लीची के बागानों से किसान ले रहे डबल फायदा, कड़कनाथ और वनराजा जैसे मुर्गों का कर रहे पालन


मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा लीची के किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए केंद्र एक नया प्रयोग कर रहा है. अनुसंधान केंद्र लीची के बगीचे में मुर्गी पालन पर जोर दे रहा है. लीची के बागों में ओपन मुर्गी फार्मिंग कर मुर्गियों की अच्छी प्रजाति जैसे कड़कनाथ, वनराजा, शिप्रा से किसानों को डबल फायदा मिल रहा है. केंद्र का मानना है कि इससे लीची के बाग में छोटे-छोटे पौधे और कीड़े-मकोड़े से नुकसान को रोकने के लिए कीटनाशक का छिड़काव भी नहीं करना पड़ेगा.

कीड़े और पौधे बन रहे मुर्गी और बकरी का चारा
लीची के बगीचे में तरह-तरह के छोटे-छोटे पौधे हमेशा निकलते रहते हैं, जो पलने वाली बकरे-बकरी का चारा बन जाएगा. उसी तरह लीची के बागों में जो कीड़े-मकौड़े उत्पन्न होते हैं वे सभी मुर्गों का भोजन बन जाएंगे. लीची बागान में मुर्गी फार्मिंग से लीची के पेड़ों को भी लाभ मिल रहा है. वहीं, मुर्गी पालन में लागत भी कम आती है. ऐसे में किसानों को अच्छा लाभ मिल रहा है. मुजफ्फरपुर के लीची बागानों में ओपन फार्मिंग के तहत देश के सर्वोत्तम देसी नस्लों के मुर्गों को पाला जा रहा है.

लीची अनुसंधान केन्द्र कर रहा किसानों को प्रशिक्षित
फार्म में मौजूद किसान मिंटू ने लोकल 18 को बताया की इंटीग्रेटेड फार्मिंग को लेकर लीची अनुसंधान केन्द्र जिले में लीची की बागवानी करने वाले किसानों को प्रशिक्षित कर रहा है. लीची के बागानों में देसी मुर्गों के ओपन फार्मिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें देसी मुर्गे और लीची के बाग दोनों एक दूसरे के लिए अनुपूरक का काम कर रहे हैं. इसमें देसी नस्लों के मुर्गों को पाला जा रहा है. जिसमें छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कड़कनाथ, वनराजा और शिप्रा जैसे देसी मुर्गें शामिल हैं. लीची बागान में इन देसी मुर्गों के ओपन फार्मिंग से बगीचों में उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल की जरूरत आधी से भी कम हो गई है. जिससे लीची की गुणवत्ता और साइज में भी इजाफा देखने को मिलता है.

FIRST PUBLISHED : May 7, 2024, 05:13 IST



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