ताज होटल की खूबसूरती को चांर चांद लगा रहा है मधुबनी का शेर, देश-विदेश के लोग करते हैं इसका दीदार
मधुबनी: अगर हम आपको बताएं कि मुंबई के ताज होटल में एक शेर है और उस शेर का दीदार हर ताजवासी करता है. उसके साथ तस्वीरें खिंचवाता है और फिर यादों में संजो कर वापिस लौट जाता है. तो आप कैसा महसूस करेंगे? अच्छा ही लगेगा. आपकी भी चाहत होगी कि उस शेर के साथ एक तस्वीर हमारी भी हो जाए. तो चलिए आज उस शेर की तस्वीर भी दिखाते हैं और बताते हैं इससे जुड़ी रोचक बातें. कैसे इसे बिहार के मधुबनी से ताज होटल तक ले जाया गया. कैसे ये मधुबनी के एक परिवार के पास आया और कैसे की जाती थी इसकी रखवाली.
कहानी
बिहार के मधुबनी जिला के अंतर्गत सरिसब पाही गांव में जब हम पहुंचे तो हमें यहां स्थानीय लोग मिले. उनसे हमने बातचीत शुरू की तो मालूम चला कि यहां विभूति नाथ झा नाम के व्यक्ति हुआ करते थे, जो आईएस (IAS) रहे हैं. काफी रंगीन मिजाज और ऐश ओ शोहरत से लबरेज होने के अलावा उन्हें शिकार करने का बड़ा शौक था. ऐसे में एक दिन शिकार करने पहुंचे, शिकार किया और फिर वापिस लौट आए. कुछ दिनों तक सिलसिला ऐसा ही चलता रहा. फिर उनके मन में ख्याल आया कि अपनी हवेली के सामने क्यों ना एक संगमरमर की स्टेच्यू लगाई जाए, जिसमें शेर की तस्वीर हो. फिर क्या था उन्होंने आर्किटेक्ट को संपर्क किया और लगभग 6 फीट चौड़ी वन पीस शेर की मूर्ति लगवा दी.
इसकी पीठ पर बैठ गांव में खेलते थे बच्चे
विभूति नाथ झा के पारिवारिक सदस्य प्रदीप झा बताते हैं कि इसे देखकर वो लोग खेलते थे. कभी कभार तो इसकी पीठ पर भी बैठ जाया करते थे. आसपास के सारे बच्चे, विभूति बाबू के दरवाजे पर लगे इस शेर की शोभा बढ़ाते थे.
क्यों दे दिया गया ताज को
पारिवारिक सदस्य बताते हैं कि इसका मेंटिनेंस और सिक्योरिटी सबसे बड़ी चिंता का विषय था, क्योंकि परिवार के लोग यहां रहते नहीं थे. इसलिए, विभूति नाथ झा कि पत्नी इसे किसी ऐसे जगह देने चाह रही थीं कि जहां ये सुरक्षित रखा जा सके. ऐसे में उन्होंने होटल प्रबंधन को देने का फैसला किया. फिर साल 2007-08 के दौरान पुरानी विरासतों को संभाल कर रखने वाली टीम आई, उसने मुआयना किया और फिर इसे अपने साथ ले गए.
कौन-कौन हैं विभूति के परिवार में
विभूति स्वयं एक आईएस अधिकारी हुआ करते थे. उनके परिवार में 4 बेटे- दयानाथ झा, अजयनाथ झा, उदयनाथ झा, धर्मनाथ झा के अलावा बेटी और पत्नी सुमित्रा देवी मौजूद हैं. हालांकि, ये सब घर पर नहीं रहते हैं और इनके परिवार में बहुत लोगों की मृत्यु भी हो चुकीं है.
दूर तक फैले महल को लोग बाघ महल कहते थे
लोकल 18 की टीम को पारिवारिक सदस्य और ग्रामीण बताते हैं कि यहां पर यह स्टेच्यू बिहार और बंगाल के अलग होने से पहले से था, चूंकि महल काफी दूर तक फैला था और यह शेर, महल की रौनक बढ़ा रहा था, तो इसलिए ग्रामीणों ने इसे बाघ महल कहना शुरू कर दिया था.
FIRST PUBLISHED : December 28, 2024, 13:09 IST