बेरोजगारों का टेम्परेचर मत भूलिए भइया जी

एक बात वरिष्ठ शिक्षक होने के नाते भइया जी उर्फ सर आपको समझनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को नौकरी की चिंता है उनके अपने परिवार हैं, चाहे वो गेस्ट शिक्षक हो, तदर्थ हो, स्कॉलर हो या बेरोजगार हो। ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा डिग्रियां अर्जित करने में लगाने वाले लोग स्थायी नियुक्ति चाहेंगे।
जब गेस्ट शिक्षक और बेरोजगार लोग स्थायी नियुक्ति की बात करें तो उन्हें यह तो मत ही कहिये कि उनके लिए ‘भी’ सीटें बचेंगी। यह आपका ‘भी’ बेरोजगारी के इस दौर में व्यवस्था के दिये घावों पर नमक छिड़कने जैसा है। आप खुद को सिस्टम समझ बैठे हैं क्योंकि आपकी भाषा ठीक वैसे ही है।
आप कह रहे हैं कि जो जितने भी समय से पढ़ा रहा है उसको वहीं स्थायी कर दो …यह ‘वहीं’ पर आपका अधिकार है क्या.. यह ‘वहीं’ सरकारी पद है आपके घर की कुर्सी नहीं है, जो दूसरों को बोल रहे हैं कि जो सीट बचेगी वो आपके लिए होंगी।
आप विशुद्ध रूप से डर की राजनीति करते हैं अपने लोगों को डराते हैं कि प्रक्रिया हुई तो बाहर हो जाओगे। अब यह बात कितनी हास्यस्पद है क्योंकि कौन सी ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जितने लोग आवेदन करेंगे सभी का हो जाएगा। प्रत्येक आवेदन करने वाला इस सत्य को जानता है कि किसी एक का होगा किसी एक नहीं।
अब जाहिर सी बात है जिनके पास भी पद के लिए न्यूनतम आहर्ता है वह उस पद के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकता है और अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी जानता है।
आपके थर्मामीटर में खामी है जो सिर्फ आपके अपने लोगों कर टेम्परेचर को नापता है पर बेरोजगारों के तापमान का तो आप आंकलन भी नहीं कर सकते वो तो सबसे अधिक सिस्टम का मारा है।
सीनियर एक्टिविस्ट हैं उम्मीद है अपनी बातों में गंभीरता रखेंगे बेरोजगारों बनाम एडहॉक का दर्द मत समझाइए। दर्द सबका है, सबको चिंता है, सबको नौकरी चाहिए क्योंकि अपने परिवार देखने है।
आप अपनी डर की दुकान चलाते रहिये लोगों के पास अपनी समझ है। 👍

डॉ. कुमार गौरव

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