मिक्सी में बनी चटनी खाने से हो गए है बोर…तो ले आइए देसी सिलबट्टा, साइज के हिसाब से है कीमत


मोहित शर्मा/करौली : कुछ समय पहले तक हर घर में दिखने वाले पत्थर के सिलब‌ट्टे अब कम ही दिखाई देते हैं. मिक्सी के आने के बाद इनकी उपयाेगिता थाेड़ी कम जरूर हुई है. लेकिन, इस पर पिसी चटनी का स्वाद मिक्सी में पिसी चटनी से कई गुना ज्यादा हाेता है. इनका चलन कम जरूर हुआ है पर ये अब भी बनाए जाते हैंऔर लाेग इन्हें खरीदते भी हैं. इन दिनाें करौली के कुछ परिवार इन्हें बेच रहे हैं.

खास बात ये है कि इन सिलबट्टाें पर आकर्षक सजावट भी की गई है. जिसे देखकर काफी अच्छा महसूस हाेता है. घरों में रोजाना पिसाई के लिए इस्तेमाल होने वाले सिलबट्टे कोनए जमाने की आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मिक्सी भी कह सकते हैं. आज के जमाने की मिक्सी पुराने समय में सिलबट्टे के नाम से ही फेमस था.

घरों में दिखने लगा सिलबट्टा
आज के इलेक्ट्रॉनिक जमाने में भी इसका चलन ग्रामीण क्षेत्रों के साथशहरी क्षेत्रों के कई घरों में देखा जा सकता है. बिजली के बिना चलने वाली यह पुराने जमाने की मशीन आज के नए जमाने की मिक्सी पर भी भारी है. केवल समय और मेहनत की बचत के कारण बस इसका चलन थोड़ा सा कम हुआ है. पूरी तरह से पत्थर से बनी हुई पुराने जमाने की इस मिक्सी का नाम सिलबट्टा है. जिसे सिललोढ़ा भी कहा जाता है.

हाथों से डेढ़ घंटे में तैयार होती है ये मिक्सी
पुराने जमाने की इस मिक्सी को हाथों से बनाने वाले खानदानी कारीगर नरेंद्र प्रजापति बताते हैं कि एक सिलबट्टा को अच्छी तरह से तैयार करने में कम से कम डेढ़ घंटे का समय लगता है. इसे तैयार करने के लिए सबसे पहले बढ़िया क्वालिटी का पत्थर लिया जाता है. उसके बाद पत्थर पर टांकी हथोड़े की चोट पर इसे तैयार किया जाता है.

नीला और सफेद पत्थर रहता है इसके लिए बेस्ट
नरेंद्र प्रजापति बताते हैं कि इसे हर पत्थर से नहीं बल्कि खास पत्थर से ही तैयार किया जा सकता है. सिलबट्टा बनाने के लिए हम केवल नीला और सफेद पत्थर इस्तेमाल करते हैं. येही दो पत्थर ऐसे है जोसिलबट्टा के लिए सबसे बढ़िया रहते है. बाकी के अन्य पत्थर सिलबट्टा के लिए कच्चे और कमजोर रहते हैं.

सुंदरता के लिए इसमें गढ़ी जाती है डिजाइन
सिलबट्टा के दूसरे कारीगर रविंद्र कुमार ने बताया कि सिलबट्टा को तैयार करने की कई स्टेप होते हैं. इसमें सबसे पहले पत्थर को एक फाइनल आकार दिया जाता है. आकार के बाद पत्थर के ऊपरी सिरे को कोयले के पानी से पोता जाता है. रविंद्र बताते हैं कि सुंदरता के लिए इसमें डिजाइन भी दी जाती है. डिजाइन के रूप में इसमें खोटा गढ़े जाते है. सिलबट्टा की इसी डिजाइन से मसाले पत्थर पर पीसते है. उनका कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक मिक्सी तो आज चली है. लेकिन सिलबट्टा पुराने जमाने से चला आ रहा है.

साइज के हिसाब से होती है इसकी कीमत
पुराने जमाने की इस मिक्सी की कीमत भी साइज के हिसाब से ली जाती है. नरेंद्र प्रजापति बताते हैं कि इसकी कीमत ₹100 से लेकर, 150, 250, 300, 400 और ₹500 तक साइज के हिसाब से होती है.

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