मधुमक्खी पालन से क्यों दूर हो रहें हैं बिहार के किसान, सामने आई कई वजह


रिपोर्ट- कुंदन कुमार

गया: बिहार में कई ऐसे किसान हैं जो मधुमक्खी पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. एक समय में गया जिले में भी 15 से 20 की संख्या में बड़े मधुमक्खी पालक थे और उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से गया के किसान मधुमक्खी पालन को छोड़ रहे हैं. आज की तिथि में गया में तीन से चार किसान ही बचे हैं जो बड़े स्तर पर मधुमक्खी पालन करते हैं. हालांकि, हर साल सीजन में जिले में 20 से 25 किसान इस व्यवसाय से जुड़ते हैं और तीन चार महीने के बाद इसे छोड़ देते हैं.

मधुमक्खी पालन के व्यवसाय से जुड़े किसानों को अच्छी आमदनी नहीं होना एक वजह माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों से गया के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है जिस कारण मधुमक्खी पालन के व्यवसाय से जुड़े किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. दूसरी वजह यह है कि यहां बाजार नहीं है और किसानों को शहद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता. यहां उत्पादन किए गए शहद को दूसरे राज्य में भेजना पड़ता है जिससे उसकी ट्रांसपोर्टेशन लागत आ जाती है. तीसरी वजह यह सामने आई है कि कई किसान जो सीजन में मधुमक्खी पालन करते हैं वह प्रशिक्षित नहीं होते हैं. इस वजह से कुछ दिनों के बाद ही वह इस व्यवसाय से दूर हो जाते हैं.

मधुमक्खी पालन के व्यवसाय से दूर हो रहे किसानों के बारे में जानकारी देते हुए गया के एक बड़े मधुमक्खी पालक चितरंजन कुमार बताते हैं कि किसानों को अब इस व्यवसाय में बचत नहीं हो रही है. साल भर इस व्यवसाय में मेहनत करना होता है और शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों को माइग्रेशन करवाना पड़ता है. गया का जलवायु भी अब इसके लिए उपयुक्त नहीं है. गर्मी के दिनों में मधुमक्खियां को जीवित रखने के लिए चीनी का घोल दिया जाता है जिसमें किसानों को काफी नुकसान हो जाता है. इन्होंने बताया कि इस व्यवसाय में वैसे लोग जुड़ जाते हैं जिनके पास प्रशिक्षण नहीं होता. मात्र 4 से 5 दिन का प्रशिक्षण लेकर वह इस व्यवसाय से जुड़ते हैं और कुछ ही दिनों में इसे छोड़ देते हैं.

उनका मानना है कि अगर सरकार सही मायने में मधु क्रांति लाना चाहती है तो ऐसे किसानों को लाभ दे जो पूर्व में मधुमक्खी पालन कर चुके हैं और किसी कारण से इस व्यवसाय को छोड़ चुके हैं. प्रशिक्षण प्राप्त किसानों को ही इस योजना का लाभ दे ताकि इस व्यवसाय को अच्छे ढंग से किया जाए.

इस संबंध में गया जिला उद्यान पदाधिकारी तबस्सुम परवीन बताती हैं कि गया और बिहार के किसान पिछले कुछ वर्षों से इस व्यवसाय से दूर हो रहे हैं क्योंकि बिहार में इसका बाजार नहीं है. यहां का शहद दूसरे राज्यों में जाकर पैक होता है. उन्होंने बताया कि अभी भी सीजन में 25 से 30 किसान इस व्यवसाय को करते हैं लेकिन सीजन खत्म होते ही इसे छोड़ देते हैं. इसमें मेहनत नहीं करना चाहते हैं. अगर किसान इस व्यवसाय में सालो मेहनत करें तो उन्हें अच्छी आमदनी हो सकती है.

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