भीमराव अंबेडकर ने क्यों बौद्ध धर्म अपनाया? सिख, ईसाई या इस्लाम धर्म को क्यों नहीं चुना


14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षाभूमि में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने 3 लाख 65 हजार फॉलोअर्स के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. एक हिंदू के तौर पर पैदा हुए डॉ. अंबेडकर ने अपनी जिंदगी के आखिरी सालों में तय कर लिया था कि वो हिंदू के तौर पर नहीं मरेंगे. धर्म परिवर्तन से पहले उन्होंने इस्लाम से लेकर ईसाई जैसे धर्मों का गहराई से अध्ययन किया.

अंबेडकर ने इस्लाम क्यों नहीं अपनाया?
उन्होंने इस्लाम को हिंदू धर्म जैसा ही माना, जहां छुआछूत व्यापक समस्या थी. शशि थरूर अंबेडकर की जीवनी में लिखते हैं कि डॉ. अंबेडकर ने संभवत: इस्लाम को इसलिये ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया क्योंकि वह एक ‘बन्द धार्मिक व्यवस्था’ थी और अंबेडकर मुसलमानों और गैर मुसलमानों में ‘भेद करनेवाली समझ’ का विरोध करते थे. ये उनकी ऐसी अनुभूति थी जिसके प्रमाण बंटवारे के बाद पाकिस्तानी मुसलमानों के व्यवहार से मिल गये थे. बंटवारे से अनुसूचित जाति के लोग भी प्रभावित हुए. नए बने पाकिस्तान में अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों पर भारी दबाव था कि या तो वे धर्म परिवर्तन करें या फिर जान दे दें.

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1947-48 में जब पाकिस्तान में दलितों पर उत्पीड़न और अत्याचार की तमाम ख़बरें आने लगीं तो उस समय कैबिनेट मन्त्री के पद पर आसीन अंबेडकर ने कड़ी निंदा करते हुए एक बयान जारी किया. जिसमें अनुसूचित जातियों से कहा गया कि पाकिस्तानी मुसलमान उनके दोस्त नहीं, और अपनी सलामती के लिए वे भागकर भारत चले आएं. उन्होंने सार्वजनिक रूप से नेहरू से अपील की कि वे उनकी भारत वापसी की व्यवस्था करें. इस प्रकरण के बाद अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar) के इस्लाम (Islam) स्वीकार करने की संभावना ना के बराबर रह गई थी.

ईसाई धर्म से क्या दिक्कत थी?
डॉ. अंबेडकर की कमोबेश यही राय ईसाई धर्म को लेकर थी. थरूर लिखते हैं कि ईसाई धर्म ने भी अंबेडकर को ज्यादा प्रभावित नहीं किया. उनका कहना था कि ईसाई धर्म भी अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई में असमर्थ है. वो अमेरिका के नीग्रो लोगों को दासता और उत्पीड़न का उदाहरण देते थे. इससे पहले अम्बेडकर ने ईसाई धर्म में परिवर्तन का इस आधार पर विरोध किया था कि इससे ‘भारत पर ब्रिटेन की पकड़ और मज़बूत ही होगी…’

और सिख धर्म के बारे में क्या राय थी?
थरूर लिखते हैं कि अपने समतावादी दर्शन की वजह से अंबेडकर को सिख धर्म ज़्यादा आकर्षक लगता था. साल 1935 में जब उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से धर्म परिवर्तन की धमकी दी थी, तब उन्होंने इस विषय पर काफ़ी गंभीरता से विचार किया था कि वंचित वर्गों के धर्म परिवर्तन के लिए सबसे अच्छा धर्म कौन-सा होगा. उन्होंने कहा कि अगर वे इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करते हैं तो ‘वे न केवल हिन्दू धर्म से बाहर निकल जायेंगे, बल्कि हिन्दू संस्कृति से भी बाहर निकल जायेंगे.

दूसरी तरफ़ अगर वे सिख बन जाते हैं तो वे हिन्दू संस्कृति के भीतर ही रहेंगे. हालांकि इसी बीच सिख धर्मगुरुओं से संवाद के चलते सिख धर्म को लेकर भी अंबेडकर के मन में संदेह पैदा हो गया. अंबेडकर को लगता था कि पंजाब में छुआछूत की समस्या गंभीर थी और सिख भी इससे अछूते नहीं थे. ऐसे में वे धर्म परिवर्तन के बाद खुद को दूसरे दर्ज के सिख के तौर पर नहीं देखना चाहते थे.

File:Dr B R Ambedkar as Barrister in 1922.jpg - Wikimedia Commons

बौद्ध धर्म में क्या पसंद आया?
इस्लाम, ईसाई और सिख धर्म पर विचार करने के बाद अंबेडकर के सामने एक ही धर्म बचा रह गया था. वो था बौद्ध धर्म, जिसके प्रति वह लंबे अरसे से आकर्षित रहे थे. शशि थरूर लिखते हैं कि जब अंबेडकर को यक़ीन हो गया कि दलितों को हिंदू व्यवस्था में कभी भी समान दर्जा नहीं मिल पायेगा तब वह उस वैकल्पिक धर्म की तलाश करने लगे, जिसमें धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों के लिए जगह हो, और एक ऐसी नैतिक सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा हो जिसमें भेदभाव और शोषण को स्वीकृति न दी जाती हो, जहां जन्म के आधार पर सामाजिक वर्गीकरण न किया गया हो. बौद्ध धर्म इस लिहाज बेहतर नजर आया.

मई 1956 में डॉ. अंबेडकर ने ऐलान कर दिया कि अपने परिवार और समर्थकों के साथ वह उसी साल अक्टूबर के महीने में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेंगे. धर्म परिवर्तन की पूर्व संध्या पर उन्होंने प्रेस को संबोधित करते हुए बौद्ध धर्म को चुनने का कारण कुछ यूं बताया…

बौद्ध धर्म का जन्म भारत की धरती पर हुआ है और यह भारतीय संस्कृति का एक प्रामाणिक अंग है. मेरी इच्छा है कि मैं गौतम बुद्ध के मूल सिद्धांतों का पालन करूं और बौद्ध धर्म के दो परस्पर पंथ हीनयान या महायान के विवाद में पड़ने की कोई मंशा नहीं है

धर्म परिवर्तन वाले दिन क्या-क्या हुआ?
4 अक्टूबर, 1956 को नागपुर की दीक्षाभूमि में उत्तर प्रदेश के रहने वाले वयोवृद्ध बौद्ध संन्यासी भिक्खु चन्द्रामणि ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया. उसी दिन बुराई पर अच्छाई और भगवान राम की विजय का त्योहार दशहरा भी मनाया जा रहा था. सिल्क की सफ़ेद धोती और कोट पहने अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) ने भिक्षु के समक्ष ‘त्रिरत्न’ और ‘पंचशील’ दोहराकर बुद्ध की प्रतिमा के सामने साष्टांग नमन की मुद्रा में प्रतिमा के चरणों में सफ़ेद कमल के फूल अर्पित कर दिये थे और इस तरह अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली थी.

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उसके बाद उन्होंने धर्म परिवर्तन के साक्षी बनने आये अपने समर्थकों को संबोधित किया. अपनी 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराते हुए अंबेडकर ने औपचारिक रूप से कहा, ‘मैं हिन्दू धर्म का परित्याग करता हूं…’

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