रतन टाटा के पिता का नहीं था टाटा ग्रुप से खून का रिश्ता, फिर कैसे बने इतने बड़े टाटा ग्रुप का हिस्सा?


Ratan Tata Father : नवल होर्मुसजी टाटा (Naval Hormusji Tata) की कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है, जो बताती है कि किस तरह किस्मत और मेहनत का मेल इंसान की जिंदगी को बदल सकता है. नवल का जन्म 30 अगस्त 1904 को मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था, लेकिन उनके जन्म से उनका टाटा परिवार से कोई संबंध नहीं था. उनके पिता अहमदाबाद की एडवांस मिल्स में स्पिनिंग मास्टर के रूप में काम करते थे. 1908 में जब नवल मात्र 4 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां उन्हें लेकर गुजरात के नवसारी चली गईं, जहां उन्होंने कढ़ाई का काम शुरू किया, ताकि परिवार का गुजारा हो सके. हालात मुश्किल थे, लेकिन नवल का भाग्य कुछ और ही तय कर रहा था.

परिस्थितियों को बेहतर बनाने के लिए नवल को जे. एन. पेटिट पारसी अनाथालय भेजा गया, जहां से उनके जीवन में बदलाव की शुरुआत हुई. यहीं पर उनकी मुलाकात नवाजबाई टाटा से हुई, जो सर रतनजी टाटा की पत्नी थीं. नवाजबाई नवल से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उन्हें गोद लेने का फैसला किया, और इस तरह नवल का टाटा परिवार से जुड़ाव हुआ. जब नवल को गोद लिया गया, तब उनकी उम्र केवल 13 साल थी. इसके बाद नवल को बेहतरीन शिक्षा मिली और उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया. इसके बाद वे लंदन जाकर अकाउंटिंग से संबंधित कोर्स करने लगे.

गरीबी के अनुभव ने दिया जीवन को आकार
नवल अक्सर कहा करते थे कि गरीबी के अनुभव ने उनके जीवन को आकार देने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने माना कि इस कठिन समय ने उन्हें मजबूत और सहनशील बनाया.

नवल टाटा की निजी जिंदगी भी दिलचस्प रही. उनकी दो शादियां हुईं. पहली शादी सूनी कॉमिस्सैरिएट से हुई, जिनसे उनके दो बेटे हुए—रतन टाटा और जिमी टाटा. हालांकि, इस शादी के कुछ साल बाद उनका तलाक हो गया. फिर उन्होंने स्विट्जरलैंड की सिमोन डुनोयर से शादी की, जिनसे उन्हें एक और बेटा हुआ, जिसका नाम नियोल टाटा रखा गया.

क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के पद से की शुरुआत
1930 में नवल ने टाटा सन्स जॉइन किया, जहां उन्होंने क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के रूप में शुरुआत की. उनकी मेहनत और योग्यता के चलते उन्हें जल्दी ही तरक्की मिलती गई. 1933 में उन्हें एविएशन डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बनाया गया, और इसके बाद उन्होंने टाटा मिल्स और अन्य यूनिट्स में अपनी भूमिका निभाई. 1941 में वे टाटा सन्स के डायरेक्टर बने, और 1961 में टाटा पावर (तब टाटा इलेक्ट्रिक कंपनीज़) के चेयरमैन के पद पर पहुंचे. 1962 में उन्हें टाटा सन्स के डिप्टी चेयरमैन का पद भी मिला.

बिजनेस के अलावा, नवल टाटा ने समाज सेवा में भी उल्लेखनीय योगदान दिया. वे सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने और जीवन के अंतिम दिनों तक इस भूमिका को निभाया. उन्होंने इंडियन कैंसर सोसायटी के चेयरमैन के रूप में भी महत्वपूर्ण काम किया. नवल का खेलों के प्रति भी गहरा लगाव था, वे भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष रहे और इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन के वाइस चेयरमैन भी बने.

हालांकि, नवल टाटा और जेआरडी टाटा के बीच राजनीति को लेकर मतभेद थे. जहां जेआरडी राजनीति से दूर रहना चाहते थे, वहीं नवल ने 1971 में साउथ बॉम्बे से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, हालांकि वे चुनाव नहीं जीत सके.

नवल टाटा को उनके योगदान के लिए 1969 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. 5 मई 1989 को मुंबई में उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके संघर्ष की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं.

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