नियम-कायदों के भरोसे खत्म नहीं हो सकता बाल श्रम, हम भी पहल करें
भारत सरकार ने वर्ष 2011 में जनगणना करवाई थी. यह बताती है कि उस वक्त देश में पांच से चौदह वर्ष के बीच करीब एक करोड़ बालश्रमिक थे. आज जब देश ने कई मोर्चों पर तरक्की की है तो आपको क्या लगता है, हमने इस मामले पर भी तरक्की की होगी? मतलब, देश में बाल श्रमिक घटे होंगे या बढ़ गए होंगे? अनुमान लगाने का इसलिए कहा जा रहा है कि आज हमारे पास कोई अधिकृत संख्या या प्रक्रिया नहीं है जो ठीक-ठीक यह बता सके कि देश में कितने बाल श्रमिक हैं क्योंकि 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं है.आप ईमानदारी से आकलन करेंगे तो यही उत्तर देंगे कि बालश्रम खत्म नहीं हुआ होगा बल्कि बढ़ा ही होगा क्योंकि देश ने कोविड का दौर देखा है.
एक जानकारी और. मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने सड़क पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए नई पॉलिसी लागू की है. सीएम शिवराज सिंह चौहान की मंशा के अनुसार वर्ष 2021 में लागू इस नीति में तय किया गया है कि प्रदेश की धरती पर कोई भी बच्चा अधिकारों से वंचित न रहे, कोई बच्चा अनाथ न रहे इसके लिए उन्हें सरकारी विभागों की 55 योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा. दत्तक देने, पालन-पोषण के लिए प्रायोजक ढूंढने से लेकर सरकारी स्तर पर पुनर्वास का प्रबंध भी किया जाएगा. ऐसे बच्चों को तलाशने के लिए सर्वे, मैपिंग की जाएगी जिसके लिए विशेष दलों का गठन किया जाएगा.
देखने, सुनने में नीति बेहद प्रभावी और अच्छी लगती है. अब फिर एक सवाल है कि आपको क्या लगता है, इस नीति का सही रूप में पालन हुआ होगा और क्या मध्य प्रदेश में सड़क पर जीवनयापन कर रहे बच्चों का पुनर्वास हो गया होगा? इस सवाल का भी ठीक-ठीक उत्तर देना संभव नहीं है. अनुमान तो यही कहेगा कि नीति का क्रियान्वयन सड़क पर नजर नहीं आता है.
असल में इन्हीं दो सवालों के उत्तर में बाल श्रम उन्मुलन का सारा दारोमदार है. बाल श्रम उन्मूलन की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि हम हर साल 12 जून को बाल श्रम विरोधी दिवस मनाते हैं. यह दिवस मना कर हम बाल श्रम खत्म करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल श्रम को खत्म करने के लिए जागरूकता के लिए ही 2002 में बाल श्रम विरोधी दिवस मनाने की शुरुआत की है. वर्ष 2023 में बाल श्रम उन्मूलन दिवस की थीम है: ‘सभी के लिए सामाजिक न्याय, बालश्रम का उन्मूलन’ (Social Justice for All. End Child Labour). इस थीम के चयन का मुख्य कारण बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए लोगों को जागरूक करने की कोशिशों को बढ़ावा देना है.
यदि नियमों और कायदों से सब ठीक हो जाता तो हमें यह दिवस मनाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि हमारे देश ने संविधान को स्वीकार करते हुए ही बाल श्रम को निषेध करने का निर्णय लिया था. संविधान के 24 वें अनुच्छेद के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी, कारखानों, होटलों, ढाबों, घरेलू नौकर इत्यादि के रूप में कार्य करवाना बाल श्रम के अंतर्गत आता है. अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता पाया जाता है, तो उसके लिए उचित दंड का प्रावधान है.
थोड़ा और स्पष्ट करें तो ऐसा कार्य जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और गरिमा से वंचित करता है एवं जो उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक है बाल श्रम कहलाता है. बाल श्रम को रोकने के लिए कई सख्त नियम भी बने हैं. जिनमें 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिये परिवार से जुड़े व्यवसाय को छोड़कर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने पर पूर्ण रोक का प्रावधान किया गया है. बालश्रम (प्रतिषेध और विनियम) अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अनुसार, तकरीबन 15 विभिन्न जोखिम भरे व्यावसाय, और 54 कार्यों में 14 से 18 वर्ष के बच्चों से कार्य प्रतिबंधित है, जैसे कि सर्कस, ढाबा, घरेलू कार्य, मोटर वाहन उद्योग, कालीन, साबुन, कांच के सामान और कीटनाशक उत्पादन आदि.
