वो टाटा जिसने फ्रांस में अपनी टीचर की आधी उम्र की बेटी से लड़ाई आंखें, विरोध के बाद भी शादी, जानें लव स्टोरी
इन टाटा का नाम था रतनजी दादाभाई टाटा, वो जेआरडी के पिता थेवह 44 साल के थे और लड़की 22 साल की, शादी पेरिस और लंदन में हुईइस शादी का पारसियों ने विरोध किया, कोर्ट में गया था ये मामला
ये ऐसा टाटा की कहानी है जो टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेटजी टाटा के भतीजे थे और मशहूर जेआरडी टाटा के पिता. ये लव स्टोरी भी खासी दिलचस्प है. उनका नाम था रतनजी दादाभाई टाटा. उन्होंने कई तरह के बिजनेस किए थे. बाद में टाटा ग्रुप के फाउंडेशन में योगदान दिया. उन्हें जिससे प्यार हुआ वो उम्र में तो उनसे बहुत छोटी थी. साथ ही दूसरे धर्म की भी और फ्रांस की रहने वाली. कहा जाता है पारसी अपने धर्म से बाहर शादी कतई पसंद नहीं करते. 20 सदी के शुरू में तो इस बात को बहुत कट्टरता के साथ माना जाता था.
यानि ऐसे दो लोगों की प्रेम कहानी, जिनके बीच कुछ भी एक जैसा नहीं था. वह सुंदर, लंबे और स्मार्ट थे. वह फ्रांस के साथ मोती और रेशम का व्यापार करना चाहते थे. उसमें उन्हें बहुत उम्मीद नजर आ रही थी. वह पेरिस पहुंच चुके थे. फ्रेंच सीखना चाहते थे. उन्होंने अपने चाचा जमशेटजी से बात की. उन्होंने तुरंत उनके लिए एक अच्छी टीचर की व्यवस्था कर दी – मैडम ब्रियर.
वह उनके फ्रेंच टीचर की बेटी थीं
रतनजी दादाभाई की पहली शादी एक पारसी महिला से हुई थी. लेकिन शादी के कुछ साल बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया. इस शादी से उन्हें कोई बच्चा नहीं था. जब वह पेरिस पहुंचे तो उनकी उम्र 42 साल हो चली थी. वह फ्रेंच सीखने रोज अपनी टीचर ब्रियर के घर जाने लगे. यहीं उनकी मुलाकात टीचर की खूबसूरत बेटी से हुई. वह सुसौनी थी.
खूबसूरत सुसौनी (बाएं) जमशेटजी टाटा के बड़े बेटे दोराबजी की पत्नी मेहरबाई के साथ(फाइल फोटो)
सुसौनी खूबसूरत थीं
सुसौनी खूबसूरत थी. पतली-लंबी और सुनहरे बालों वाली. उम्र केवल 20 साल. टीचर के घर में कुछ ही मुलाकातों में वह उससे प्यार कर बैठे. सुसौनी ने भी उनके मोहब्बत में गिरफ्तार हो चुकी थी. रतनजी को मालूम था कि वह पारसी हैं और किसी क्रिश्चियन फ्रेंच से शादी करना आसान तो नहीं होगा. इसका बहुत विरोध होगा.
चाचा को बताया तो डर भी रहे थे
पहले तो वह इसी उधेड़बुन में घिरे रहे कि क्या किया जाए. दूसरी तरफ प्यार बढ़ता जा रहा था. उन्हें लगने लगा कि वह अब सुसौनी के बगैर नहीं रह पाएंगे. खैर उन्होंने डरते डरते जमशेटजी को इस बारे में बताया. ये इच्छा जाहिर की कि वह इस खूबसूरत लड़की को प्यार करने लगे हैं. शादी करना चाहते हैं.
पारसी समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया
उन्हें मालूम था कि उनके इतना कहते ही चाचा गुस्से से फट पड़ेंगे. लेकिन वो तब हैरान रह गए जबकि चाचा ने तुरंत सहमति दे दी. हालांकि मुंबई में इसकी पारसी समुदाय में बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई. कई बातें थीं. एक तो लड़की और लड़के की उम्र में 22 साल का अंतर था. वह ईसाई थी. दूसरी ओर रतनजी विधुर और ईसाई. उस समय उनके विवाह को क्रांतिकारी माना गया.
जेआरडी टाटा के पिता रतनजी दादाभाई अपनी पत्नी सुसौनी और बच्चों के साथ. (courtesy – tata.com)
पारसी दूसरे धर्म में शादी नहीं करना पसंद करते
मुंबई में पारसी समुदाय में कोई भी इस शादी के पक्ष में नहीं था लेकिन चूंकि चाचा जमशेट ने अपनी रजामंदी दे दी थी, लिहाजा अब वह किसी भी तरह के विरोध का सामना कर सकते थे. ऐसे भी पारसी समुदाय अब तक ऐसे धर्म के तौर पर माना जाता है जो शुद्ध रक्त के चलते दूसरे धर्म के लोगों के साथ शादी को बहुत मुश्किल से स्वीकार करते हैं. अपने ही धर्म में शादी पसंद करते हैं.
