‘बैन लगा सकते हैं…’ चाबहार पोर्ट पर भारत-ईरान की डील से अमेरिका को लगी मिर्ची, प्रतिबंधों की दी चेतावनी
वाशिंगटन. भारत ने सोमवार को ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट स्थित चाबहार बंदरगाह पर शाहिद बेहिश्ती टर्मिनल के विकास और संचालन के लिए ईरान के साथ 10 साल के लिए डील की है. भारत के लिए यह सौदा बेहद अहम है और इसे पाकिस्तान में चीन द्वारा विकसित ग्वादर पोर्ट की काट के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि अमेरिका को यह करार पसंद नहीं आ रहा और उसने भारत पर भी प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है. अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर हुए इस समझौते पर नाराजगी जताई है.
विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस को भारत-ईरान डील को लेकर सवाल पर कहा, ‘ईरान पर हमने प्रतिबंध लगा रखा है और हम उसे लागू रखे हुए हैं. कोई भी देश… कोई भी… जो ईरान के साथ बिजनेस डील करता है, उन्हें उन संभावित जोखिमों और प्रतिबंधों के के बारे में पता होना चाहिए, जो उन पर लग सकते हैं.’
वहीं इसके बाद पत्रकार ने सवाल किया कि यह बंदरगाह एक तरह से पाकिस्तान में चीन द्वारा विकसित किए जा रहे ग्वादर पोर्ट की काट की तरह देखा जा रहा है तो क्या इसे मद्देनजर रखते हुए वाशिंगटन प्रतिबंधों से नई दिल्ली को कोई छूट दे सकता है, तो पटेल ने बस एक शब्द में जवाब दिया कि ‘नहीं…’
भारत के लिए क्यों अहम है चाबहार पोर्ट
बता दें कि भारत ईरान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों तक अपनी पहुंच आसान बनाने के लिए चाबहार पोर्ट पर एक टर्मिनल विकसित कर रहा है. ईरान के साथ नया समझौता पाकिस्तान में कराची और ग्वादर बंदरगाह को दरकिनार करते हुए ईरान के जरिए दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच एक कारोबार का रास्ता खोलेगा और इससे मीडिल ईस्ट के साथ व्यापार के लिए कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी.
यही कारण है कि ओमान की खाड़ी में स्थित रणनीतिक रूप से बेहद अहम इस बंदरगाह के विकास में भारत 120 मिलियन डॉलर निवेश करने वाला है. हालांकि, इस सौदे अतीत में अमेरिका प्रतिबंधों के कारण कई बाधाओं का सामना करना पड़ा है.
वहीं भारत और ईरान अब अपने आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए तत्पर हैं, लेकिन अमेरिका की यह ताजा चेतावनी दोनों देशों के सामने आने वाली चुनौतियों की याद दिलाता है. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि चाबहार पोर्ट में निवेश को बढ़ावा देकर भारत का लक्ष्य खास तौर से इस क्षेत्र में चीन की मौजूदगी को बेअसर करना भी है. यह एक ऐसा अभियान है, जो लंबे समय में अमेरिकी हितों की भी पूर्ति कर सकता है. ऐसे में देखना होगा कि अमेरिका अब आगे क्या कदम उठाता है.
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FIRST PUBLISHED : May 14, 2024, 07:04 IST