नियम है कि बच्चे केवल स्कूल से आने के बाद या स्कूल की छुट्टियों के दौरान काम कर सकते हैं और बच्चों को परिवार के स्वामित्व वाले सुरक्षित क्षेत्रों में काम करने की अनुमति है. जैसे हर नियम की एक बचाव गली निकाल ली जाती है वैसे ही इन नियमों में भी होता है, जब कहा गया कि बच्चे स्कूल से आने के बाद या छुट्टियों के दौरान काम कर सकते हैं तो माता-पिता ने बच्चों को स्कूल भेजना ही बंद कर दिया. कुछ बच्चों ने पढ़ाई से बचने के लिए काम को प्राथमिकता दे दी और स्कूल आना छोड़ दिया. इस तरह, बच्चे श्रम और गरीबी के दलदल में फंसते जा रहे हैं. इसके आगे बच्चों को देह व्यापार, बाल तस्करी, यौन उत्पीड़न तथा ऑनलाइन व अन्य चाइल्ड पोर्नोग्राफी में धकेल दिया जाता है.
इन्हीं सब कारणों से बाल श्रम हमारी चिंता का कारण है. हमें बाल श्रम को खत्म करना चाहिए क्योंकि यह बच्चों को शिक्षा, मानसिक एवं शारीरिक विकास, खेल एवं फ्री टाइम जैसे उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करता है. बाल श्रम के कारण बच्चे पहले अशिक्षा और फिर गरीबी के चक्र में फंसे रह जाते हैं. हमारे पास बाल श्रम रोकने के सख्त नियम और अच्छी योजनाएं हैं. मगर बाल श्रम रूक नहीं रहा है क्योंकि हमारे पास उतनी अच्छी इच्छा शक्ति नहीं है. परिवार के कौशल को सीखना अलग बात होती है और एक श्रमिक की भांति नियमित कार्य कर बच्चे द्वारा परिवार के लिए कमाई करना अलग बात होती है. साहूकार का बेटा पारिवारिक कार्य करता है तो उसके भी सम्मान का ध्यान रखा जाता है लेकिन एक बाल श्रमिक जहां कार्य करता है वहां उसकी गरिमा, समानता, समता जैसे मूल्यों का पालन नहीं किया जाता. होटल या ढाबे में काम करने वाले बच्चे का सबसे पहले नाम गुम होता है. उसे किसी भी संबोधन से पुकार लिया जात है, जैसे चवन्नी, छोटू, अबे, ओये, और इस तरह अपमान और हिकारत का व्यवहार उनकी आदत बनने लगता है. वे समझ ही नहीं पाते कि इस दुष्चक्र को वे पढ़ाई कर तोड़ सकते हैं क्योंकि कहने को पढ़ाई सबका अधिकार है, मगर इस राह में भी बाधाएं हजार हैं. कोई बच्चा पढ़ना भी चाहे तो व्यवस्था नहीं मिलती, स्कूल जाने भी लगे तो पढ़ाई नहीं हो पाती और पढ़ भी ले तो पढ़ाई उसे रोजगार नहीं दे पाती.
यही कारण है कि अब लगता है कि बाल श्रम उन्मूलन केवल सरकार के भरोसे नहीं हो सकता है. अच्छे नियमों और कानूनों को लागू करना सरकार का काम है तो उनके पालन पर जोर देना जनता का कार्य है. एक कदम यह हो सकता है कि यदि किसी ढाबा, होटल, गैरेज या दुकान पर बाल श्रमिक दिखाई दे तो हम वहां से खरीदी नहीं करें लेकिन हम इसी बात को सबसे ज्यादा नजरअंदाज करते हैं. बच्चों को काम करते देखना हमारे सहज हो गया है. हम इस तर्क के साथ खुद को तैयार कर लेते हैं कि अपने माता-पिता के लिए आर्थिक सहायता जुटाना बुरा नहीं है. मगर इस तथ्य को भूल जाते हैं कि वह स्कूल नहीं जा रहा है.
एक बात बहुत गहराई से महसूस की जाती है कि बच्चे वोट नहीं है इसलिए राजनीति के केंद्र में नहीं होते हैं लेकिन यह भी तय है कि सभी बच्चों के भविष्य को संवारे बिना हम देश का भविष्य निखार नहीं पाएंगे. बाल श्रम को रोकने के लिए जागरूकता भरे कदम के दम पर मजबूत भारत के निर्माण के लिए हम एक काम तो कर ही सकते हैं कि अगर कहीं भी कोई बाल श्रमिक दिखाई देता है तो तुरंत 1098 या फिर www.pencil.gov.in अपनी शिकायत दर्ज कर दें.
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FIRST PUBLISHED : June 12, 2023, 11:34 IST