जंगल में अस्तित्व के लिए दंगल, कहानी पुरानी, तड़का नया – News18 हिंदी


Tamil movie Rooban Review: मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु सिनेमा ने शुक्रवार 19 अप्रैल को कोई बड़ी फिल्म रिलीज नहीं की हैं. इन क्षेत्रीय भाषा के दर्शकों को अब अगले हफ्ते 26 अप्रैल तक का इंतजार करना होगा. जबकि तमिल सिनेमा ने शनिवार यानी 20 अप्रैल को चार बड़ी फिल्में रिलीज की हैं. ये हैं-सस्पेंस थ्रिलर-फाइंडर-प्रोजेक्ट 1 (Finder-Project 1), क्राइम थ्रिलर-सिरागन (Siragan), ड्रामा थ्रिलर- रूबन(Rooban) और हॉरर थ्रिलर-नेवर एस्केप(Never Escape).

साउथ में तमिल सिनेमा का अपना एक प्रभाव है. यहां का सिनेमा हर वर्ग के दर्शकों का ध्यान रखता है, लेकिन सस्पेंस और थ्रिल में यह लाजवाब है. 20 अप्रैल को प्रदर्शित हुईं चारों फिल्में थ्रिलर से भरपूर हैं. इनमें हॉरर और क्राइम का तड़का लगा हुआ है. हम आपको रूबन की कहानी और वो दर्शकों पर कितना असर छोड़ पाई, इस बारे में बताते हैं.

करीब 2 घंटे 5 मिनट की U सर्टिफिकेट वाली यह ड्रामा-थ्रिल फिल्म दैवीय मान्यताओं, रीति-रिवाजों और कुरीतियों पर आधारित है. ये दैवीय शक्तियों यानी भगवान के प्रति अटूट विश्वास-आस्था और उनका अस्तित्व-चमत्कार की आस लिए बैठे इंसानों की कहानी बयां करती है.

रूबन का निर्देशन अय्यप्पन सुब्रमणि ने किया है. इसे लिखा भी उन्होंने ही है. अरुमुगम कलियप्पन, करूर इलांग कार्तिक्यन और राजा मनोगरन इस फिल्म के प्रोड्यूसर हैं. अरविन्द बाबू ने म्यूजिक दिया है. रीजीव राजेंद्रन सिनेमेटोग्राफर हैं. फिल्म में शनमुगम के मुख्य किरदार में विजय प्रसाद नजर आए हैं. गायत्री रेमा-पार्वती के रूप में, चार्ली-सिथथन के रूप में, रामर-पंडी के रूप में दिखे हैं. अन्य महत्वपूर्ण कलाकारों में करूर इलांग कार्तिक्यन और निर्माताद्वय-अरुमुगम और करूर भी पर्दे पर उतरे हैं.

अगर स्टोरी के प्लॉट की बात करें, तो इसका ताना-बाना ग्रामीण परिवेश में व्याप्त ईश्वरीय मान्यताओं-अंधविश्वास और चमत्कारों पर आधारित है. साउथ सिनेमा में गांवों का अच्छे से एक्सप्लोर किया जाता रहा है. खासकर, बॉलीवुड की तुलना में. भारत की 85 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है. साउथ सिनेमा इन्हीं लोगों को कनेक्ट करने अपनी ज्यादातर फिल्मों की लोकेशन गांवों में दिखाती है. रूबन ग्रामीण पृष्ठभूमि के बीच दैवीय मान्यताओं और रीति-रिवाजों की पेंचीदगी को दर्शाती है.

Tamil movie Rooban review divine beliefs miracle tantra mantra in villages

कहानी जंगल में बसे एक गांव में रहने वाले दम्पती के इर्द-गिर्द रची गई है. महिला बांझपन (Infertility) का शिकार है. आज भी हमारे देश में बच्चा पैदा नहीं कर पाने वालीं महिलाओं को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है. उन्हें घर के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर ताने सुनने पड़ते हैं. प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती है. इस किरदार को भी बांझपन के चलते सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. यह दम्पती किसी बच्चे को अपनी जिंदगी में लाना चाहते हैं. कहानी में नाटकीय मोड़ तब आता है, जब यह दम्पती एक लावारिस बच्चे को गोद लेते हैं. संयोग से उस बच्चे के साथ गांव में एक टाइगर भी आ जाता है. गांव वाले उसे अपशगुन मानते हैं और इसका सारा इल्जाम दम्पती के मत्थे मढ़ देते हैं.

अगर फिल्म के किरदारों की गतिशीलता (Character Dynamics) की बात करें तो, मुख्य कलाकार विजय प्रसाद और गायत्री रेमा के बीच सामन्जस्य ठीक दिखाई दिया है. चार्ली और रामर ने मुख्य किरदारों के साथ फिल्म को बांधे रखने में अहम भूमिका निभाई है. इन कलाकारों ने कहानी को रोमांचक बनाने और गति देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. विजय प्रसाद ने शनमुगम किरदार के तौर पर पूरा न्याय करने की कोशिश की है. संघर्ष और भावनाओं का संतुलन बनाने में अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास किया है.

अगर हम बात कहानी के विषय (Thematic Exploration) की करें,तो ‘रूबन’ के जरिये फिल्ममेकर्स ने ईश्वर के प्रति आस्था-विश्वास और अति विश्वास, सामाजिक पूर्वाग्रहों को लेकर अंधविश्वास और मानवीय पहलुओं को दिखाने की कोशिश की है. कैसे कुछ लोग ईश्वरीय शक्तियों को लेकर भोले-भाले ग्रामीणों को बरगला देते हैं? कैसे भगवान के प्रति आस्था और विश्वास की गलत व्याख्या देकर लोगों को भटका देते हैं?

अगर फिल्म के तकनीकी हुनर (Technical Brilliance) को देखें, तो अरविंद बाबू का संगीत मन-मस्तिष्क में पैठ करता है. दर्शकों को भावनात्मक गहराई से फिल्म से जोड़ता है. खासकर, भक्ति गीत-संगीत अच्छा बन पड़ा है. वहीं, राजेंद्रन ने अपने सिनेमेटोग्राफी आर्ट के जरिये गांवों की खूबसूरत दुनिया में अनायास घुस आए टाइगर की मौजूदगी को रोमांचक एंगल से शूट किया है.

वैसे इस विषय पर पहले भी कई फिल्में आ चुकी हैं. जैसे-इलियाराजा, रिबेल, एमक्कु थोज़िल रोमांस आदि फिल्मों की शैली भी रूबन से मेल खाती है, हालांकि उसे प्रस्तुत अपने-अपने तरीके से किया गया है.

अगर फिल्म की सिनेमेटोग्राफी की बात करें, तो रीजीव राजेंद्रन ने ग्रामीण परिवेश और जंगल की खूबसूरती-हरियाली को बखूबी कैमरे में कैप्चर किया है. बैकग्राउंड म्यूजिक भी सनसनी पैदा करता है. अभिनय के लिहाज से कलाकारों ने ठीक से अभिनय किया है. कुछ जगहों पर फिल्म भटकती दिखती है. कुछ सीन बोझिल भी लगते हैं. मारधाड़ के दृश्य साउथ की अन्य फिल्मों की तर्ज पर ठीक बने हैं. बहरहाल, जिन्हें ग्रामीण परिवेश की फिल्में देखना पसंद है, वे एक बार इसे देख सकते हैं.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Film review, South cinema



Source link

x