राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हर दशहरा पर क्यों करता है शस्त्रपूजन, हर साल कौन से 6 त्योहार मनाता RSS


हाइलाइट्स

दशहरे के दिन ही हुई थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापनाइस दिन संघ के स्वयंसेवक पूरे रीतिरिवाज से शस्त्रपूजन करते हैंसंघ सालभर में 06 त्योहार मनाता ये उसमें से एक है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) हमेशा दशहरे के दिन विजयादशमी कार्यक्रम में शस्त्रपूजन करता है. ये क्रम तब से चल रहा है, जब से संघ की स्थापना हुई. संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी यानी दशहरा के दिन हुई थी. दशमी पर शस्त्र पूजन का विधान है. इस दौरान संघ के सदस्य हवन में आहुति देकर विधि-विधान से शस्त्रों का पूजन करते हैं. संघ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में हर साल ‘शस्त्र पूजन’ खास रहता है.

क्यों किया जाता है ‘शस्त्र पूजन’
दशहरा के मौके पर शस्त्रधारियों के लिए हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है. इस दिन शस्त्रों की पूजा घरों और सैन्य संगठनों द्वारा की जाती है. नौ दिनों की उपासना के बाद 10वें दिन विजय कामना के साथ शस्त्रों का पूजन करते हैं. विजयादशमी पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की पूजा के साथ शस्त्र पूजा की परंपरा हिंदू धर्म में लंबे समय से रही है. छत्रपति शिवाजी ने इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न कर भवानी तलवार प्राप्त की थी.

आरएसएस का ‘शस्त्र पूजन’
संघ की तरफ ‘शस्त्र पूजन’ हर साल पूरे विधि विधान से किया जाता है. इस दौरान शस्त्र धारण करना क्यों जरूरी है, की महत्ता से रूबरू कराते हैं. बताते हैं, राक्षसी प्रवृति के लोगों के नाश के लिए शस्त्र धारण जरूरी है. सनातन धर्म के देवी-देवताओं की तरफ से धारण किए गए शस्त्रों का जिक्र करते हुए एकता के साथ ही अस्त्र-शस्त्र धारण करने की हिदायत दी जाती है. ‘शस्त्र पूजन’ में भगवान के चित्रों से सामने ‘शस्त्र’ रखते हैं. दर्शन करने वाले बारी-बारी भगवान के आगे फूल चढ़ाने के साथ ‘शस्त्रों’ पर भी फूल चढ़ाते हैं.

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आरएसएस प्रमुख द्वारा शस्त्रपूजन

इस दौरान शस्त्रों पर जल छिड़क पवित्र किया जाता है. महाकाली स्तोत्र का पाठ कर शस्त्रों पर कुंकुम, हल्दी का तिलक लगाते हैं. फूल चढ़ाकर धूप-दीप और मीठे का भोग लगाया जाता है. इसके बाद दल का नेता कुछ देर शस्त्रों का प्रयोग करता है. ये पूजा दिनभर चलती है.

विजयादशमी पर शस्त्रपूजन क्यों 
विजयादशमी का पर्व जगजननी माता भवानी का की दो सखियों के नाम जया-विजया पर मनाया जाता है. यह त्यौहार देश, कानून या अन्य किसी काम में शस्त्रों का इस्तेमाल करने वालों के लिए खास है. शस्त्रों का पूजन इस विश्वास के साथ किया जाता है कि शस्त्र प्राणों की रक्षा करते है. विश्वास है कि शस्त्रों में विजया देवी का वास है.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शस्त्रपूजन

हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार , इस दिन पांडवों का 14 साल का वनवास समाप्त हुआ था. उन्होंने अपने शस्त्रों की पूजा की थी. हिंदी पट्टी में इस समारोह को शस्त्र-पूजन कहा जाता है. आरएसएस के स्वयंसेवक इस दिन शस्त्र-पूजन का प्रतीकात्मक समारोह करते हैं. इसका उद्देश्य स्वयंसेवकों में वीरता और वीरता के गुणों का विकास करना है.
यह त्योहार भारत के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ा हुआ है. इसके साथ कई प्राचीन कहानियां, किस्से और किंवदंतियां जुड़ी हैं. हालांकि, उन सभी का संदेश एक ही है: “बुराई पर अच्छाई की जीत.”
आरएसएस में यह परंपरा रही है कि सरसंघचालक इस दिन नागपुर में एक समारोह में सार्वजनिक भाषण देते हैं, जिसमें हजारों आरएसएस स्वयंसेवक मौजूद होते हैं.

संघ की स्थापना
संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी.
हेडगेवार ने अपने घर पर ही 17 लोगों के साथ गोष्ठी में संघ के गठन की योजना बनाई थी.

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शस्त्रपूजन के मौके पर शस्त्रों का प्रदर्शन

1975 में आपातकाल के दौरान संघ पर भी प्रतिबंध लगाया गया था.1975 के बाद से धीरे-धीरे संगठन का राजनैतिक महत्व बढ़ा. आज भाजपा को संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है.

