पूर्णिया: नेचुरल फार्मिंग से किसान कमा रहे तगड़ा मुनाफा, स्वाद, सेहत और मुनाफे का अनूठा संतुलन



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पूर्णिया जिले के जलालगढ़ प्रखंड के दनसार गांव के किसान जितेंद्र कुमार कुशवाहा ने बिना रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के नेचुरल फार्मिंग कर एक मिसाल कायम की है. उन्होंने खेती की पारंपरिक पद्धतियों को छोड़कर नेचुरल फार्मिंग का रास्ता अपनाया, जिससे न केवल उनकी फसलें स्वादिष्ट होती हैं बल्कि सेहत के लिए भी लाभकारी हैं.

स्वाद का राज: पिता से मिली प्रेरणा
जितेंद्र बताते हैं कि एक दिन उन्होंने अपने पिता से पूछा कि पहले के समय जैसा स्वाद अब क्यों नहीं मिलता. उनके पिता ने कहा कि पहले के किसान बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के खेती करते थे, जिससे अनाज और सब्जियां ताजगी और पोषण से भरपूर होती थीं. यही बात उनके मन में घर कर गई और उन्होंने नेचुरल फार्मिंग की शुरुआत की.

2008 से कर रहे नेचुरल फार्मिंग
जितेंद्र 2008 से नेचुरल फार्मिंग कर रहे हैं और अब तक उन्हें कई सकारात्मक परिणाम मिले हैं. पहले वे ऑर्गेनिक खेती करते थे, लेकिन लागत अधिक होने के कारण इसे छोड़कर नेचुरल फार्मिंग की ओर रुख किया. इस विधि में वे एसपीके (SPK) मॉडल का उपयोग करते हैं, जिसमें देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार खाद का उपयोग किया जाता है.

जीवामृत का उपयोग: सेहत और मुनाफे का राज
नेचुरल फार्मिंग में जीवामृत का विशेष महत्व है. इसे तैयार करने के लिए 200 लीटर पानी में 10 किलो देसी गाय का गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 2 किलो गुड़, 1 किलो बेसन और बरगद या पीपल के पेड़ की जड़ की मिट्टी मिलाई जाती है. 48 घंटे में यह मिश्रण तैयार हो जाता है, जिसे फसलों पर छिड़काव किया जाता है.

कम लागत, ज्यादा मुनाफा
जितेंद्र बताते हैं कि एक देसी गाय के गोबर से वे 10 एकड़ तक की खेती कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि उनके एक एकड़ खेत से ही उन्हें सालाना दो लाख रुपये का मुनाफा होता है. वे चार बच्चों की उच्च शिक्षा का खर्च भी इसी खेती से निकालते हैं.

स्वास्थ्यवर्धक फसलें और गुणवत्ता
किसान जितेंद्र के अनुसार, नेचुरल फार्मिंग से उगाई गई फसलें पोषण से भरपूर होती हैं और पुराने जमाने के खाने जैसा स्वाद देती हैं. इस पद्धति से मक्का, गेहूं, साग-सब्जियां और स्ट्रॉबेरी जैसी फसलें आसानी से उगाई जा सकती हैं.

नए जमाने के लिए पुरानी पद्धति का महत्व
जितेंद्र ने बताया कि रासायनिक खादों के बढ़ते उपयोग के कारण फसलों का स्वाद और गुणवत्ता प्रभावित हुई है. उन्होंने एसपीके मॉडल के जरिए पुराने स्वाद को फिर से पाने का प्रयास किया है. उनका मानना है कि नेचुरल फार्मिंग ही एकमात्र तरीका है जिससे सेहत, स्वाद और मुनाफे का अनूठा संतुलन कायम रखा जा सकता है.

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