डेलॉयट फिर क्यों चर्चा में? ऑडिट करने वाली कंपनी की साख पर क्यों उठ रहे सवाल



डेलॉयट फिर क्यों चर्चा में? ऑडिट करने वाली कंपनी की साख पर क्यों उठ रहे सवाल

Deloitte In News Again: डेलॉयट एक बार फिर चर्चा में है. वजह फिर नकारात्मक है. जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज (ZEEL) के ऑडिट के बारे में कथित पेशेवर अनुशासनहीनता के लिए डेलॉयट हैसकिन्स एंड सेल्स LLP पर 2 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा है. ये जुर्माना नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी यानी NFRA ने लगाया है. साथ ही दो चार्टर्ड अकाउंटेंट पर भी जुर्माना और पाबंदी लगायी गयी है. वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के ऑडिट से जुड़े मामले में चार्टर्ड अकाउटेंट एबी जानी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाने के साथ पांच साल के लिए कोई भी ऑडिट कार्य करने पर रोक लगायी गयी है. वहीं राकेश शर्मा पर पांच लाख रुपये का जुर्माना और तीन साल की पाबंदी लगायी गयी है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है कि डेलॉयट पर जुर्माना लगा है. उस पर भारत में ही नहीं, दुनिया भर में कार्रवाई हुई है.  

क्या है मामला?

नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी ने स्वत: संज्ञान लेते हुए निर्धारित अवधि के लिए जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (जील) के ऑडिट फाइल की जांच की थी. इसका मकसद यह आकलन करना था कि ऑडिटरों ने कोई पेशेवर गड़बड़ी तो नहीं की है. एनएफआरए ने ऑडिट फाइल और ऑडिट कंपनी के सवालों के साथ-साथ अन्य रिकॉर्ड की प्रतिक्रियाओं की जांच करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया ऑडिटरों ने कंपनी अधिनियम के साथ-साथ ऑडिटिंग पर मानकों (एसए) के तहत अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन नहीं किया है. NFRA ने 23 दिसंबर को अपने 30 पृष्ठ के आदेश में कहा कि ऑडिटर  मानकों को पूरा करने में विफल रहे और कुछ महत्वपूर्ण संबंधित पार्टी लेनदेन के संबंध में अधिनियम का उल्लंघन किया.

क्या थी गड़बड़ी?

जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज के चेयरमैन के साथ एस्सेल ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रवर्तक ने सितंबर 2018 में यस बैंक को एक पत्र जारी किया. इसमें प्रवर्तक समूह की कंपनी एस्सेल ग्रीन मोबिलिटी लि. को यस बैंक के कर्ज की गारंटी के रूप में जी एंटरटेनमेंट इंटरप्राइजेज की 200 करोड़ रुपये की सावधि जमा राशि की प्रतिबद्धता जतायी गयी थी. बैंक ने सात प्रवर्तक समूह कंपनियों को देय ऋण राशि के निपटान के लिए जुलाई, 2019 में सावधि जमा को भुना लिया.NFRA ने कहा कि सावधि जमा और उसके रखरखाव के साथ बैंक के उसके भुनाये जाने के बारे में निदेशक मंडल या शेयरधारकों से मंजूरी नहीं ली गयी थी. वैधानिक लेखा परीक्षक इसकी पहचान करने और रिपोर्ट करने में विफल रहे. 

सीईओ पर भी लगा था जुर्माना

जुलाई 2020 में एनएफआरए ने डेलॉयट इंडिया के पूर्व सीईओ उदयन सेन पर किसी भी तरह की ऑडिटिंग गतिविधि करने पर 7 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. इसके साथ ही उन्हें 25 लाख रुपये का जुर्माना भी भरने को कहा गया. एनएफआरए की यह कार्रवाई घोटाले से प्रभावित आईएल एंड एफएस फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएफआईएन) के ऑडिट में उनकी भूमिका को लेकर की गई थी.

विदेशों में भी हुई कार्रवाई

डेलॉयट पर भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी कार्रवाई हुई है. ब्रिटेन में ऑडिट फर्म डेलॉयट पर जनवरी 2009 और जून 2011 के बीच सॉफ्टवेयर कंपनी ऑटोनॉमी के ऑडिट में विफलताओं के लिए रिकॉर्ड £15 मिलियन का जुर्माना लगाया गया था. ऑडिट में शामिल दो पूर्व डेलॉयट पार्टनर्स रिचर्ड नाइट्स और निगेल मर्सर पर भी फाइनेंशियल रिपोर्टिंग काउंसिल (एफआरसी) ने जुर्माना लगाया . इसी तरह, 2023 में चीन के स्वामित्व वाली एसेट प्रबंधन कंपनी का पर्याप्त ऑडिट करने में विफल रहने के लिए डेलॉयट टौचे तोहमात्सु के बीजिंग कार्यालय पर 30.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर का जुर्माना लगाया गया था. एसेट प्रबंधन कंपनी के पूर्व प्रमुख को भ्रष्टाचार के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी. मलेशिया में भी 2021 में डेलॉयट पर कार्रवाई हुई थी. मलेशिया में 1 एमडीबी स्कैंडल को लेकर डेलॉयट पीएलटी ने 80 मिलियन डॉलर का भुगतान कर सरकार से समझौता किया था.

अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में भी फंसी

साल 2018 में, डेलॉयट और टॉच एलएलपी ने टेलर, बीन और व्हिटेकर मॉर्टगेज कॉर्प (टीबीडब्ल्यू) के स्वतंत्र बाहरी ऑडिटर के रूप में डेलॉयट की भूमिका से उत्पन्न होने वाले संभावित झूठे दावे अधिनियम दायित्व को हल करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को $ 149.5 मिलियन का भुगतान किया. दक्षिण अफ्रीका में भी इस कंपनी को टोनगाट हुलेट से ऑडिट संबंधी गड़बड़ियों के चलते समझौते के रूप में उसकी मुद्रा में 260 मिलियन देने पड़ा. इसी तरह नाइजीरिया में भी डेलॉयट के ऑडिट में बड़ा फ्रॉड पाया गया.

वर्किंग कल्चर भी खराब

डेलॉयट सिर्फ ऑडिट के मामले में ही बदनाम नहीं है. बल्कि इसका वर्क कल्चर भी टॉक्सिक है. अकेले आस्ट्रेलिया में ही 2024 के दौरान   144  मामले नैतिकता के उल्लंघन के आए. इसमें बुलिंग और हरासमेंट के मामले भी शामिल हैं.  ब्रिटेन में भी ऐसे मामले आए. लगातार डेलॉयट के ऑडिट पर उठते सवालों, उस पर बढ़ती कानूनी कार्रवाई और कंपनी के अंदर नैतिकता पर उठते सवालों ने उसके क्लाइंट्स को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या वे एक प्रोफेशनल कंपनी के साथ काम कर रहे हैं?   
 




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