जैसलमेर: रेगिस्तान में ज्ञान का खजाना, पढ़िए भादरिया गांव की भूमिगत लाइब्रेरी के बारे में


अमित कुमार/ जैसलमेर: राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित भादरिया गांव, अपने अनूठे दृश्य और विशाल भूमिगत पुस्तकालय के लिए जाना जाता है. यह गांव थार के शुष्क मरुस्थल के बीच एक अलग पहचान रखता है, जहां सड़क के दोनों ओर गुफा जैसे विशाल पेड़ हैं, जो इस गांव को एक अलग अनुभव प्रदान करते हैं. लेकिन इस गांव का मुख्य आकर्षण 20 फीट नीचे स्थित एक विशाल भूमिगत पुस्तकालय है, जो इसे विशेष बनाता है.

भादरिया का भूमिगत पुस्तकालय: एक अधूरा सपना
भाटी राजपूतों की कुलदेवी स्वांगिया माता के मंदिर के नीचे बने इस पुस्तकालय की नींव 1986 में संत हरिवंश सिंह निर्मल ने रखी थी. संत हरिवंश सिंह का सपना नालंदा की तरह एक संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने का था. उन्होंने पुस्तकालय निर्माण से लेकर विश्वविद्यालय भवन की पूरी तैयारी की थी. संत ने अपने जीवन के 50 साल इस कार्य में समर्पित किए, लेकिन 2010 में उनकी मृत्यु के बाद यह सपना अधूरा रह गया.

भव्य पुस्तकालय का निर्माण
भादरिया गांव, जो जैसलमेर से 80 किलोमीटर दूर है, का यह भूमिगत पुस्तकालय संत हरिवंश सिंह द्वारा बनाई गई योजना का हिस्सा था. संत ने 1971 से 1986 तक एकांतवास में रहते हुए इस पुस्तकालय की रूपरेखा तैयार की थी. उन्होंने विभिन्न धर्मों और विषयों की किताबों का संग्रह किया और अंग्रेजी वर्णमाला के ‘टी’ आकार में जमीन से 20 फीट नीचे एक पुस्तकालय का निर्माण किया. यह पुस्तकालय 15,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है और इसमें 562 अलमारियों में धर्म, इतिहास, विज्ञान, गणित, कृषि आदि से संबंधित किताबें संग्रहीत हैं.

पुस्तकालय का वर्तमान स्वरूप
जगदंबा सेवा समिति के सचिव, जुगल किशोर आसोरा, बताते हैं कि संत हरिवंश सिंह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े रेगिस्तानी क्षेत्र के लोगों की ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे. हालांकि उनकी मृत्यु के बाद विश्वविद्यालय की योजना पर काम नहीं हो सका, लेकिन पुस्तकालय अब भी बाहरी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. फिलहाल यहां किताबों का आदान-प्रदान (बुक सर्कुलेशन) नहीं होता, लेकिन बाहर से आने वाले पाठकों को यहां बैठकर पढ़ने और रहने की सुविधा निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है.

पुस्तकालय की विशेषताएं
लोकल 18 को प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस पुस्तकालय में एक करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की किताबें हैं. पुस्तकालय के दो मुख्य भाग हैं – पहला अध्ययन भवन, जिसकी लंबाई 370 फुट और चौड़ाई 7 फुट है, जहां हजारों पाठक एक साथ बैठ सकते हैं. दूसरा भाग किताबों के संग्रहण के लिए है, जिसका क्षेत्रफल 225 गुणा 360 फुट है, जिसमें 562 अलमारियां और 18 कमरे बनाए गए हैं. संत हरिवंश सिंह की योजना थी कि यहां सीडी-रोम और माइक्रोफिल्म जैसी तकनीकी संसाधनों को भी रखा जाए, लेकिन फिलहाल वहां किताबें ही संग्रहीत हैं.

संत हरिवंश सिंह का जीवन और योगदान
पंजाब के फिरोजपुर जिले के रहने वाले संत हरिवंश सिंह ने छोटी उम्र में ही घर छोड़कर हिमालय की गुफाओं में तपस्या की. बाद में, 1959 में भारत यात्रा के दौरान वे जैसलमेर के भादरिया गांव आए और यहां अपना जीवन समर्पित कर दिया. भादरिया को धार्मिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में विकसित करने का श्रेय उन्हें जाता है. हालांकि, उनका सपना अधूरा रह गया, लेकिन उनके अनुयायी मानते हैं कि संत हरिवंश सिंह ने कहा था कि वे अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए फिर से लौटकर आएंगे. भादरिया की यह भूमिगत लाइब्रेरी अब लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है, जो इस छोटे से गांव को रेगिस्तान के बीच एक अनोखी पहचान देती है.

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