बुंदेलखंड का इकलौता उत्तरमुखी सरस्वती मंदिर, यहां बसंत पंचमी पर होते हैं 14 संस्कार


अनुज गौतम/सागर: माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी मनाई जाती है. इस बार 14 फरवरी बुधवार को सरस्वती मंदिरों में बसंत पंचमी मनाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी. बुंदेलखंड के सागर के मंदिर में उत्तर मुखी एकल सरस्वती प्रतिमा है. मान्यता है कि मां सरस्वती उत्तर दिशा की अधिष्ठात्री हैं. यहां उत्तर मुखी मां का पूजन करने से बल-बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है. यह मंदिर 53 साल पुराना है.

बसंत पंचमी पर होंगे 14 संस्कार
बसंत पंचमी के दिन सागर के इतवारा बाजार में स्थित उत्तर मुखी सरस्वती मंदिर में दिन भर कार्यक्रम चलते हैं, जिसमें 14 संस्कार पूर्ण करवाए जाते हैं. पुजारी यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि मंदिर में चूड़ा कर्म संस्कार, कर्ण छेदन संस्कार, विद्या विन्यास संस्कार, मुंडन नामकरण संस्कार, सोनक सूत्र के रूप में समाहित किए जाते हैं. जिन बच्चों का कर्ण छेद करना है उनके कर्ण छेदन होता है. जिनको अक्षर आरंभ करना है, उनके लिए स्लेट-पेंसिल या कॉपी-पेन लिखकर कराया जाता है. जिन बच्चों के लिए वर्ण विन्यास करना है, अनार की लकड़ी से उनकी जीभ के अग्रभाग पर ओम के साथ पूरा वाक्यांश लिखा जाता है. इससे मातेश्वरी बच्चे को शुद्ध भाव से बोलने की शक्ति, वाकपटुता दें. उस दिन और भी संस्कार होते हैं. सीमांतक संस्कार होता है. जात कर्म संस्कार, नामकरण संस्कार होते हैं.

9 साल में हो पाया था मंदिर का निर्माण
पुजारी जी ने बताया कि सन 1962 में सरस्वती मंदिर की नींव बरगद का पेड़ लगाकर रखी गई थी. 1971 में सागर के तत्कालीन सांसद मणि भाई जेठा भाई के विशेष सहयोग और पिताजी देव प्रभाकर चौबे के द्वारा उत्तर मुखी प्रतिमा रखी गई. यह आदम उदय एकल प्रतिमा है. इसका आशय आधा शरीर बैठा हुआ आधा खड़ा हुआ है. वहीं एकल से तात्पर्य है कि जिसमें केवल एक देवी की आराधना हो.

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