पाकिस्तान की राह पर बांग्लादेश, शेख हसीना का फैसला यूनुस सरकार ने पलटा, क्यों बन गया भारत के लिए मुसीबत?


नई दिल्ली. बांग्लादेश में फैली हिंसा के बाद शेख हसीना के देश से भागने और फिर वहां बनी अंतरिम सरकार के हाल ही में उठाए गए कुछ कदमों से लगता है कि ढाका में भारत विरोधी एजेंडे पर काम हो रहा है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में देश ने अल-कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट (एक्यूआईएस) से जुड़े अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के चीफ मुफ्ती जशीमुद्दीन रहमानी को जेल से रिहा कर दिया है.

यह नई दिल्ली के लिए एक बड़ी सुरक्षा चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि एबीटी जिसे अब अंसार अल इस्लाम कहा जाता है, ने भारत में अपने नेटवर्क को फैलाने की कोशिश की थी, जिसके कारण दो साल पहले भारतीय एजेंसियों द्वारा महीनों तक आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया गया था. ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, 2008 के एक आतंकी मामले में जमानत मिलने के एक दिन बाद, रहमानी 27 अगस्त को गाजीपुर में स्थित हाई सिक्योरिटी वाली काशिमपुर सेंट्रल जेल से बाहर आया.

मुफ्ती जशीमुद्दीन रहमानी उन सैकड़ों आतंकवादियों में से एक था, जिसे तत्कालीन शेख हसीना सरकार ने सलाखों के पीछे डाला था. 5 अगस्त को शेख हसीना के पद से हटाए जाने के बाद, बांग्लादेश की दो जेलों से कई संदिग्ध आतंकवादियों सहित 700 से अधिक कैदी भाग गए, जिससे देश के साथ-साथ भारत में भी सुरक्षा को लेकर बड़ा खतरा पैदा हो गया.

विश्लेषकों ने आशंका जताई है कि मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों को खुद को फिर से संगठित करने के लिए माकूल जमीन प्रदान करेगी. उनका कहना है कि ये तत्व पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के इशारे पर भारत विरोधी गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं.

कौन है जशीमुद्दीन रहमानी?
जशीमुद्दीन रहमानी को 2013 में धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर राजीब हैदर की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था. 15 फरवरी, 2013 की रात को हैदर को ढाका में उनके घर के सामने मौत के घाट उतार दिया गया था. इस हत्या के लिए शहर की एक अदालत ने दो लोगों – फैसल बिन नईम और रिजवानुल आजाद राणा – को मौत की सजा सुनाई थी.

2016 की सीएनएन रिपोर्ट की मानें, तो हत्या का ‘मास्टरमाइंड’ राणा अब भी फरार है और उसे उसकी गैर-मौजदूगी में अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था. रहमानी और चार अन्य को जेल की सजा सुनाई गई. ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक, राजीब हैदर की हत्या के अलावा रहमानी चार अन्य मामलों में भी आरोपी था, जिसमें आतंकवाद विरोधी और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी कानून के तहत मामले शामिल हैं. 6 फरवरी, 2008 के आतंकवाद मामले में उसे जमानत मिल गई थी, लेकिन उसके खिलाफ अब अन्य मामले भी वापस ले लिए गए हैं.

एबीटी कैसे जांच के घेरे में आया?
बांग्लादेश ने मई 2015 में तीन धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर्स की हत्या में शामिल होने के लिए कट्टरपंथी इस्लामी संगठन एबीटी पर प्रतिबंध लगा दिया था. समूह ने अत्यधिक प्रेरित और शिक्षित विश्वविद्यालय के छात्रों की भर्ती शुरू की, जो अंग्रेजी भाषा में पारंगत और सोशल मीडिया के जानकार होते थे. 2016 में किए गए एक आकलन के अनुसार, एबीटी हरकत उल-जिहाद अल-इस्लामी-बांग्लादेश (एचयूजेआई-बी) और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से बड़ा संगठन था.

हालांकि, संख्या के हिसाब से इसकी ताकत को बताना मुश्किल है क्योंकि इसके संगठन का ढांचा काफी अस्थिर है. ‘अंसारुल्लाह बांग्ला टीम: बांग्लादेश के लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा’ विषय नामक एक पेपर के अनुसार, आमतौर पर इसके सदस्य एक इकाई में 4 से 7 लोगों वाली छोटे-छोटे समूह में काम करते हैं.

