जैसलमेर में विदेशी मेहमान कुरजां पक्षी की आवक हुई शुरू, देखिए वीडियो


कुलदीप छंगाणी/जैसलमेर: मरुस्थलीय जैसलमेर क्षेत्र में पिछले एक सप्ताह से आसमान में मंडराने वाले कुरजां पक्षियों के झुंड ने सोमवार सुबह आखिरकार खेतोलाई, चाचा गांव और देगराय ओरण के पास स्थित तालाबों पर दस्तक दे दी. इन तालाबों के किनारे कुरजां पक्षियों को स्वच्छंद विचरण करते हुए देखा गया, जिससे क्षेत्र के पक्षी प्रेमियों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई है.

स्थानों की जांच के बाद कुरजां पक्षियों का आगमन
प्रवासी पक्षियों के इस झुंड ने पिछले एक सप्ताह तक गांवों के ऊपर उड़ान भरकर अपने पारंपरिक पड़ाव स्थलों की पहचान की थी. आखिरकार, सोमवार को इन पक्षियों ने खेतोलाई और लाठी गांव के तालाबों पर उतरकर अपना पड़ाव डाला. वन्यजीव प्रेमी सुमेर सिंह ने जानकारी दी कि इन तालाबों पर बड़ी संख्या में कुरजां पक्षियों को देखा जा रहा है.

कुरजां पक्षियों का जीवन और पसंदीदा स्थल
पक्षी प्रेमी राधेश्याम पेमाणी ने बताया कि दो हफ्ते पहले कुरजां पक्षियों के झुंडों ने जैसलमेर क्षेत्र में उड़ान भरी थी. अब उनमें से कुछ झुंड खेतोलाई और चाचा गांव के पास स्थित तालाबों पर उतर चुके हैं, जबकि एक अन्य झुंड ने देगराय ओरण पर अपना डेरा डाल लिया है. बाकी पक्षी अभी भी आसमान में अपने पड़ाव स्थलों की जांच-पड़ताल कर रहे हैं और जल्द ही वे भी जमीन पर उतरेंगे. जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आएगी, इन पक्षियों की संख्या में और वृद्धि होगी.

प्राकृतिक वातावरण में रच-बस चुका कुरजां
विश्नोई ने बताया कि कुरजां पक्षी साइबेरिया से हजारों किलोमीटर की यात्रा करके भारत आते हैं. ये पक्षी लगभग 2 से 2.5 किलोग्राम वजन के होते हैं और अपने प्रवास के दौरान पानी के पास खुले मैदानों और समतल भूमि पर अस्थाई बसेरा बनाते हैं. कुरजां का मुख्य भोजन मोतिया घास और पानी के पास मिलने वाले कीड़े होते हैं. इसके अलावा, क्षेत्र में होने वाली मतीरे की फसल भी इनका पसंदीदा भोजन है.

ये पक्षी खेतोलाई, लाठी, भादरिया, चाचा, धोलिया, डेलासर और लोहटा गांव के तालाबों और खडीनों पर देखे जा सकते हैं. कुरजां पक्षियों की खूबसूरती और उनके प्रवास के कारण क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ जाती है.

कुरजां का प्रवास और स्थानीय संस्कृति
हर साल सितंबर के पहले सप्ताह में कुरजां पक्षी जैसलमेर के लाठी क्षेत्र में पहुंचते हैं और मार्च में वापस अपने वतन लौट जाते हैं. इस दौरान, इनका छह महीने का शीतकालीन प्रवास जैसलमेर को पर्यटक स्थल बना देता है. कुरजां पक्षियों की जैसलमेर की लोक संस्कृति में भी गहरी पैठ है और इन पर कई लोकगीत भी बने हैं. इनके बच्चे यहीं जन्म लेते हैं और फिर उनके बड़े होते ही ये पक्षी वापस अपनी लंबी यात्रा पर निकल जाते हैं.

कुरजां पक्षियों का यह आगमन न केवल जैसलमेर के पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह क्षेत्र के पर्यटन और स्थानीय सांस्कृतिक धरोहर को भी समृद्ध करता है.

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