माँ ने गली गली चूड़ियां बेचकर बेटे को बनाया CRPF में सब इंस्पेक्टर, अब ट्रैनिंग कर घर आया तो ऐसे उतारी मंगल आरती


बाड़मेर: शहर के सबसे व्यस्ततम स्टेशन रोड़ के ओवरब्रिज के नीचे फुटपाथ पर उगते सूरज के साथ से रात के गहराते अंधियारे तक चूड़ियां बेचती माँ ने जब अपने बेटे के कंधे पर दो सितारे लगाए तो मानो पूरा आसमान ही उसकी झोली में आ गिरा हो. खुद के अनपढ़ होने के बावजूद बेटे को पढ़ाया और तमाम तानों और उलाहनों के बीच बेटे को काबिल बनाया है.

आज जब बेटा सीआरपीएफ का सब इंस्पेक्टर बनकर घर लौटा तो आरती उतारकर बेटे का स्वागत किया गया है. हम बात कर रहे भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर में रहने वाले राहुल गवारिया की. आज राहुल अपनी 11 महीने की ट्रेनिग पूरी करके पहली बार खाकी वर्दी और उस पर दो सितारे सजाए. जब राहुल घर आया तो पूरे परिवार की खुशी का ठिकाना तक नही रहा है. राहुल गवारिया अपने समाज का राज्य में सब इंस्पेक्टर बनने वाला पहला युवा है ऐसे में इस घर की खुशियां और गौरव बहुत ज्यादा बढ़ गया है.

एनसीसी गुरु से ली प्रेरणा बनी मिसाल

सब इंस्पेक्टर राहुल के पिता जालाराम गंवारिया बताते है कि हमारे समाज मे पढ़ाई लिखाई को लेकर रुझान बहुत कम था बावजूद इसके उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया और काबिल बनाया है. एनसीसी गुरु कैप्टन आदर्श किशोर जाणी की प्रेरणा से वह खाकी को अपना सबकुछ मानने लगा और कई असफलता के बाद उसका चयन सीआरपीएफ के सब इंस्पेक्टर में हुआ है.

माँ-पिता बेचते है चूड़ियां, बेटा बना सब इंस्पेक्टर

आज राहुल अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद पहली बार अपने घर लौटा है. राहुल की मां बाड़मेर में जिला अस्पताल के सामने फुटपाथ पर चूडिय़ां बेचती है वहीं पास में ही तिलक बस स्टैंड पर पिता भी चूडिय़ां बेचने का काम करते है. कमाई कम होती है, लेकिन फिर भी बच्चों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं रखी है. राहुल की माँ कमला देवी ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए बताया कि बेटे की पढ़ाई को लेकर उन्होंने समाज के लोगों की कई तरह की बातें सुनीं, लेकिन अब जब उनका बेटा सब-इंस्पेक्टर बन गया है, तो उन्हें बेहद खुशी है.

11 महीने की ट्रैनिंग के बाद पहली बार आया घर

राहुल की माता कमला देवी अनपढ़ है तो पिता महज आठवीं पास है. समाज के तानों के बावजूद माता-पिता ने राहुल को पढ़ाया. राहुल लोकल18 से खास बातचीत करते हुए बताते है कि उनके समाज में बेटे क्या और बेटियां क्या? किसी की भी नहीं पढ़ाते है. पढ़ाई से कोसों दूर रखा जाता रहा है लेकिन मेरे माता -पिता ने चूड़ियां बेचकर और मजदूरी कर पढ़ाया है. समाज के लोग उन्हें आए दिन ताने भी देते रहे लेकिन उन्होंने इस बात को कभी दिल पर नहीं लिया और मुझे पढ़ाया. आज जब राहुल अपनी 11 महीने की ट्रैनिंग पूरी कर घर आया तो माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे.

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