरूरत है।
FIRST PUBLISHED : June 15, 2024, 23:52 IST