आरएसएस इसके अलावा 05 और त्योहार धूमधाम से मनाता है. ये हैं – वर्ष प्रतिप्रदा, रक्षाबंधन, मकर संक्रांति, हिंदू साम्राज्य दिवस और गुरुपूर्णिमा.

आरएसएस ने 6 त्योहार ही क्यों चुने
तो फिर आरएसएस ने इन 06 त्योहारों को क्यों चुना? इस कदम के पीछे के दर्शन को संघ उत्सव (संघ के त्योहार) नामक प्रकाशन में समझाया गया है. यह छोटी पुस्तिका आरएसएस समर्थित प्रकाशन गृह सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है. संघ उत्सव में टिप्पणियां दूसरे और तीसरे सरसंघचालक (प्रमुख) एमएस गोलवलकर और बाला साहेब देवरस द्वारा व्यक्त विचारों पर आधारित हैं.

पुस्तक में लिखा है, “आरएसएस ने इन त्योहारों को इसलिए चुना है क्योंकि ये उसके उद्देश्यों और नाम से मेल खाते हैं. यहां यह समझना चाहिए कि संघ ने कोई नया त्योहार नहीं बनाया है लेकिन ये त्योहार राष्ट्रीय महत्व के हैं. हिंदू समाज इन्हें अनादि काल से मनाता आ रहा है.”

क्या है हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव
इसका एक अपवाद है – ‘हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव’, जिसे तब तक राष्ट्रीय स्तर पर नहीं मनाया जाता था, जब तक आरएसएस ने इसे अपनी सूची में शामिल नहीं किया. संघ उत्सव में कहा गया है , “हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव एक ऐसा त्योहार है जो समाज में जागृति की प्रेरणा देता है. इसीलिए संघ ने इसे अन्य पारंपरिक त्योहारों की सूची में शामिल किया है.”

इन त्योहारों को मनाने का कारण बताते हुए पुस्तक में कहा गया है, “इन त्योहारों के साथ बलिदान देने वाले महापुरुषों की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं. इसलिए हम (आरएसएस के स्वयंसेवक) इन त्योहारों के माध्यम से समाज को जागृत करते हैं.”

इन त्योहारों के जरिए संघ को क्या मदद मिलती है
इन त्योहारों के आयोजन से आरएसएस को अपना आधार बढ़ाने में मदद मिलती है. त्योहार आमतौर पर शाखा स्तर पर मनाए जाते हैं. “एक बार जब शाखा त्योहार मनाने का फैसला करती है, तो इससे स्थानीय समुदाय को आरएसएस की विचारधारा और काम को दिखाने में मदद मिलती है. इससे स्थानीय समुदाय को संघ के करीब लाने में मदद मिलती है. इस प्रकार, ये त्योहार आरएसएस के विस्तार के लिए अनुकूल माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.”

संघ 5 अन्य उत्सवों के बारे में जानिए
1. रक्षाबंधन – रक्षाबंधन भारत में बहुत लोकप्रिय त्यौहार है. सभी समुदायों और धर्मों द्वारा मनाया जाता है. बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा के प्रति वचनबद्धता के प्रतीक के रूप में राखी नामक धागा बांधती हैं. इस त्यौहार से जुड़ी कई ऐतिहासिक घटनाएं और कहानियां हैं. आरएसएस के स्वयंसेवक एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांधकर रक्षाबंधन मनाते हैं, जो एक-दूसरे की रक्षा करने और एक-दूसरे के साथ खड़े रहने की उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों. इससे स्वयंसेवकों के बीच भाईचारे की भावना को मज़बूत करने में मदद मिलती है.
पिछले कई दशकों में आरएसएस ने इस कार्यक्रम को बहुत ही रोचक तरीके से आगे बढ़ाया है. एक-दूसरे को पवित्र धागा बांधने के बाद स्वयंसेवक पास की झुग्गियों में जाकर वहां रहने वाले लोगों को राखी बांधते हैं.

2. मकर संक्रांति: यह हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में एक है. इसे माघ (जनवरी) के महीने में मनाया जाता है. इस दिन सूर्य का उत्तर की ओर उदय होना शुरू होता है. इस गति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है. यह त्यौहार सूर्य के उत्तरी गोलार्ध ( मकर राशि ) की यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है.

आरएसएस इसे कई कारणों से एक त्यौहार के रूप में मनाता है. यह वह समय अवधि है जो अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमृत की ओर यात्रा का प्रतीक है. इस पवित्र दिन पर भारतीय नदियों में पवित्र स्नान करते हैं.

ऐतिहासिक रूप से, यह त्योहार कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है. आरएसएस शाखाओं में दैनिक दिनचर्या के बाद, स्वयंसेवकों के बीच तिल और गुड़ का मिश्रण वितरित किया जाता है. वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी शाखाओं में समाज के लिए इस सदियों पुराने त्योहार के महत्व के बारे में व्याख्यान देते हैं. कई बार, कई शाखाएं एक साथ मिलती हैं. इसे एक साथ मनाती हैं.

