जज्बे को सलाम! एक घटना ने बदली जिंदगी, बन गए कलयुग के द्रोणाचार्य, शिक्षा में की एक नए युग की शुरुआत


बालाघाट. मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के देवटोला में स्थित एक ऐसा गुरुकुल विद्यालय है, जो समाज की सहभागिता से संचालित होता है. जहां बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है. इस गुरुकुल का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करना है. समाज से मिली दान राशि और सहयोग से इस विद्यालय की शुरुआत की गई थी. यह विद्यालय मिट्टी और कवेलू से बने मकान में स्थापित है. आज यहां नर्सरी से लेकर कक्षा 8वीं तक के लगभग 170 बच्चे निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

शिक्षा का बीड़ा उठाने वाले समर्पित शिक्षक
बालाघाट के अशोक बोहने इस गुरुकुल के संचालक हैं. उनका जीवन पूरी तरह से शिक्षा के प्रति समर्पित है. उन्होंने विवाह न करके अपना जीवन बच्चों को शिक्षित करने में लगा दिया. अशोक बोहने का कहना है कि उनके इस मिशन में समाज का भी बड़ा योगदान है, जिसने हमेशा उनकी सहायता की. 2005 में उन्होंने इस गुरुकुल की स्थापना की थी, और तब से यह स्कूल बिना किसी शुल्क के बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहा है.

समाज के योगदान से विद्यालय का विकास
यह गुरुकुल पूरी तरह से समाज के सहयोग से चलाया जाता है. विद्यालय का मकान समाज से मिली दान राशि से खरीदा गया था. यहां बच्चों को सिर्फ सामान्य शिक्षा ही नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी सिखाया जाता है. इसके अलावा, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी बच्चों को दक्ष बनाने के लिए कंप्यूटर शिक्षा दी जाती है. यहां बच्चों को कंप्यूटर रिपेयरिंग का भी प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे भविष्य में आत्मनिर्भर बन सकें. अशोक बोहने बीकॉम स्नातक हैं और खुद बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करते हैं.

यहां से मिली अनूठी पहल की प्रेरणा
अशोक बोहने ने बहाया कि, वर्ष 2004 में यहां शासकीय प्राथमिक शाला में पढ़ने वाले इलाके के 25 छात्र फेल हो गए. उस समय वें कॉलेज विद्यार्थी थे. जब उन्होंने बच्चों के फेल होने के विषय में स्कूल के प्राचार्य से सवाल पूछा, तो जवाब मिला की इन मूर्ख बच्चों को ब्रह्मा जी भी खुद आकर पढ़ाए तो भी ये पास नहीं हो सकते. यहीं बात उन्हें तीर की तरह चुभ गई और फैसला किया कि अब वे खुद बच्चों को पढ़ाकर पास करवाएंगे. हुआ भी यहीं, उनके पढ़ाने पर सभी फेल बच्चे अगले साल पास हो गए.

शिक्षा के प्रति अशोक बोहने का योगदान
अशोक बोहने ने अपने जीवन को पूरी तरह से बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया है. समाज की मदद से उन्होंने गरीब बच्चों को साक्षर करने का बीड़ा उठाया है. समाज से मिल रहे समर्थन के कारण वे अपने इस मिशन को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा पा रहे हैं. वे आज अपने आप में एक मिसाल बन चुके हैं, जो निस्वार्थ भाव से बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं. उनके इस योगदान को शिक्षक दिवस के अवसर पर विशेष रूप से सराहा जा सकता है.

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