मंदिर में होता है भगवान राम का जन्म, बाकी लीला मैदान में, ये है गढ़वाल की ऐतिहासिक रामलीला


श्रीनगर गढ़वाल. देवभूमि उत्तराखंड अपनी संस्कृति, सभ्यता और इतिहास के लिए विश्व विख्यात है. यहां की सांस्कृतिक छाप न केवल देश में बल्कि विदेशों तक फैली हुई है. उत्तराखंड का गढ़वाल क्षेत्र भी अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां सालभर अलग-अलग प्रकार के कौथिक और लीलाओं का आयोजन किया जाता है. गढ़वाल की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले श्रीनगर गढ़वाल में भी हर साल रामलीला का आयोजन होता है. कहा जाता है कि यह गढ़वाल क्षेत्र की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक रामलीलाओं में से एक है. श्रीनगर के बाद ही पूरे गढ़वाल क्षेत्र में रामलीला का मंचन शुरू हुआ. हालांकि गढ़वाल के अन्य जिलों के दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचने पर वहां के लोगों ने रामलीला के मंचन में कुछ बदलाव किए.

40 साल से श्रीनगर गढ़वाल की रामलीला का निर्देशन कर रहे वीरेंद्र रतूड़ी ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि श्रीनगर नगर में रामलीला का मंचन 1896 से शुरू हुआ था. तब से लगातार रामलीला का आयोजन हो रहा है. इस साल 3 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक रामलीला का 128वां मंचन शुरू होगा.

गढ़वाल में श्रीनगर से हुई रामलीला मंचन की शुरुआत
वीरेंद्र रतूड़ी बताते हैं कि पहले रामलीला पुराने श्रीनगर में होती थी, लेकिन विरही ताल के टूटने के बाद आई बाढ़ में श्रीनगर बह गया. तब से रामलीला का आयोजन नए श्रीनगर के रामलीला मैदान में हो रहा है. गढ़वाल क्षेत्र में पहले रामलीला का आयोजन नहीं हुआ करता था. सबसे पहले श्रीनगर में रामलीला का आयोजन हुआ और इसके बाद ही गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में रामलीला का मंचन शुरू हुआ.

कमलेश्वर महादेव मंदिर में होता है राम जन्म
उन्होंने बताया कि प्रभु श्रीराम का जन्म, ताड़िका वध और मारीच के भागने जैसी लीलाओं का मंचन सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में होता है. यह मंचन पुराने श्रीनगर के समय से होता आ रहा है. सीता स्वयंवर से रामलीला का मंचन श्रीनगर के रामलीला मैदान में आयोजित होता है. उन्होंने कहा कि श्रीनगर की रामलीला एक संगीत प्रधान रामलीला है, जो राधेश्याम, चौपाई, राग-रागिनी और विहाग पर आधारित है. बाद में कई गीत भी रामलीला में जोड़े गए, जिनमें से कुछ गीत ऐसे हैं, जो केवल श्रीनगर में ही गाये जाते हैं. श्रीनगर की रामलीला में लोगों की उपस्थिति और सहभागिता दोनों ही बनी रहती है.

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