धीमे बोल, लेकिन इरादों के पक्के… डॉक्टर मनमोहन सिंह की कहानी, पत्रकार की जुबानी



नई दिल्ली:

डॉ. मनमोहन सिंह अब भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनसे जुड़ी कई यादें आज भी जेहन में जिंदा हैं. धीमी आवाज और सधे हुए शब्दों में अपनी बात रखने वाले मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व के कई पहलू रहे हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वह आलोचना के शिकार ज्यादा रहे. उन्होंने एक बार यह दर्द बयां भी किया था और उम्मीद जाहिर की थी कि इतिहास कभी उनके साथ इंसाफ जरूर करेगा. NDTV के मैनेजिंग एडिटर मनोरंजन भारती उन पत्रकारों में से हैं, जिन्होंने PM रहते डॉ. मनमोहन सिंह को नजदीक से देखा. उनके कामकाज, सियासी समझ को जाना-समझा. देश-विदेश में उनको कवर किया. आखिर कैसे थे डॉक्टर मनमोहन सिंह, जानिए एक पत्रकार की जुबानी, उनकी कहानी…

डॉ. मनमोहन सिंह के साथ बिताए हुए पलों को याद करते हुए मनोरंजन भारती कहते हैं कि मैं उनके साथ वाशिंगटन भी गया था. उस दौरान भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील पर बात होनी थी. वाशिंगटन में उस समय के पीएम मनमोहन सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति बुश के साथ एक डील की थी. जब ये डील हो रही थी तो उस दौरान भारतीय मीडिया को भी वहां आने का मौका दिया गया था. डील साइन होने के बाद जब डॉक्टर सिंह भारत लौटे तो यहां उस डील को लेकर उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उस दौरान मीडिया के हमारे साथी ये जानना चाहते थे कि आखिर ये डील तो हो गई है लेकिन डॉक्टर साहब अब इस बिल को संसद में कैसे पारित कराएंगे. ऐसा इसलिए भी क्योंकि जब ये डील साइन होनी था तो लेफ्ट पार्टी पहले ही इसे लेकर अपना विरोध जता चुकी थी. लेफ्ट पार्टियों का आरोप था कि पीएम मनमोहन सिंह अमेरिका के आगे झुक गए हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

जब संसद में लेफ्ट पार्टी ने वापस ले लिया था समर्थन

मनोरंज भारती ने आगे बताया कि उस दौरान डॉक्टर सिंह ने साफ तौर पर ये कहा था कि मैं इस बिल को संसद में पास करा लूंगा. उनका मानना था कि बिल को पास कराने के लिए जितने सांसद पक्ष में चाहिए उतने उनके पास हैं. सभी संवाददाता उनसे उनका प्लान बी भी जानना चाहते थे. वो पूछ रहे थे कि अगर संसद में लेफ्ट पार्टी आपसे समर्थन वापस लेती है तो आप उस कंडीशन में क्या करेंगे. मनमोहन सिंह काफी विनम्र थे. वो बेहद सधी हुई बात करते थे. जब संसद में बिल पास कराने की बारी आई तो हुआ वही जिसका सभी को अनुमान था, लेफ्ट पार्टी इस बिल को समर्थन देने से पीछे हट गई. सोमनाथ चटर्जी उस समय लोकसभा के अध्यक्ष थे, उन्होंने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया. उनको बाद में उनकी पार्टी ने निकाल दिया. बिल को बचाने के लिए फिर मुलायम सिंह और अमर सिंह सामने आए. फिर एकाएक समाजवादी पार्टी और टीएमसी की तरफ से समर्थन आता है और आखिरकार संसद में ये बिल पास हो गया. जब ये बिल संसद में रखा गया था तो जमकर हंगामा हुआ. लेकिन मनमोहन सिंह ने अपने बूते और कांग्रेस के मैनेजमेंट की वजह से इस बिल को पास करा ले गए थे. उनकी सबसे बड़ी खासियत में से एक ये थी कि वो जिस चीज को ठान लेते थे उसे करके ही मानते थे. 

Latest and Breaking News on NDTV

‘राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी थे डॉक्टर साहब’

मनोरंजन भारती के अनुसार मनमोहन सिंह कम बोलते थे. वो हमेशा कहते थे कि एक चुप्पी कई चीजों का हल होता है. उस दौर में कई लोग मानते थे कि वो नॉन पॉलिटिकल आदमी थी. लेकिन मेरा मानना था और है कि उन्हें राजनीति की काफी समझ थी. जब भी कोई कांग्रेस में किसी क्राइसिस सिचुएशन में होती था तो वो आगे आते थे. एक बार जब जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद को सरकार बननी थी. और ये तय हुआ था कि कांग्रेस और पीडीपी मिलकर सरकार बनाएगी.और ये तय हुआ था कि  बारी बारी से कांग्रेस और पीडीपी का मुख्यमंत्री रहेगा तो उस समय मुफ्ती मोहम्मद सईद अड़ गए थे. उस समय तो मनमोहन सिंह पीएम भी नहीं थे. मैं खुद श्रीनगर में ही था. फिर सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को श्रीनगर भेजा था. उस बातचीत के बाद ये तय हुआ था कि शुरुआती तीन साल तक मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम रहेंगे और उसके बाद कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद सीएम बनेंगे. ये डील भी डॉ.सिंह ने ही क्रैक किया था. शरद पवार से भी उनके काफी अच्छे संबंध थे. 

Latest and Breaking News on NDTV

बहुत लोग ऐसा मानते थे कि मनमोहन सिंह टेक्नोक्रेट हैं और इकोनॉमिस्ट रहे हैं तो उनको राजनीति की उतनी समझ नहीं थी लेकिन मेरा हमेशा से ही मानना था कि मनमोहन सिंह राजनीति के भी मंझे हुए खिलाड़ी थे. उन्होंने अपनी करियर की शुरुआत एलएन मिश्रा के साथ किया था. ये बात इंदिरा गांधी कैबिनेट के समय की है. वो कभी लोकसभा में चुनकर नहीं आए थे. एक बार साउथ दिल्ली से चुनाव लड़े तो मैं भी उन्हें फॉलो कर रहा था. एक मीटिंग करने के बाद दूसरी मीटिंग में जाना था उन्हें. एक मीटिंग खत्म करने के बाद वो गाड़ी में बैठकर अपनी किताब पढ़ने लगे. वो किताब विदेश नीति पर आधारित किताब थी. तो वैसे प्रधानमंत्री मिलना अब मिलना काफी मुश्किल है. एक बार एनडीटीवी के कार्यक्रम में रजनीतकांत आए थे उस दौरान डॉक्टर साहब भी वहां थे. उस दौरान रजनीकांत ने उन्हें भारतीय राजनीति के संत की उपाधि दी थी. एक पीएम के तौर पर जितने सरल तरीके से वो मिलते थे तो आपको कभी लगता ही नहीं था कि आप किसी पीएम से मिल रहे हों. 







Source link

x