न चूल्हे का झंझट…न गैस और न ही बिजली, यहां इस तकनीक से खाना बनाती हैं महिलाएं


बाड़मेर. दुनिया में अक्षय ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत कहे जाने वाले सूरज की किरणों से लोग ना केवल जलावन और ईंधन बचा रहे है बल्कि उससे अपनी आमदनी में भी इज़ाफ़ा कर रहे है. सरहदी बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर और सांचौर के कई गांवो में सोलर कुकर से लोग अपना और अपने पशुओं के लिए खाना पका रहे हैं. यह वह इलाके है जहां साल के बारह महीनों में 8 महीने सूरज की सीधी किरणे धरती पर पड़ती है.

अगर आपको कोई कहे कि गैस, इंडक्शन या चूल्हे पर खाना नहीं बनाना है केवल प्राकृतिक तरीके से बिना लकड़ी, ईंधन खर्च के खाना पकाना है तो कई सारे ख्याल मन में आएंगे. लगेगा कि खाना बिना गैस के कैसे बन पाएगा लेकिन इसका हल है बाड़मेर की लीला देवी के पास. लीला पिछले करीब 2 साल से सोलर कुकर में खाना बना रही हैं, वो भी एक से बढ़कर एक डिश इस कुकर में बनाती हैं.

एक बार के मामूली निवेश के बाद किसानों के लिए यह सोलर कुकर काफी फायदेमंद साबित हो रहे है वही तेल-गैस खनन में लगी केयर्न वेदांता के पशुपालन प्रोजेक्ट में कई किसानों को यह सोलर कुकर निःशुल्क मुहैया कराए जा रहे हैं.

लीला देवी लोकल18 से बातचीत करते हुए बताती है कि पांचवी कक्षा में पढ़ते थे तब किताबो में पढ़ा था कि सोलर कुकर से कम समय में खाना पकता है. इसके बाद केयर्न वेदांता और श्योर संस्थान के सहयोग से उन्हें सोलर कुकर निःशुल्क मुहैया करवाया गया है. वह बताती है कि पहले खेत से लकड़ियां लानी पड़ती थी. जिसमे समय ज्यादा लगता था. करीब 2 साल से अधिक समय से वह सोलर कुकर उपयोग में ले रहे है.

लीला के मुताबिक सोलर कुकर से उसके जीवन मे काफी सुखद बदलाव हुआ है. इतना ही नही आसपास के लोग भी इसे देखने के लिएआते है. लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय बना हुआ है. वह बताते है कि सोलर कुकर में खाना बनाने के लिए इसे उपयोग करने के साथ ही पशुओं के लिए भी आहार तैयार किया जाता है. इससे समय व पैसे की बचत होती है.

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