बिहार के किसान ने कर दिया कमाल, इस तकनीक से की फार्मिंग, आज सालाना कमाई 15 लाख रुपए


दीपक कुमार/ बांका: समेकित कृषि प्रणाली किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. किसान इस प्रणाली के जरिए फसल उगाने के साथ कृषि से जुड़े अन्य व्यवसाय भी कर सकते हैं. यह ऐसी प्रणाली है जिसमें  कम लागत तो लगती  ही है, साथ ही कम समय में बेहतर मुनाफा भी मिलता है. हाल के दिनों में  कृषि की यह नवीनतम प्रणाली किसानों को न सिर्फ अपनी ओर आकर्षित कर रही है, बल्कि किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ा भी दिया है. इंटीग्रेटेड फार्मिंग अपनाकर किसान खेती के साथ-साथ बागवानी, पशुपालन, मछली पालन कर सकते हैं. इसको इस तरह समायोजित किया जाता है कि ये सभी एक-दूसरे के पूरक बनकर किसान को लगातार आमदनी देते रहे. बांका जिले में एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान है, जो समेकित खेती के जरिए मालामाल हो रहा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बांका जिले  के चांदन प्रखंड अंतर्गत खेरवा गांव निवासी विभूति भूषण सिंह की, जो 150 एकड़ में समेकित कृषि प्रणाली के जरिए अपनी खेती कर रहे हैं और सालाना 15 लाख से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं.

समेकित कृषि प्रणाली अपनाकर 150 एकड़ में करते हैं खेती

विभूति भूषण सिंह 150 एकड़ में मछली पालन के अलावा बागवानी और सीजनल सब्जी की खेती जैविक तरीके से करते हैं. उन्होंने बताया कि खेरवा गांव घने जंगल और पहाड़ों के बीच बसा हुआ है. यहां की अधिकांश भूमि पथरीली है. 1994 से पूर्व तक यह बंजर ही रहती थी. शुरूआत में काफी मेहनत करनी  पड़ी और उपज भी कम होती थी. जिला कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केन्द्र ने मदद की तो राह आसान हो गयी. अब यही पथरीली भूमि सोना उगल रही है. उन्होंने बताया कि 150 एकड़ में से 10 एकड़ में 10 तालाब खुदवाए हैं. इसके अलावा  3 हजार सखुआ व 2 हजार सागवान और महोगिनी के इमारती पेड़ लगाए हैं. फलदार पेड़ में 300 आम, 300 अमरूद और 300 पपीता के लगाए हैं. इसके अलावा 100 नींबू और 50 अन्य प्रकार के पलदार पौधे लगाए हैं. उन्होंने बताया कि पथरीली भूमि पर सब्जी की खेती कर रहे हैं. जिसमें आलू, गोभी, बैगन, टमाटर सहित अन्य सब्जी शामिल है.

सालाना 15 लाख से अधिक की हो जाती है कमाई

विभूति भूषण सिंह ने बताया कि पथरीली भूमि में नमी नहीं रह पाती है, जिस कारण पटवन की समस्या से जूझना पड़ता है. ढलान के चलते खेत में पानी टिकता नहीं है. जानवर भी आकर फसल को नष्ट कर देते हैं. उन्होंने बताया कि खेती पर आश्रित न रहकर साहिवाल और देसी नस्ल की गाय को पाल रहे हैं. इससे एक लाख आ जाता है. उन्होंने बताया कि 10 तालाब में रोहू, कातल, मिरगन, रूपचंद सहित अन्य वैरायटी के पछली का पालन भी कर रहे हैं. सप्ताह में एक दिन तालाब से मछली निकलती है और स्थानीय व्यापारी ही ले जाते हैं. ये मछलियां 150 रुपए  से लेकर 200 रुपए  किलो तक बिकती है. मछली से 8 लाख तक की कमाई कर लेते हैं. वहीं गाय के गोबर से कंपोस्ट तैयार कर फलदार पेड़ में डाल देते हैं. इसके अलावा बागवानी, सब्जी और अन्य फसलों की खेती कर सालाना 15 लाख तक की कमाई हो जाती है.

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