मनोरंजन की भागदौड़ में बहुत कुछ छूट रहा है, इसके बारे में जरा सोचिए
मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को लेकर कई संस्मरण लिखे गए. इनमें से एक संस्मरण में उनके साथी ने लिखा कि कैसे अब्दुल कलाम कार यात्रा या किसी भी यात्रा के दौरान बाहर देखा करते थे. कुदरत के नजारे जैसे भी हों वो देखते थे. उनके एक सहयोगी को उन्होंने अक्सर फोन पर व्यस्त देखा तो कहा कि अब नई उम्र के लोग बाहर देखने या नजारों को आंखों में कैद करने में यकीन ही नहीं करते. अब्दुल कलाम तब शायद ही यह कल्पना कर रहे होंगे कि एक ऐसा दौर भी आएगा जब लोग खाने की टेबल पर भी अपने अपने मोबाइल के साथ पहुंचेंगे. ये नजारे अब बेहद आम हैं.
दो बड़े परिवर्तन मोबाइल ने समाज में कर दिए हैं. ज्यादातर मोबाइल धारी किसी काम में व्यस्त हैं. किस काम में व्यस्त हैं, ये तो मोबाइल चलाने वाला ही जान सकता है. उनके आसपास क्या घटित हो रहा है उससे उन्होंने मोबाइल के साथ ही किनारा कर लिया है. अब्दुल कलाम बाहर देखने को इसलिए कह रहे थे ताकि आपका कनेक्ट बना रहे. जो लोग अब बाहर देख भी रहे हैं, अगर उनके पास बढ़िया मोबाइल है तो वे उससे वीडियो बनाने या फोटो खींचने में लगे रहते हैं. सब नजारों को मोबाइल में कैद करना चाहते हैं.
फोटो की बाढ़ मोबाइल में आई है. लेकिन उन फोटो का क्या करना है ये किसी को नहीं पता. फोटो को लेकर एक अध्ययन कहता है कि जिन भी नजारों की फोटो में आदमी या औरत नहीं होती उसके डिलीट होने की संभावना करीब 90 फीसदी है. यानी आपकी फोटो में आप खुद या आपके अपने नहीं हैं तो बहुत मुमकिन है कि आप डूबते सूरज या समंदर की लहर की फोटो कुछ वक्त बाद डिलीट कर देंगे.
तो बड़ा सवाल है कि आप सब क्यों कर रहे हैं? आप घर से निकलते ही मोबाइल में क्या खोज रहे हैं? आपकी स्क्रोलिंग आपको कहां-कहां ले जा रही है और आप क्यों कर रहे हैं यह सब? मोबाइल को लेकर मनोविज्ञानियों को अभी बहुत काम करना बाकी है. लेकिन पहली नजर में आपको समझ आ जाएगा कि जिनको मोबाइल स्क्रोलिंग की लत है वे अपना मनोरंजन तलाश रहे हैं. नए एंटरटेनमेंट की खोज चल रही है. कंटेंट बनाने वाली कंपनी तो कह ही रही हैं कि उन्हें आपको ‘हुक’ करके रखना है. हुक आप हो रहे हैं. अगर आप हुक नहीं हो रहे हैं तो डाटा कम्पनी आपको याद दिला रही हैं कि आपने बहुत दिनों से क्या-क्या नहीं देखा है. आपके मनोरंजन को कंटेंट कंपनी संजीदगी से ले रही हैं. लेकिन बड़ा सवाल है कि आपको कितना मनोरंजन चाहिए?
एक वक्त था जब मनोरंजन के चंद विकल्प थे. मनोरंजन आपके शौक से जुड़े थे. फोटोग्राफी आपके शौक का हिस्सा था. संगीत सुनना आपके एंटरटेनमेंट का हिस्सा था. आपके तनाव को कम करने का काम मनोरंजन का था. आपकी मुश्किल जिंदगी में एंटरटेनमेंट एक ताजा हवा का झोंका था, जब भी आता आपको तरोताजा कर जाता था. आपको उसकी कीमत पता थी. एक चित्रहार में गाना सुनना और देखना उम्दा अनुभव में से एक था. लेकिन अब सब बहुतायत में है. क्या बहुत सारा मनोरंजन आपके दुख का कारण बन सकता है?
पूरी दुनिया में बिंज वाचिंग या अखंड देखना, देर रात तक जागना, दिन भर बैठे रहना अब नई स्वास्थ्य समस्या है. इसको जन्म मनोरंजन की नई दुनिया ने दिया है. मनोरंजन अब नींद को पटरी से भी उतार रहा है. रात में स्क्रीन टाइम नींद में खलल डाल रहा है. इस सबका असर आपके दूसरे पैरामीटर पर भी पड़ रहा है. नई एंटरटेनमेंट की दुनिया जिस तेजी से आगे लेकर जा रही उसमें पुराना बहुत फीका लगने लगा है. यही वजह है कि नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं. डाटा कम्पनी चाहती हैं कि आप ज्यादा से ज्यादा खुद का मनोरंजन करें लेकिन इसकी कीमत आप अब अपने स्वास्थ्य से चुका रहे हैं. लगातार मनोरंजन ध्यान लगाकर काम करने के समय को कम कर रहा है. ये एक बड़ा संकट है.
अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं… वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.