लालू यादव ने यूं ही राहुल गांधी के बदले ममता बनर्जी का साथ नहीं दिया, तगड़ी है रणनीति, जानिए इनसाइड स्टोरी



Lalu Yadav Mamata Rahul 2024 12 3cb39f365f18a2cda2fbe76b0d02dfb5 लालू यादव ने यूं ही राहुल गांधी के बदले ममता बनर्जी का साथ नहीं दिया, तगड़ी है रणनीति, जानिए इनसाइड स्टोरी

पटना: बिहार में इंडिया ब्लॉक के भीतर प्रेशर पालिटिक्स शुरू हो गई है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने राहुल गांधी की बजाय ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक की कमान सौंपने की वकालत यूं ही नहीं की है. इसके पीछे उनकी सुचिंतित चाल है. लालू यादव को पता चल गया है कि कांग्रेस अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में न सिर्फ सीटों के लिए अड़ेगी, बल्कि उन चेहरों को भी सामने लाएगी, जो लालू यादव को पसंद नहीं हैं. कांग्रेस की रणनीति की जैसे ही लालू को भनक मिली, उन्होंने पैंतरा बदल लिया. लालू किसी भी हाल में तेजस्वी के सामने उन चेहरों के उभार के खिलाफ रहे हैं.

क्या है कांग्रेस की रणनीति
बिहार में कांग्रेस तकरीबन तीन दशक से आरजेडी की पिछलग्गू बनी हुई है. कांग्रेस का प्रदेश में नेतृत्व किसके पास रहेगा, यह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव तय करते रहे हैं. लालू ने पिछले साल कांग्रेस दफ्तर जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं को बताया भी था कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह को राज्यसभा भेजने में उनकी क्या भूमिका रही. उनका दावा था कि उनके ही कहने पर सोनिया गांधी ने अखिलेश सिंह को राज्यसभा भेजा.

पिछलग्गू नहीं बनेगी कांग्रेस
कांग्रेस ने अब अपनी पिछलग्गू छवि बदलने का प्लान बनाया है. हरियाणा और महाराष्ट्र में हार के बाद कांग्रेस ने जो मंथन किया, उसमें दो बातें उभर कर सामने आई थीं. पहला यह कि कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है. दूसरा कि विधानसभा चुनावों में जातीय जनगणना और संविधान पर खतरा जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को उठाने की बजाय पार्टी स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी. उत्तर प्रदेश में पार्टी की सभी इकाइयां भंग कर कांग्रेस ने इसकी शुरुआत भी कर दी है.

कांग्रेस का कन्हैया पर दांव
बिहार में भी कांग्रेस संगठनात्मक ढांचे में बदलाव करेगी. इतना ही नहीं, चुनाव के लिए पार्टी पहले से ही कुछ स्थानीय चेहरों को सामने लाने की तैयारी में है. इस क्रम में पहला नाम जेएनयू के अध्यक्ष रह चुके कन्हैया कुमार और दूसरा नाम पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का आ रहा है. कन्हैया कुमार और पप्पू यादव से लालू यादव और तेजस्वी यादव की नाराजगी जग जाहिर है. दोनों से लालू और तेजस्वी की अदावत सबको पता है. कन्हैया कुमार बिहार के तो हैं ही, वे बेगूसराय से संसदीय चुनाव भी लड़ चुके हैं. हालांकि वे चुनाव जीत नहीं पाए, लेकिन बिहार में उनके चेहरे को लोग पसंद करते हैं. संसदीय चुनाव में कन्हैया को इसलिए कामयाबी नहीं मिल पाई थी कि आरजेडी ने भी वहां से अपना उम्मीदवार दे दिया था. तब वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के कैंडिडेट थे.

