रोमांटिक मिजाज के संगीतकार, दोस्तों के बीच कहलाए ‘अमेरिकन लेडी’, कालजयी धुनों से रचा हिंदी सिनेमा का सुनहरा काल


नई दिल्ली: ‘अकेले-अकेले कहां जा रहे हो’, ‘तुमने पुकारा और हम चले आए’, ‘हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं’, ‘दीवाने का नाम ना पूछो’, ‘इस रंग बदलती दुनिया में’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, ‘बोल राधा बोल’, ‘तेरा जाना दिल के अरमानों का लूट जाना’, ‘तुम्हें याद करते-करते’, ‘पर्दे में रहने दो’, ‘अजीब दास्तां है ये’, ‘पान खाये सैयां हमारो’, ‘कहता है जोकर सारा जमाना’, ‘चल संन्यासी मंदिर में’,’एहसान तेरा होगा मुझ पर’ ये उस दौर के गाने हैं जब हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग चल रहा था. यानि हिंदी सिनेमा में 50 और 60 का दशक. फिल्मों के गाने ऐसे जिसे 6 दशक बीत जाने के बाद भी आज आप सुनेंगे तो गुनगुनाने पर मजबूर हो जाएंगे.

इन गानों को सुनकर आपको शायद यह एहसास होगा कि इसका संगीत कितना आसान रहा होगा, जबकि इन सदाबहार गानों का निर्माण उतना ही कठिन था. ये गाने जिस संगीतकार जोड़ी की सोच की उपज थे, उन्होंने उस दौर में हिंदी सिनेमा के संगीत की दिशा ही बदल दी. यह जोड़ी थी संगीतकार शंकर-जयकिशन की. इनमें से एक जयकिशन के बारे में कहा जाता है कि वह रोमांटिक स्वभाव के थे, इसलिए रोमांटिक गानों में उनके स्वभाव की धुन छलकर सामने आती थी. यही वजह थी कि कपड़े पहनने के शौकीन जयकिशन को उनके करीबी ‘अमेरिकन लेडी’ कहकर पुकारते थे.

शंकर-जयकिशन की पहली फिल्म ‘बरसात’ आई और दोनों का नाम बॉलीवुड संगीत के शीर्ष पर अंकित हो गया. शंकर-जयकिशन की जोड़ी के बारे में बताया जाता था कि बॉलीवुड में इनके गॉड फादर राज कपूर थे, जिनकी फिल्मों के लिए वह कुछ हटकर संगीत बनाते थे. बाद में यह जोड़ी टूट गई. अलग-अलग संगीत देना शुरू किया, लेकिन राज कपूर के कहने पर इन दोनों ने आखिर तक अपना नाम एक ही रखा. भले संगीत जयकिशन का होता हो या शंकर का, फिल्म में संगीतकार का नाम शंकर-जयकिशन ही लिखा जाता रहा.

पृथ्वी थियेटर से शुरू हुई दोस्ती
1949 से लेकर 1971 तक, इस संगीतकार जोड़ी ने ऐसी धूम मचाई कि लोग इनके संगीत निर्देशन के दीवाने हो गए. शंकर सिंह रघुवंशी और जयकिशन दयाभाई पांचाल की दोस्ती पृथ्वी थियेटर से शुरू हुई और इस जोड़ी ने संगीत के आसमान पर इतने तरानों को अपनी धुनों से सजाया कि लोग दंग रह गए. राज कपूर की खोज शंकर-जयकिशन के बीच विवाद भी उन्हीं की फिल्म ‘संगम’ में काम करने के दौरान हुआ. दोनों के बीच वादा खिलाफी को लेकर अनबन हुई और फिर दोनों अलग हो गए. इस फिल्म में एक गाना था ‘ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कि तुम नाराज न होना’ जिसको लेकर शंकर और जयकिशन ने एक-दूसरे से वादा किया था कि वह कभी किसी को नहीं बताएंगे कि इस गाने की धुन किसने बनाई है.