इसमें आगे कहा गया है कि एबीटी चरमपंथी विचारधाराओं से काफी प्रभावित है, जैसे कि अनवर अल-अवलाकी से, जो 2011 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया था. इसके बाद, यह समूह बांग्लादेश और विदेशों में ‘पवित्र युद्ध’ छेड़ने के लिए अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट (आईएस) की सशस्त्र जिहादी विचारधारा के करीब आ गया.

हेग स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर काउंटर-टेररिज्म (आईसीसीटी) के अनुसार, एक्यूआईएस को सितंबर 2014 में पूरे दक्षिण एशिया में एक्टिव होने के लक्ष्य के साथ लॉन्च किया गया था. एक दर्जन से ज़्यादा आतंकवादी संगठन एक्यूआईएस से जुड़े हुए हैं, जिनमें से ज़्यादातर पाकिस्तान से हैं और कुछ बांग्लादेश के साथ ही भारत से ताल्लुक रखते हैं.

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एनआईए और असम पुलिस की तरफ से की गई कार्रवाई
31 जुलाई, 2022 को काबुल में एक अमेरिकी ड्रोन हमले में अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी मारा गया था. उसकी हत्या से कुछ दिन पहले, असम पुलिस ने एक वीडियो के बारे में चिंता जताई थी, जिसमें मोस्ट वांटेड आतंकवादी अपने कैडरों से पूर्वोत्तर राज्य में ‘हिजरा’ (माइग्रेशन) करने की अपील कर रहा था.

तत्कालीन असम पुलिस प्रमुख भास्कर ज्योति महंत ने 28 जुलाई, 2022 को कहा था, “एक्यूआईएस पूर्वोत्तर में अपने नेटवर्क का विस्तार करने में दिलचस्पी दिखा रहा है. एक्यूआईएस द्वारा जारी किए गए एक वीडियो में, एक्यू नेता अयमान अल-जवाहिरी ने खुद असम में ‘हिजरा’ करने की अपील की है… जो कि बेहद परेशान करने वाला है.”

उनकी टिप्पणी राज्य पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की तरफ से वैश्विक आतंकवादी संगठनों, विशेष रूप से एबीटी/एक्यूआईएस से कथित संबंधों के लिए बारपेटा, मोरीगांव, गुवाहाटी (कामरूप मेट्रो) और गोलपारा जिलों से 29 लोगों को गिरफ्तार करने के बाद आई थी. ये गिरफ्तारियां फरवरी से जुलाई 2022 तक चले आतंकवाद विरोधी अभियान का परिणाम थीं.

तत्कालीन विशेष महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) जीपी सिंह ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि ऑपरेशन के दौरान पुलिस ने कई मोबाइल फोन, टैबलेट और लैपटॉप जब्त किए थे, जहां से वैश्विक आतंकवादी संगठनों के साथ उनके कथित संबंधों के ‘सबूत’ सामने आए थे. जीपी सिंह वर्तमान में असम पुलिस के प्रमुख हैं.

असल कार्रवाई तब शुरू हुई जब केंद्रीय आतंकवाद विरोधी एजेंसी एनआईए ने मार्च 2022 में एक मामला दर्ज किया, जिसके अनुसार, एक बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से भारत में घुस आया था और वह जिहादी संगठनों में शामिल होने और भारत में अल-कायदा के लिए आधार बनाने के लिए ‘अंसार’ (स्लीपर सेल मॉड्यूल) में काम करने के लिए प्रभावशाली युवाओं की भर्ती, प्रशिक्षण और उन्हें प्रेरित करने में सक्रिय था. समाचार एजेंसी पीटीआई ने उस वक्त एनआईए के एक प्रवक्ता के हवाले से यह जानकारी दी थी.

शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय एजेंसियों के सहयोग से राज्य पुलिस द्वारा चलाए गए अभियान से भारत में अल-कायदा और उसके सहयोगियों के वित्तीय संबंधों का भी भंडाफोड़ हुआ. मोरीगांव जिले से गिरफ्तार किए गए लोगों में अफसरुद्दीन भुइयां और मुस्तफा उर्फ ​​मुफ्ती मुस्तफा शामिल था, जो कथित तौर पर एबीटी/एक्यूआईएस के लिए वित्तीय माध्यम के रूप में काम करता था. वे जिले में दो मदरसे भी चला रहे थे, जिनका कथित तौर पर छात्रों को भड़काने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

Tags: Al Qaeda terrorist organization, Bangladesh, Pakistan ISI



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