छोटे से अस्पताल में रीढ़ की दुर्लभ सर्जरी, 1CM की जगह में 3CM लंबी गांठ निकाली! एक दिन में ही चलने लगी बुजुर्ग


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Rare Spine Surgery: यह एक दुर्लभ सर्जरी थी, जिसके लिए धर्मस्थल धर्माधिकारी डॉ. डी वीरेंद्र हेगड़े और उनकी पत्नी ने अस्पताल आकर बधाई दी.

सर्जरी में 1CM की जगह में 3CM लंबी गांठ निकाली! एक दिन में ही चलने लगी बुजुर्ग

दक्षिण कन्नड़: सोचिए, आपकी रीढ़ की हड्डी में बहुत दर्द हो और डॉक्टर कहें कि सर्जरी के बिना कोई चारा नहीं. डर लगेगा न? यही हाल था 65 साल की धर्मम्मा का, जो अपनी तकलीफ से बेहाल होकर दक्षिण कन्नड़ जिले के उजिरे के SDM अस्पताल पहुंची थीं. आमतौर पर रीढ़ की हड्डी की सर्जरी सुनते ही दिमाग में बड़े-बड़े चीरे, महीनों का बेड रेस्ट और ढेरों तकलीफें घूमने लगती हैं, लेकिन यहां कहानी कुछ और थी. एसडीएम अस्पताल के डॉक्टर महेश और डॉ. शतानंद प्रसाद राव की टीम ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही है.

एक सेंटीमीटर का चीरा, तीन सेंटीमीटर की गांठ गायब
बता दें कि धर्मम्मा की रीढ़ में एक गांठ थी, जिसे निकालने के लिए आमतौर पर बड़ा चीरा और लंबी सर्जरी करनी पड़ती, लेकिन यहां हुई एंडोस्कोपिक सर्जरी. यानी सिर्फ एक सेंटीमीटर का चीरा, न के बराबर खून की हानि और बिना किसी नस को नुकसान पहुंचाए तीन सेंटीमीटर की गांठ बाहरय

सर्जरी के महज कुछ घंटों बाद ही धर्मम्मा फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो गईं. जी हां, जिस सर्जरी के बाद मरीज महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहते हैं, वहां इस छोटे से ऑपरेशन ने कमाल कर दिया.

दुनिया ने नहीं कर दिखाया, उजिरे ने कर दिखाया
इस सर्जरी की एक और खासियत थी – ड्यूरल हानि (dural loss) को टांके लगाकर ठीक करना, जो अब तक दुनिया के किसी अस्पताल में संभव नहीं हो पाया था, लेकिन हमारे अपने उजिरे के एसडीएम अस्पताल ने यह कर दिखाया.

यह एक दुर्लभ सर्जरी थी, जिसके लिए धर्मस्थल धर्माधिकारी डॉ. डी वीरेंद्र हेगड़े और उनकी पत्नी ने अस्पताल आकर बधाई दी. उन्होंने सफल सर्जरी करने वाले डॉ. महेश और डॉ. शतानंद प्रसाद राव को बधाई दी. साथ ही रोगी धर्मम्मा को भी हेगड़े दंपति ने सम्मानित किया.

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छोटे से अस्पताल में यह दुर्लभ सर्जरी
अब तक आपने महंगे अस्पतालों में लाखों-करोड़ों की लागत वाली सर्जरी के बारे में सुना होगा, लेकिन उजिरे के इस छोटे से अस्पताल में महज एक लाख रुपये में यह दुर्लभ सर्जरी की गई और वह भी पूरी तरह सफल. आमतौर पर रीढ़ की हड्डी की सर्जरी के बाद चलना-फिरना तो दूर, ठीक से बैठ पाना भी चुनौती बन जाता है, लेकिन 65 वर्षीय धर्मम्मा खुद अस्पताल आईं और डॉक्टरों को धन्यवाद कहकर गईं.

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