मुस्लिम तवायफ के इश्क में गिरफ्तार हो गया था यह महाराजा, पहले चलवाए प्रेमिका के नाम के सिक्के, फिर बनवा दिया 'तराजू'
<p class="p1" style="text-align: justify;">जब भी हम इतिहास के पन्नों को खंगालते हैं तो वहां से कई ऐसी कहानियां निकलकर सामने आती हैं जिसमें राजा-महाराजाओं के प्यार में गिरफ्तार होने और फिर अपने प्रेम के लिए हदें पार कर जाने के किस्से देखने को मिलते हैं. ऐसा ही कुछ किस्सा है महाराजा रणजीत सिंह का, जो एक तवायफ के प्यार में इस तरह गिरफ्तार हुए कि उन्होंने उसके नाम के सिक्के और तराजू तक बनवा दिया था.</p>
<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>वो महाराजा जो तवायफ के इश्क में हो गया था गिरफ्तार</strong></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">बात मुगलों के साथ शाही महलों के पतन के साथ शुरू होती है, ये वही दौर था जब 19वी सदी की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह ने अपना वर्चस्व बनाना शुरू किया था. उसके बाद ही वेश्याओं की दुर्दशा में सुधार देखा जाने लगा था. महाराजा ने दरबार में मुजरे की प्रथा को फिर से शुरू कर दिया था. उस समय सभी दूर एक मुस्लिम वेश्या मोरन बाई के खासे चर्चे थे. लोग उनकी सुंदरता की खूब तारीफें किया करते थे. एक दिन ये बात महाराजा रणजीत सिंह तक भी पहुंच गई.</p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">मोरन बाई लाहौर में एक झोपड़ी में रहा करती थी. एक दिन महाराजा रणजीत सिंह उसे देखने उसी झोपड़ी में पहुंच गए. वो पहली मुलाकात थी लेकिन रणजीत सिंह का दिल जीतने के लिए मोरन बाई के लिए काफी थी. रणजीत सिंह मोहन बाई के प्यार में उसी दिन गिरफ्तार हो चुके थे.</p>
<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>मोरन बाई के लिए चलवा दिए थे सिक्के</strong></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">रणजीत सिंह मोरन बाई के प्यार में इस कदर दीवाने थे कि उन्होंने उनसे शादी तो कभी नहीं की, लेकिन उनका रुतबा किसी महारानी से कम नहीं था. रणजीत सिंह ने उनके शासनकाल में मोरन के नाम के सिक्के जारी कर दिए थे. साथ ही तराजू भी मोरन बाई के नाम के हुआ करते थे.</p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">हालांकि बाद में रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद भारी उलटफेर हुआ और सिख जनरल हीरा सिंह डोगरा ने क्षेत्र की केंद्रीयता को महसूस करते हुए, यहां एक अनाज बाजार का निर्माण किया, जिसे उनके नाम पर ‘हीरा सिंह द मंडी’ कहा जाने लगा जो बाद में बदलकर हेरा मंडी हो गया और फिर इसी का नाम हीरा मंडी पड़ गया. उस समय तवायफों की तुलना हीरे से की गई थी.</p>
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