बक्सर: जैविक खाद से उपजाया जाएगा सोनाचूर चावल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिखरेगी खुशबू


संजय कुमार/बक्सर: धान का कटोरा कहे जाने वाले बक्सर की पहचान रहा सोनाचूर चावल अब जैविक खाद के उपयोग से उपजाया जाएगा. इसकी विशेष खुशबू न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी फैलेगी. यह कदम बिहार सरकार की “एक जिला, एक उत्पाद” योजना के तहत उठाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य बक्सर के इस विशेष धान को पुनः उसकी पुरानी पहचान दिलाना है. यह पहल बक्सर जिला कृषि विभाग द्वारा 2022 से लागू की गई है.

जैविक खेती को बढ़ावा
राजपुर प्रखंड के कृषि पदाधिकारी शशि रंजन प्रसाद यादव ने जानकारी दी कि “एक जिला, एक उत्पाद” योजना के तहत बक्सर जिले में सोनाचूर धान का चयन किया गया है. यह धान की एक ऐसी किस्म है, जो जैविक खेती के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें कम रसायन का उपयोग होता है. सरकार की जैविक कॉरिडोर फेज-1 योजना के तहत बक्सर में करीब 200 एकड़ भूमि पर जैविक विधि से सोनाचूर धान की खेती हो रही है, जिसका महक और स्वाद विशेष रूप से अनोखा है.

स्थानीय ब्रांडिंग और बिक्री
सोनाचूर धान से तैयार चावल को बक्सर में “बक्सर वाला सोनाचूर” के नाम से ब्रांडिंग कर डुमराव फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के जरिए बेचा जा रहा है. इसके स्थायी बिक्री केंद्र चरित्रवन में जिलाधिकारी निवास के सामने स्थित है. अब यह चावल आरा, पटना, रांची, वाराणसी, कोलकाता और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी पहुंच रहा है.

आगे की योजनाएं और विस्तार
जैविक कॉरिडोर फेज-2 के तहत 1500 एकड़ में से 500 एकड़ में जैविक सोनाचूर चावल की खेती का विस्तार करने की योजना है. इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण और प्रचार-प्रसार समय-समय पर किया जा रहा है. इस चावल को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने की योजना भी बनाई गई है. कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ टाई-अप कर इसकी ऑनलाइन मार्केटिंग की भी योजना प्रस्तावित है.

बक्सर को जैविक सोनाचूर की नगरी बनाने का लक्ष्य
बक्सर के किसानों को सोनाचूर चावल का उत्पादन करने के लिए एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) से जोड़ा जा रहा है, ताकि इस चावल का उत्पादन और निर्यात राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जा सके. आने वाले समय में बक्सर को जैविक सोनाचूर चावल की नगरी कहा जाने लगे तो इसे अतिश्योक्ति नहीं माना जाएगा. बक्सर के सोनाचूर चावल का बढ़ता प्रचार-प्रसार इसे एक नई ऊंचाई तक ले जाएगा, जिससे न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी बल्कि यह चावल दुनिया भर में अपनी खास पहचान बना सकेगा.

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