मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मेहर पर क्या पति का भी होता है हक? ये रहा जवाब
<p class="p1" style="text-align: justify;">मुस्लिम शादियों में मेहर का खास महत्व होता है<span class="s1">. </span>यह एक ऐसी रकम होती है जो निकाह के समय दूल्हा दुल्हन को देता है<span class="s1">. </span>यह एक तरह का उपहार होता है<span class="s1">, </span>लेकिन इसका धार्मिक और कानूनी महत्व भी होता है<span class="s1">. </span>अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या इस मेहर पर पति का कोई हक होता है<span class="s1">? </span>चलिए िस आर्टिकल में हम इस सवाल का जवाब जानते हैं<span class="s1">.</span></p>
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<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>क्या है मेहर<span class="s1">?</span></strong></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">मेहर मुस्लिम शादियों का एक जरुरी हिस्सा है. यह एक ऐसी रकम है जो दूल्हा दुल्हन को निकाह के समय देता है. मेहर को नकद<span class="s1">, </span>सोना<span class="s1">, </span>चांदी या कोई अन्य संपत्ति के रूप में दिया जा सकता है. मेहर कितनी होगी ये निकाह के समय ही तय कर लिया जाता है और यह दुल्हन का व्यक्तिगत अधिकार होता है. ये दुल्हन का कानूनी अधिकार ही जो उसे आर्थिक सुरक्षा देता है. इसके अलावा मेहर विवाह के बंधन का प्रतीक भी है. यदि निकाह टूट जाता है तो दुल्हा दुल्हन को तय मेहर की रकम देता है.</p>
<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>क्या दुल्हन को दी जाने वाली मेहर की राशि में पति का हक होता है?</strong></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">नहीं<span class="s1">, </span>दुल्हन को दी जाने वाली मेहर की राशि में पति का कोई हक नहीं होता है. मेहर पूरी तरह से दुल्हन का अधिकार होता है. पति इसे किसी भी हालत में वापस नहीं मांग सकता है. चाहे शादी टूट जाए या पति की मौत हो जाए<span class="s1">, </span>मेहर दुल्हन को ही मिलता है.</p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">बता दें मेहर दो अलग-अलग तरह का होता है. पहला मुअज्जल मेहर<span class="s1">, </span>यह वह मेहर होता है जिसका भुगतान निकाह के समय या तुरंत बाद किया जाता है और मुअख्खर मेहर<span class="s1">, </span>यह वह मेहर होता है जिसका भुगतान बाद में किया जाता है<span class="s1">, </span>जैसे कि तलाक की स्थिति में या पति की मौत हो जाने पर<span class="s1">.</span></p>
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<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>मेहर</strong> <strong>को</strong> <strong>लेकर</strong> <strong>क्या</strong> <strong>है</strong> <strong>भारतीय</strong> <strong>कानून</strong><span class="s1"><strong>?</strong></span></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">भारत में मुस्लिम विवाह अधिनियम<span class="s1">, 1954 </span>के तहत मेहर को मान्यता दी गई है. इस अधिनियम के अनुसार<span class="s1">, </span>मेहर दुल्हन का व्यक्तिगत अधिकार है और पति का इस पर कोई हक नहीं है. यदि एक बार मेहर की राशि मुकरर कर दी गई है तो इसे वापस भी नहीं लिया जा सकता. इसके अलावा इस रकम को बढ़ाना या घटाना भी है तो वो निकाह के समय दोनों पक्षों की सहमति से किया जा सकता है.</p>
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