कन्हैया होंगे कांग्रेस का फेस?
कन्हैया अब कांग्रेस के साथ हैं और लंबे समय से कांग्रेस ने उन्हें कोई जिम्मेवारी नहीं दी है. इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हें बिहार से आजमाने की तैयारी में थी, लेकिन लालू के दबाव में उन्हें टिकट नहीं मिल पाया और आखिरकार कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली में उतारा. कन्हैया कुमार के इस बार मैदान में उतरने की भनक पाते ही लालू ने अपना तेवर सख्त कर लिया और इंडिया ब्लाक में राहुल गांधी के नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिया. पर, कांग्रेस भी इस बार किसी दबाव में आने के मूड में नहीं है. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और बिहार कांग्रेस के प्रभारी शाहनवाज आलम ने तीन बातें कह कर आरजेडी के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है. पहले उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा लोकसभा चुनाव के स्ट्राइक रेट के आधार पर होगा. अब वे कह रहे हैं कि इंडिया ब्लाक की सरकार बनी तो दो उप-मुख्यमंत्री होंगे. मार्के की उनकी तीसरी बात यह थी कि इंडिया ब्लाक में कोई छोटा-बड़ा भाई नहीं है.

पप्पू भी बदला लेने को तैयार
पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव अपने को कांग्रेस का सिपाही मानते हैं. अपनी जन अधिकार पार्टी का उन्होंने कांग्रेस में विलय इसीलिए किया था कि उन्हें पार्टी पूर्णिया से लोकसभा का उम्मीदवार बनाएगी. कहते हैं कि प्रियंका गांधी ने उन्हें इसका आश्वासन भी दिया था. ऐन वक्त सब कुछ बदल गया. लालू-तेजस्वी ने पहले ही आरजेडी का उम्मीदवार बीमा भारती को घोषित कर दिया. हालांकि इंडिया ब्लाक की बिहार में आरजेडी के बड़ी पार्टी होने के नाते उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी यादव से उनके आवास जाकर मुलाकात भी की थी. हद तो तब हो गई, जब तेजस्वी यादव ने पूर्णिया की एक सभा में कह दिया कि आरजेडी को वोट नहीं दे सकते तो एनडीए को दे दें, लेकिन पप्पू यादव को कत्तई न दें. विधानसभा चुनाव में पप्पू को कांग्रेस अपना हथियार बनाएगी. उन्हें भी तेजस्वी से बदला लेने का मौका मिल जाएगा.

कन्हैया से तेजस्वी को भय
कन्हैया कुमार से तेजस्वी को भय लगता है. कन्हैया उनसे अधिक पढ़े-लिखे हैं. सांसदी का दो चुनाव लड़ चुके हैं. अपने तर्कसंगत भाषणों से कन्हैया विरोधियों पर भी कुछ देर के लिए प्रभाव छोड़ते हैं. वामपंथी पहचान तो उनकी जेएनयू के जमाने से ही रही है, अब भाजपा की धुर विरोधी कांग्रेस में रहने का भी उन्हें लाभ मिल सकता है. इंडिया ब्लाक की सरकार बनती है और कन्हैया उस टीम में आते हैं तो यह तेजस्वी के लिए इसलिए खतरनाक होगा कि लोग दोनों की बातों, विचारों, तर्कों और शिक्षा की तुलना शुरू कर देंगे. यह तेजस्वी के लिए शुभ नहीं माना जाएगा.

इसलिए लालू का यह पैंतरा
लालू नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के चेहरे पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े. उनकी यह भी कोशिश है कि कांग्रेस पहले की तरह आरजेडी की पिछलग्गू बनी रहे. इसलिए कि सीटों के बंटवारे में उनकी मर्जी चल सके. इस बार कांग्रेस को पिछली बार की तरह 70 सीटें देने के मूड में आरजेडी नहीं है. कांग्रेस 70 सीटें लेकर सिर्फ 19 ही जीत पाई थी, जिससे तेजस्वी उभार के बावजूद सीएम नहीं बन सके. कांग्रेस को भी सीटों में कटौती का भय सता रहा है. इसीलिए दोनों ओर से तनातनी दिख रही है. कांग्रेस लोकसभा के हालिया चुनाव के स्ट्राइक रेट के आधार पर टिकट बंटवारा चाहती है. अब तो दो डेप्युटी सीएम का भी दावा कर दिया है. यानी दोनों ओर से प्रेसर पोलिटिक्स हो रही है.

Tags: Lalu Prasad Yadav, Mamata banerjee, Rahul gandhi



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