राज्य गठन से पहले ही इस ऐतिहासिक स्कूल का नाम था ‘छत्तीसगढ़’ , जानिए इसकी दिलचस्प कहानी 


बिलासपुर : बिलासपुर शहर के मध्य स्थित छत्तीसगढ़ स्कूल की स्थापना 1951 में की गई थी. इस स्कूल का नाम छत्तीसगढ़ राज्य बनने से 50 साल पहले ही ‘छत्तीसगढ़ स्कूल’ रखा गया था, जो आज भी एक दूरदृष्टि का प्रतीक माना जाता है. यह स्कूल शिक्षा और खेल के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुका है, लेकिन आज इसकी हालत ठीक नहीं है. कई तरह की सुधार और मरम्मत की जरूरत है. इस ऐतिहासिक स्कूल की कहानी काफी दिलचस्प है, क्योंकि स्कूल ने कई प्रतिष्ठित नेता, शिक्षक और खिलाड़ी दिए हैं, आज अपने विकास के लिए संघर्ष कर रहा है. यह स्कूल केवल बिलासपुर का ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ का गौरव है. इसे फिर से अपनी खोई हुई पहचान दिलाने और इसके विकास के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.

यह नाम पहले ही दे चुका था छत्तीसगढ़ की संस्कृति और पहचान
छत्तीसगढ़ स्कूल की स्थापना 1951 में बिलासपुर नगरपालिका के पहले अध्यक्ष जमुना प्रसाद वर्मा की अध्यक्षता में हुई थी. मधुकर आनंद बाटवे इसके पहले प्राचार्य बने. खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से 50 साल पहले ही स्कूल का नाम ‘छत्तीसगढ़ स्कूल’ रखा गया था. यह नाम छत्तीसगढ़ की संस्कृति और पहचान को पहले ही स्थान दे चुका था. इस स्कूल ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

खेलों में भी अग्रणी: अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दे चुका स्कूल
छत्तीसगढ़ स्कूल ने शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी खास मुकाम हासिल किया है. यह स्कूल विशेष रूप से बेसबॉल में राज्यभर में प्रसिद्ध है. स्कूल के कोच अख्तर खान खुद एक अंतरराष्ट्रीय बेसबॉल खिलाड़ी हैं और उनके प्रशिक्षण में कई छात्र खेल के क्षेत्र में अपना नाम कमा चुके हैं. हाल ही में स्कूल की छात्रा अंजलि खलखो ने हांगकांग में आयोजित महिला एशियाई बेसबॉल चैंपियनशिप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया, जो इस स्कूल की खेल प्रतिभा का प्रमाण है.

विकास की कमी, इस ऐतिहासिक स्कूल पर ध्यान देने की जरूरत
इतने गौरवशाली इतिहास और उपलब्धियों के बावजूद छत्तीसगढ़ स्कूल विकास की कमी से जूझ रहा है ग्रांटेड स्कूल होने के कारण इसे सरकार की ओर से पर्याप्त ध्यान नहीं मिला है. हालात ऐसे हैं कि स्कूल के गेट की मरम्मत और पेंटिंग तक स्टाफ को चंदा करके करवानी पड़ी थी. खेल के मैदान की स्थिति भी बहुत खराब है, जबकि यहां से कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकले हैं. स्कूल प्रबंधन का कहना है कि सरकार से पर्याप्त सहायता न मिलने के कारण उन्हें खुद छोटे-मोटे काम करवाने पड़ रहे हैं.

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