बिहार में दशकों बाद यहां दिखा यह विलुप्त पक्षी, देखते ही देखते नजरों से हो गया औझल
अंकित कुमार सिंह/सीवान: बिहार के सीवान में कई दशक के बाद पहली बार एक दुर्लभ व विलुप्त प्रजाति की पक्षी को देखा गया. यह पक्षी कोई और नहीं बल्कि हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध था. जिसे अक्सर लोगों ने कहानियों में सुना है.
वहीं जीव असल में दिख गया. वर्तमान में गिद्ध सिर्फ नाना-नानी और दादा-दादी का कहानियों तक सीमित होकर रह गया है. आलम यह है कि हीं नहीं बल्कि आस-पास जिलों में गिद्ध की संख्या शून्य बताई जाती है. हालांकि दशकों बाद जिले के रघुनाथपुर के चवर में हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध देखा गया. जब तक लोग देखने के लिए एकत्रित हो पाते तब तक उड़ चुका था.
कौतूहल भरी नजरों से देखते रह गए ग्रामीण
विलुप्त पक्षी हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध को जब चवर में शुक्रवार को ग्रामीणों ने खेत के मेढ़ पर बैठा देख लिया तो कौतुहल का विषय बन गया. देखते हीं देखते इसकी सूचना गांव वालों को लगी. हालांकि जब तक लोग पहुंचते गिद्ध उड़ गया था. हालांकि जो लोग पहले से वहां मौजूद थे वे कौतूहल भरी नजरों से देखते रहे. स्थानीय लोग वन विभाग को सूचना देना चाहा, लेकिन गिद्ध मात्र 10 मिनट में हीं उड़ गया. जिस वजह से वन विभाग के पदाधिकारी ससमय नहीं पहुंच सके.
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22 प्रजातियों में से कुछ हो गए हैं बिल्कुल विलुप्त
वन रेंज अधिकारी शशिभूषण कुमार के मुताबिक गिद्ध एक अपमार्जक पक्षी है. वैसे तो गिद्धों की 22 प्रजातियां है. कुछ बिल्कुल खत्म हो चुकी है और कुछ प्रजातियों के जीव एक आधे देखने को मिल जाते हैं. यह भी शायद उन्हीं में से एक था. कृषि कार्य एवं वृक्षों की कटाई एवं छटाई के कारण गिद्धों के घोंसले बनाने के प्रमुख स्थान तेजी से घट रहे हैं. कुछ पक्षी विशेषज्ञ अज्ञात बीमारियों को भी इन गिद्धों की आबादी के लिए खतरा मान रहे हैं. पशु चिकित्सा में महत्वपूर्ण व व्यापक उपयोग में की जाने वाली दवाई डाइक्लोफेनेक भी गिद्धों के लिए हानिकारक है.
गिद्धों में सूंघने की होती है विलक्षण शक्ति
वन रेंज अधिकारी शशिभूषण कुमार के मुताबिक विलुप्त प्रजाति के गिद्धों में देखने एवं सूंघने की विलक्षण शक्ति होती है. लगभग 10 कोस तक फैलने वाली गंध एवं दुर्लभ पानी को गिद्ध घने बीहड़ों के ऊंचे पेड़ों पर बैठकर पता लगा लेते हैं. आज से 15 से 20 साल पहले यह सर्वाधिक देखने को मिलते थे. हालांकि 15 से 20 सालों में इनकी तादाद काफी कम हुई है और यह विलुप्त होते चले गए.आज इक्का-दुक्का कहीं देखने को विरले ही मिल जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 04, 2023, 23:03 IST