एक वादे के चलते टूटी दोस्ती
इस जोड़ी में ये वादा इसलिए हुआ था क्योंकि दोनों अपनी-अपनी धुन अलग-अलग बनाते थे, लेकिन दोनों के बीच यह हमेशा के लिए समझौता था कि कोई किसी के सामने यह जाहिर नहीं करेंगे कि यह धुन किसने बनाई है. जयकिशन इस बात को भूलकर एक मैगजीन इंटरव्यू में इस गाने की धुन के बारे में बोल गए कि इसकी धुन उन्होंने बनाई थी. फिर क्या था शंकर को इस बात का बुरा लगा और दोनों ने एक दूसरे का साथ छोड़ दिया. हालांकि गायक मोहम्मद रफी की कोशिश के बाद इन दोनों के बीच के मतभेद कुछ कम हुए. कहा जाता है कि बॉलीवुड गानों में ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल पहली बार इसी जोड़ी ने किया था. शंकर-जयकिशन को सबसे ज्यादा नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

एक्टर बनने आए थे मुंबई
इस जोड़ी में से एक जयकिशन दयाभाई पांचाल का जन्म 1929 में वांसदा, गुजरात में हुआ था. संगीत इनके परिवार में नहीं था, लेकिन जयकिशन के मन में संगीत जरूर बसता था. यही वजह थी कि संगीत विशारद वादीलालजी और प्रेम शंकर नायक से जयकिशन ने संगीत की विधिवत शिक्षा ली. संगीत से प्यार करने वाले जयकिशन के दिल में तो एक्टर बनने की इच्छा कुलांचे मार रही थी ऐसे में वह बॉलीवुड फिल्मों में एक्टर बनने का सपना लेकर मुंबई आ गए थे और यहां गार्ड की नौकरी कर ली. शंकर के साथ जयकिशन की अनबन भले हो गई हो, लेकिन 12 सितंबर 1971 को जयकिशन के इस दुनिया को अलविदा कहने के बाद भी लोग 16 साल तक यह महसूस नहीं कर पाए कि जयकिशन अब इस दुनिया में नहीं रहे, क्योंकि शंकर ने इसके बाद जितनी भी फिल्मों में संगीत दिया, उनमें संगीतकार का नाम शंकर-जयकिशन ही लिखा.

लता मंगेशकर के समर्थक थे जयकिशन
एकदम हीरो जैसे दिखने वाले जयकिशन पेटी(हारमोनियम) बजाते थे जबकि हैदराबादी शंकर तबलावादक थे. जयकिशन के जाने के बाद भले शंकर ने इंडस्ट्री में 16 साल निकाले, लेकिन उनका जादू वैसा नहीं चला जैसा दोनों साथ में जलवा बिखेर रहे थे. शंकर और जयकिशन के बारे में एक बात और जो कम ही लोग जानते थे कि जयकिशन लता मंगेशकर को हमेशा अपने गानों में आवाज देते देखना चाहते थे, जबकि शंकर नई गायिका शारदा को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते थे.

जयकिशन की धुन से शम्मी कपूर बने थे स्टार
शम्मी कपूर को जयकिशन की बनाई धुन ने ही स्टार बना दिया था. उनकी फिल्म ‘जंगली’ में उन्हें जो शोहरत हासिल हुई उसके गाने की धुन जयकिशन ने ही बनाई थी. जयकिशन की बनाई धुन पर शम्मी अपना पहला अधिकार रखते थे और धुन पसंद आई तो उसे अपने लिए बुक कर लेते थे. राजेंद्र कुमार को सिल्वर जुबली स्टार बनाने में भी शंकर-जयकिशन के म्यूजिक का बड़ा हाथ रहा. ‘बादल’, ‘नगीना’, ‘बरसात’, ‘यहूदी’, ‘अनाडी’, ‘दिल अपना और प्रीत पराई’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘जंगली’, ‘ससुराल’, ‘असली-नकली’, ‘प्रोफसर’, ‘दिल एक मंदिर’, ‘आम्रपाली’, ‘सूरज’, ‘तीसरी कसम’, ‘ब्रह्मचारी’, ‘कन्यादान’, ‘शिकार’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘अंदाज’ जैसी फिल्मों में शंकर-जयकिशन ने संगीत दिया था.

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