संघ उत्सव में कहा गया है, “यह वह समय है जब स्वयंसेवकों को सोचना चाहिए कि उन्होंने देश के लिए व्यक्तिगत रूप से क्या किया है. इस अवसर पर एक नई शुरुआत की जानी चाहिए और … स्वयंसेवकों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे समाज के कल्याण के लिए निस्वार्थ भाव से काम करेंगे.”

3. वर्ष प्रतिपदा महोत्सव: आरएसएस इसे हिंदू नववर्ष के रूप में मनाता है. पारंपरिक भारतीय ज्ञान और शास्त्रों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इस विशेष दिन पर ब्रह्मांड का निर्माण शुरू किया था. इस दिन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण घटनाएं हैं. सम्राट विक्रमादित्य ने शक आक्रमणकारियों को हराया था. उन्हें भारत से भागने पर मजबूर कर दिया था. इसलिए इस दिन एक नया हिंदू कैलेंडर शुरू हुआ था, जिसे विक्रमी संवत कहा जाता है.
माना जाता है कि भगवान राम का अयोध्या के राजा के रूप में राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था. साथ ही, भारत के सबसे महान आधुनिक युग के सुधारकों में एक महर्षि दयानंद ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी.
संघ उत्सव में कहा गया है, “यह उत्सव पुराने साल के अंत और नए साल की शुरुआत का प्रतीक है. इसलिए यह पिछले साल के काम की समीक्षा करने और आने वाले साल के लिए योजना बनाने का समय है.”
इस दिन स्वयंसेवक पूरी आरएसएस की वर्दी पहनते हैं. भगवा ध्वज फहराने से पहले आरएसएस के संस्थापक की याद में ‘आद्य सरसंघचालक प्रणाम’ नामक विशेष सलामी दी जाती है. जहां भी संभव हो, आरएसएस बैंड ‘घोष’ बजाया जाता है. इस अवसर पर अक्सर आरएसएस की कई शाखाएं एक साथ आती हैं और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. इस दिन आरएसएस के प्रमुख पदाधिकारी बौद्धिक प्रवचन देते हैं. कई बार समाज के किसी प्रमुख व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूप में भी बुलाया जाता है.

4. हिंदू साम्राज्य दिवस: यह त्यौहार आरएसएस द्वारा मनाए जाने वाले बाकी त्यौहारों से अलग है. संघ उत्सव के अनुसार, “जबकि आरएसएस द्वारा मनाए जाने वाले बाकी त्यौहार आरएसएस के बाहर भी आम लोगों द्वारा मनाए जाते हैं, यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसे आम तौर पर समाज में बड़े पैमाने पर नहीं मनाया जाता है. वास्तव में, कई लोगों को यह भी नहीं पता कि एक ऐतिहासिक घटना घटी थी, जिसे मनाया जाना चाहिए. “

यह त्यौहार मराठा योद्धा और राजा छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक की याद में मनाया जाता है. 19 मई 1674 को उनका राज्याभिषेक किया गया था. इस राज्याभिषेक के साथ ही आधिकारिक तौर पर एक हिंदू साम्राज्य अस्तित्व में आया क्योंकि शिवाजी ने घोषणा की: “हिंदू स्वशासन स्थापित होना चाहिए, यही ईश्वर की इच्छा है … यह राज्य शिवाजी का नहीं बल्कि धर्म का है.”

यह त्यौहार आरएसएस शाखा में शिवाजी और उनके गुरु समर्थ रामदास की तस्वीरों की पूजा करके मनाया जाता है. इस अवसर पर शिवाजी द्वारा राजपूत राजा जय सिंह को लिखा गया प्रसिद्ध पत्र भी पढ़ा जाता है. पत्र में राजपूत योद्धा से मुगलों के लिए हिंदुओं का खून न बहाने का आह्वान किया गया. उन्हें महान उद्देश्य के लिए शिवाजी से जुड़ने के लिए प्रेरित किया गया.

5. गुरुपूर्णिमा: हिंदू धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना जाता है. यह पर्व जीवन जीने का सही तरीका दिखाने और ज्ञान देने के लिए गुरु के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर है. आरएसएस में भगवा ध्वज को गुरु माना जाता है. इस दिन स्वयंसेवक भगवा ध्वज की पूजा करते हैं.

यह त्यौहार हिंदू महीने आषाढ़ में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन को आषाढ़ी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. स्वयंसेवक आमतौर पर सफेद कपड़े (अधिमानतः धोती-कुर्ता या कुर्ता-पायजामा जैसी पारंपरिक भारतीय पोशाक ) और इस अवसर पर काली आरएसएस टोपी पहनते हैं और पुष्पांजलि अर्पित करके भगवा ध्वज की पूजा करते हैं. इसके बाद जीवन में गुरु के महत्व पर बौद्धिक प्रवचन होते हैं. स्वयंसेवकों को याद दिलाया जाता है कि आरएसएस ने गुरु के रूप में किसी व्यक्ति के बजाय भगवा ध्वज को क्यों चुना.

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