बिजली से चलती है लोहे की ट्रेन…फिर भी नहीं लगता किसी को करंट, जानिए कैसे?



<p>एक समय था जब दुनिया में ट्रेन कोयले से दौड़ती थी. फिर बने बिजली वाले इंजन, इसके बाद ट्रेन पटरियों पर बिजली से दौड़ने लगी. आपने भी कई बार देखा होगा कि ट्रेन को सीधे बिजली के तारों से करंट मिलता है, जिससे वह सरपट दौड़ती है. हालांकि, अब सवाल उठता है कि आखिर लोहे की बनी पूरी ट्रेन में जब सीधा बिजली की तारों से करंट पहुंचता है तो यह करंट ट्रेन में बैठे लोगों को क्यों नहीं लगता. चलिए अब आपको इसके पीछे की साइंस बताते हैं. इसके साथ ही आपको बताएंगे कि वो कौन सा पुर्जा है जो पूरे ट्रेन में करंट को फैलने से रोकता है.</p>
<h3>कैसे ट्रेन में करंट नहीं फैलता</h3>
<p>ये सवाल शायद ट्रेन में बैठने वाले हर शख्स के मन में आता होगा कि लोहे की बनी इस ट्रेन में आखिर करंट फैलता क्यों नहीं है. तो आपको बता दें, दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ट्रेन के इंजन को बिजली के तारों से जो करंट मिलता है वो सीधे ना मिलकर पेंटोग्राफ के जरिए मिलता है. पेंटोग्राफ वही चीज है जो ट्रेन के इंजन के ऊपर लगा होता है और सीधे बिजली के तारों से सटा होता है. यानी इसी एक पुर्जे की वजह से ट्रेन में करंट नहीं पहुंचता. इसे और सरल तरीके से समझिए- दरअसल, इंजन पर लगे पेंटोग्राफ का सीधा कनेक्शन बिजली के तारों से होता है. वहीं पेंटोग्राफ के नीचे इंसुलेटर्स लगे रहते हैं जो &nbsp;करंट इंजन की बॉडी में फैलने से रोकते हैं.</p>
<h3>विदेश भी जाती हैं भारतीय ट्रेन</h3>
<p>भारतीय ट्रेन सिर्फ भारत के भीतर ही नहीं चलतीं, बल्कि कुछ ट्रेनें विदेश भी जाती हैं. इनमें मैत्री एक्सप्रेस, बंधन एक्सप्रेस और मिताली एक्सप्रेस शामिल हैं. मैत्री एक्सप्रेस की बात करें तो ये ट्रेन भारत और बांग्लादेश के बीच चलती है. ये ट्रेन पश्चिम बंगाल के कोलकाता से बांग्लादेश के ढाका तक जाती है. वहीं बंधन एक्सप्रेस बांग्लादेश और भारत के बीच चलती है. इस ट्रेन को 2017 में शुरू किया गया था. वहीं मिताली एक्सप्रेस की बात करें तो ये ट्रेन भारत के जलपाईगुड़ी और सिलिगुड़ी से बांग्लादेश के ढाका तक चलती है. यह ट्रेन हर हफ्ते में एक बार चलती है. आपको बता दें, इस ट्रेन के जरिए 513 किलोमीटर तक का सफर तय किया जाता है.</p>
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