भारतीय संस्कृति की आत्मा का प्रवेश द्वार है भरत मुनि का नाट्यशास्त्र- सोनल मानसिंह


पद्मविभूषण से सम्मानित प्रख्यात नृत्यांगना सोनल मान सिंह ने कहा है कि भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नई शिक्षा नीति का हिस्सा होना चाहिए क्योंकि यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति की आत्मा का प्रवेश द्वार है.
सोनल मानसिंह ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख सभागार में भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के सम्पूर्ण हिंदी अनुवाद का लोकार्पण करते हुए यह बात कही. संस्कृत के प्रकांड पंडित एवम् राष्ट्रीय संस्कृत विश्विद्यालय के कुलपति राधावल्लभ त्रिपाठी ने इसका अनुवाद किया है जिसे एनएसडी ने प्रकाशित किया है. यह पहला अवसर है जब उसका सम्पूर्ण अनुवाद हिंदी में आया है.

संगीत नाट्य अकादमी की पूर्व अध्यक्ष सोनल मान सिंह ने कहा कि वह शास्त्र की जानकार नहीं हैं बल्कि शास्त्र का प्रयोग करती रही हैं. उन्होंने कहा कि बिना प्रयोग के शास्त्र का कोई अर्थ नहीं है.

पद्मविभूषण से सम्मानित नृत्यांगना ने कहा कि भारत की संस्कृति में शास्त्र का ही नहीं बल्कि उसकी परंपरा में एक-एक चीज का ख्याल रखा गया है. नाट्य शास्त्र में संगीत, नाटक, नृत्य सब कुछ है. इसे पंचम वेद कहा गया है. उन्होंने कहा कि हम सबका जीवन एक नाटक है. हम खुद एक पात्र हैं और मुखौटे लगाते हैं, अभिनय करते हैं. हम आंगिक भाव भी प्रकट करते हैं. यह नाट्यशास्त्र भारत की आत्मा को समझने का मुख्य द्वार ही नहीं बल्कि राजमार्ग भी है.

सोनल मानसिंह ने कहा कि भारत की संस्कृति को समझने के लिए नाट्यशास्त्र सबसे उपयुक्त ग्रंथ है. राधावल्लभ त्रिपाठी भारतीय ज्ञान परंपरा के जाने-माने अध्येयता हैं. उन्होंने समर्पित भाव से इस शास्त्र का हिंदी में अनुवाद किया है.

इस मौके पर राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि वह इसके अनुवाद की योजना से दस साल से जुड़े रहे और एक दशक बाद इसका अनुवाद कर पाए. उन्होंने कहा कि यह नाट्यशास्त्र दुनिया का सबसे बड़ा प्राचीन ग्रंथ है. यह केवल नाटक का ग्रंथ नहीं बल्कि संगीत, नृत्य आदि भी इसमें है और पूरी संस्कृति इसमें समाई है.

उन्होंने कहा कि इस ग्रंथ की तीन प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां है और कई लोगों ने इसके अलग-अलग अध्याय अनुदित किये हैं. उन्होंने इसका सम्पूर्ण अनुवाद एक जगह किया है.

राष्ट्रीय संस्कृत विश्विद्यालय के कुलपति ने कहा कि इस ग्रंथ के पाठ की भी समस्याएं हैं. इसके सात प्रकाशित संस्करण हैं. उनमें बहुत अंतर भी हैं. उन्होंने कहा कि वह खुद इसका एक मानक पाठ तैयार करने में लगे हैं और 55 साल से अध्ययन कर रहे हैं. नाट्यशास्त्र के 37 अध्याय हैं और 150 पारिभाषिक शब्द हैं.

उन्होंने बताया कि बाबू लाल शास्त्री ने 4 खंडों में इसका अनुवाद किया पर वे रंगमंच के आदमी नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके अनुवाद में भी कुछ गलतियां हो सकती हैं.

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सचिव डॉक्टर सच्चिदानंद जोशी ने भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को भारतीय संस्कृति के लिए ही नहीं बल्कि पाठ्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ बताते हुए कहा कि आईजीएनसीए के मुख्य प्रवेश द्वार पर उन्होंने भरत मुनि की प्रतिमा लगवाई है. भारत में और कहीं यह प्रतिमा नहीं मिलेगी.

उन्होंने कहा कि यह नाट्यशास्त्र केवल संगीत, नृत्य और नाटक से जुड़ा ग्रंथ नहीं बल्कि प्रबंधन विद्या और वास्तुशिल्प से भी जुड़ा है. यह हम सबके जीवन का एक संपूर्ण ग्रंथ है क्योंकि नाटक का सम्बंध जीवन से है. हम अपने जीवन के नाटक के पात्र, अभिनेता, लेखक और निर्देशक भी हैं.

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