यादवों की आस्था से जुड़ाव, शक्तिशाली संतों का स्थान और फौज में जाने की परंपरा; खास है ग्राम पचोता


बुलंदशहर: ग्राम पचोता, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित है और यह यादव समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है. यहां यादवों के कई गांव हैं, जिनमें से चौबीसा नामक समूह में 24 गांव एक साथ कतार में हैं. इसी प्रकार, बंनोसा नामक क्षेत्र में 12 गांवों का समूह है. पचोता, बंनोसा के 12 गांवों में से एक है और इसका विशेष महत्व है.

धार्मिक महत्व और श्रद्धा
पचोता को यादव जंगजुओं के साथ-साथ प्रसिद्ध यदुवंशी संत बाबा देवीदास और उनके पुत्र लाला जय सिंह की महिमाओं के लिए जाना जाता है. यहां स्थित बाबा देवीदास और लाला जय सिंह के मंदिर कई सौ साल पुराने हैं, जहां आस-पास के यादव श्रद्धा पूर्वक दर्शन करने आते हैं. वर्तमान में लाला जय सिंह का भव्य मंदिर निर्माणाधीन है, जिसकी ऊँचाई 100 फीट से अधिक होगी और यह आसपास के क्षेत्र में सबसे विशाल मंदिर होगा.

यादवों की आस्था
बंनोसा के 12 गांवों के यादव बाबा देवीदास को राजा मानते हैं. नोएडा और गाज़ियाबाद के यादव हर रविवार, मंगलवार और शुक्रवार को पचोता आते हैं, अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं. यहां तक कि राजस्थान, हरियाणा, और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान तक से लोग बाबा देवीदास के दर्शन करने आते हैं.

होली का पर्व
ग्राम पचोता में होली का पर्व विशेष महत्व रखता है. इस अवसर पर तीन दिन का मेला लगता है और कुश्ती का आयोजन किया जाता है. दंगल के लिए विशेष अखाड़ा बनाया गया है, जहां बम्हेटा, सर्फाबाद आदि गांवों के यादवों के साथ-साथ राजपूतों, गुर्जरों और जाटों के पहलवान भी भाग लेते हैं.

इतिहास की झलक
पचोता का इतिहास पाकिस्तान की सीमा से सटे जैसलमेर के रामगढ़ से शुरू होता है. वहां एक यादव घराने में वीर सिंह और धीर देव सिंह नामक दो भाई जन्मे. ये भाई दिल्ली आए और फिर बुलंदशहर पहुंचे. वीर सिंह आढा गांव में बस गए जबकि धीर देव सिंह ने सिनसिनीगढ़ (अब पचोता) में निवास किया.

बाबा देवीदास का उदय
वीर सिंह का पुत्र हेमराज सिंह था, जिसका विवाह मथुरी देवी से हुआ. मथुरी देवी की तपस्या से देवी सिंह का जन्म हुआ, जिसे बाद में सिद्ध संत बाबा देवीदास कहा गया. बाबा देवीदास की प्रसिद्धि इतनी बढ़ी कि बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया लेकिन उनकी चमत्कारी शक्तियों को देखकर बादशाह ने उन्हें रिहा कर दिया और उन्हें सम्मानित किया.

लाला जय सिंह की कहानी
बाबा देवीदास और माता आनंदी के पुत्र जय सिंह बचपन से ही चंचल थे. एक दिन जन्माष्टमी पर मिठाई मांगने पर बाबा ने उन्हें समझाया कि पूजा के बाद ही कुछ मिलेगा. जय सिंह नाराज होकर जंगल की तरफ भाग गए और वहीं समाधि ले ली. इसके बाद उनकी महिमा बढ़ती गई और आज भी उनका मंदिर श्रद्धालुओं का केंद्र बना हुआ है.

फौज में जाने की परंपरा
ग्राम पचोता में क्षत्रिय परंपरा अनुसार फौज में जाने का जुनून देखने को मिलता है. लगभग हर घर से एक फौजी मिलता है, जो आज भी विद्यमान है. यहां तक कि अब तक केवल एक ही फौजी शहीद हुआ है, जो बाबा देवीदास और जय सिंह की कृपा का प्रतीक माना जाता है.

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