चिराग पासवान क्यों दिखा रहे ‘लात’ का दम, पिता रामविलास पासवान का नाम लेकर किस राजनीति का कर रहे इशारा?


हाइलाइट्स

चिराग पासवान ने पिता रामविलास पासवान की तरह मंत्री पद को लात मारने की बात कही. चिराग के बयान से राजनीति गरमाई, आखिर किस बात का संकेत कर रहे हैं लोजपा प्रमुख?

पटना. ”चाहे मैं किसी भी गठबंधन में रहूं, किसी भी मंत्री पद पर रहूं, जिस दिन मुझे लगेगा कि संविधान के साथ और आरक्षण के साथ खिलवाड़ हो रहा है तो मैं उसी वक्त मंत्री पद को लात मार दूंगा जैसे मेरे पिता ने मारा था.” बिहार की राजधानी पटना में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का दिया गये इस बयान ने राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति में खलबली मचा दी है. राजनीति गलियारों में इस बात की चर्चा हो रही है कि चिराग पासवान ने ऐसी चेतावनी क्यों दी ? क्या यह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में उभरते आंतरिक मतभेदों के संकेत हैं या आरक्षण को लेकर वास्तव में उनकी राजनीतिक चिंता?

पटना के श्रीकृष्ण स्मारक हॉल में अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ की तरफ से अभिनंदन सम्मान समारोह सह संगठन समीक्षा बैठक में अपने संबोधन में चिराग पासवान ने कहा, ”आरक्षण के मामले में कोर्ट ने कानून में बदलाव की बात की थी, जिसका विरोध मेरे पिता ने किया था. उस वक्त भी आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मेरे पिता की बात सुनी, इसके लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूं. लेकिन, जिस दिन चिराग पासवान को लगेगा कि गठबंधन में मेरे लोगों के साथ अन्याय हो रहा है, या फिर हमलोगों की बातों को सुना नहीं जा रहा है तो फिर मेरे पिता ने भी एक मिनट नहीं सोचा था मंत्री पद को लात मारने से पहले, मुझे भी नहीं लगेगा.”

पीएम मोदी के ‘हनुमान’ के तेवर तल्ख क्यों?
बता दें कि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान स्वयं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ कहकर संबोधित करते रहे हैं. लेकिन, उन्होंने खुद ही आरक्षण और संविधान से छेड़छाड़ होने पर मंत्री पद छोड़ने की चेतावनी दी है. अब उनका यह बयान ऐसे समय पर आया है जब राजनीति के गलियारों में संविधान संशोधन और आरक्षण को लेकर कई चर्चाएं हो रही हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि चिराग पासवान को अब ऐसी चेतावनी क्यों दे रहे हैं. चिराग पासवान ने जिस अंदाज और तेवर में यह बयान दिया है इससे सियासी जानकार कई मायने निकाल रहे हैं और इसके संकेतों को भी समझ रहे हैं.

चिराग के बयान पर क्या कहते हैं जानकार
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि चिराग पासवान जिस समाज से आते हैं इसके लिए उतना करना उनके लिये जरूरी भी है और मजबूरी भी. पिछले दिनों जब आरक्षण के भीतर क्रीमीलेयर के वर्गीकरण का निर्णय सुप्रीम कोर्ट से आया था तो चिराग पासवान ने इस पर ढीली प्रतिक्रिया दी थी. इसको लेकर उनके समर्थक दलित वोटरों में आक्रोश भी था और उनसे इस मसले पर सवाल भी पूछे जाने लगे थे. खास बात यह है कि किसी का महत्व और कद तभी तक राजनीति में बना रहता है जब समर्थक साथ हों. ऐसे में चिराग पासवान के लिए ऐसा कहना अनिवार्य था और उन्होंने ऐसा ही किया और अपने समर्थकों को साथ रखने की रणनीति को आगे बढ़ाया.

चाचा बन रहे चिराग की बड़ी चुनौैती
रवि उपाध्याय कहते हैं, चिराग पासवान के सामने एक चुनौती यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर दलित वोटरों का झुकाव थोड़ा कम हुआ लगता है. ऐसे में दलित समुदाय चिराग पासवान का साथ छोड़ देगा तो उनकी पूछ एनडीए में भी कहां रहेगी. उनके सामने दूसरी चुनौती उनके चाचा और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस बने हुए हैं. वह जिस तरीके से आक्रामक हैं यह चिराग के लिए टेंशन है. दो दिन पहले ही रामविलास पासवान की ‘दलित सेना’ की मीटिंग पशुपति कुमार पारस ने बुलाई थी. जाहिर तौर पर विरासत और सियासत की दावेदारी के बीच चिराग पासवान ने भी अपनी ओर से कमर कसनी शुरू कर दी है और अपने वोटरों को एड्रेस कर रहे हैं.

चिराग के बयान के सियासी मायने हैं!
हालांकि, चिराग पासवान के बयान के दूसरे मायने यह भी निकाले जा रहे हैं कि वह एनडीए में दबाव की राजनीति के लिए भी ऐसा कर रहे हैं. दरअसल, चिराग पासवान अपनी पार्टी का विस्तार चाहते हैं और झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर चिराग पासवान लगातार झारखंड का दौरा कर रहे हैं. वह चाहते हैं कि झारखंड में बीजेपी के साथ उनका गठबंधन हो जाए. लेकिन, बीजेपी की तरफ से कोई अभी तक बहुत कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है. दूसरी ओर वे खुद ही कई बार झारखंड में सभी सीटों पर चुनाव की तैयारी की बात कर चुके हैं. अब अगर झारखंड में एनडीए से उनका गठबंधन नहीं होता है तो मंत्री पद से इस्तीफा देने की बात गठबंधन में दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है.

सियासी स्पेस बनाए रखने की जद्दोजहद
चिराग पासवान के तेवर को लेकर राजनीति के जानकार एक वजह यह भी बताते हैं कि वह अपने पिता रामविलास पासवान के नाम की पहचान से राजनीति में हैं. उनके पिता को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता रहा है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वह अपने लिए महागठबंधन की ओर भी एक खिड़की खोले हुए रखना चाहते हैं जिससे राजनीति में उनका स्पेस बना रहे.

रामविलास पासवान ने क्या किया था?
बता दें कि रामविलास पासवान ने 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था. उन्होंने यह कदम गुजरात में हुए दंगों के बाद उठाया था. गुजरात दंगों के दौरान केंद्र सरकार की निष्क्रियता और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से असंतुष्ट होकर पासवान ने अपना विरोध दर्ज कराया था. उन्होंने इस मुद्दे पर वाजपेयी सरकार का साथ छोड़ने का निर्णय लिया.

पीके फैक्टर पर चिराग की नजर
बिहार में 2 अक्टूबर को एक नई राजनीतिक पार्टी प्रशांत किशोर उर्फ पीके की जनसुराज लॉंच होने वाली है. खास बात यह है कि पीके ने यह घोषणा की है कि उनकी पार्टी का पहला अध्यक्ष कोई दलित होगा. जाहिर तौर पर पीके जिस राजनीति पर बढ़ रहे हैं उसमें उनका फोकस मुस्लिम और दलित कंबिनेशन पर है. ऐसे में चिराग पासवान किसी मुद्दे पर आखिर दलितों के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ने को मजबूर हैं.



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