पहले शादी पेरिस में हुई
शादी 1902 में हुई. पेरिस में ये शादी धूमधाम से हुई. इसमें जमशेटजी शामिल हुए. शादी के बाद रतन डी. टाटा अपनी नई नवेली पत्नी को ब्रिटेन ले गए. यहां उन्होंने पारसियों को शानदार दावत दी. इसे उस समय की यादगार शादियों में गिना जाता है.
फिर लंदन में पारसी तौरतरीकों से
सुसौनी ने लंदन से अपनी मां को कई पत्र लिखे. इन पत्रों से रतन डी. टाटा के प्रति उनके गहन प्रेम का पता चलता है. मैं अपने पति के साथ बहुत खुश हूं. मेरे पति मुझे सुरक्षित, संतुष्ट और संरक्षित महसूस कराते हैं.” उन्होंने इसी पत्र में मां को लिखा कि रतन धार्मिक विचारों वाले हैं. उनकी शादी चर्च में तो हो गई लेकिन अब वो लंदन में पारसी रीति-रिवाजों से दोबारा शादी की योजना बना रहे हैं.
पारसी उच्च पुजारी ने आखिरकार वहां इस शादी को कराने के लिए आधिकारिक मंजूरी दे दी. ये शादी लंदन में सेठना के घर में हुई. इसमें 60 लोग शामिल हुए.
इसमें दुल्हन ने ‘इजर’ पहना और सफेद कश्मीरी शॉल ओढ़ूी. शादी हो गई. ये पूरी तरह पारसी रीतिरिवाजों से हुई. ये पूरा समारोह कई दिनों तक चला. शादी होते ही सुसैनी पारसी धर्म में स्वीकार कर ली गईं. पारसी धर्म और नए जीवन में उन्हें नया नाम मिला सूनी.
भारत में कार चलाने वाली पहली महिला
ये शादी बहुत अच्छी चली. वो 21 साल तक शादीशुदा रहे. सुसौनी ब्रिएरे 1905 में भारत में कार चलाने वाली पहली महिला थीं. उन्होंने कार चलाई. उन्हें कविता और संगीत का भी शौक था.
इस तरह से वो जिन्ना के रिश्तेदार भी
सुसौनी मुंबई और पेरिस दोनों जगह रहती थीं. उनके पांच बच्चे हुए. सिल्ला, जमशेद (जेआरडी), रोडाबेह, दाराब और जिमी. इन्हीं बच्चों में एक जेआडी बाद में टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने. लंबा समय उन्होंने इस पद पर गुजारा ही नहीं बल्कि टाटा उद्योग समूह को नई ऊंचाइयां दी. साथ में काफी विस्तार भी.
उनकी एक बेटी, सिल्ला का विवाह उद्योगपति सर दिनशॉ मानेकजी पेटिट से हुआ, जो मुहम्मद अली जिन्ना की पत्नी रतनबाई पेटिट के भाई थे.
सूनी ने उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पेरिस में घायल सैनिकों के इलाज से संबंधित अस्पताल में स्वेच्छा से स्वयंसेवक की तरह काम किया था. वास्तव में, मार्ने की लड़ाई के दौरान बड़ी संख्या में घायल सैनिक पेरिस पहुंचे थे. फिर टीबी से संक्रमित हो गईं.
लंदन में तबीयत खराब हो गई
उस समय वह लंदन में थीं, जबकि उनकी तबीयत खराब हो गई. तब रतनडी टाटा भारत में टाटा स्टील की स्थापना के संघर्ष में लगे हुए थे. वह लंदन में थीं. हर दिन वह सोचते थे कि क्या वह उनसे मिलने के लिए समय पर लंदन पहुंच पाएंगे.
43 वर्ष की उम्र में निधन
आखिरकार, जिस दिन वह पेरिस जाने के लिए जहाज पर चढ़े, उन्हें तार मिला कि सूनी अब नहीं रही. भारी मन से वह फ्रांस पहुंचे. अपने बच्चों को वापस भारत ले आए. 1923 में सूनी का निधन हो गया. हालांकि इसके बाद जेआरडी टाटा फ्रांस में पढ़ने गए. रतनजी के सारे बच्चों को फ्रांस की नागरिकता मिली हुई थी, क्योंकि ज्यादातर का जन्म वहीं हुआ था. लंबे समय तक जेआरडी ने अपने पास फ्रांस की नागरिकता रखी. बाद में उन्होंने इसे छोड़ा.
जेआरडी ने अपनी मां को कैसे याद किया
बाद में एक साक्षात्कार में अपनी माँ के बारे में याद करते हुए, जेआरडी ने कहा, “मेरी मां बहुत स्वतंत्र और आगे बढ़ने वाली थीं. उन्होंने फैसला किया कि अगर पिता चाहते हैं कि वे पारसी बनें तो वे पारसी बन जाएंगी. इसने भारत में एक तूफान खड़ा कर दिया. अदालतों में इस बात को लेकर लंबी लड़ाई चली कि क्या एक गैर-जन्मा पारसी व्यक्ति पारसी बन सकता है. आखिरकार पिता ने केस जीता.”
सुजैन एक स्वतंत्र महिला थीं, जिनकी विचारधारा अपने समय से बहुत आगे थी. जब वह शादी के बाद नवसारी पहुंचीं तो वह स्थानीय लोगों के साथ बहुत अच्छी तरह से घुलमिल गईं. पारसियों की आदतों को अपना लिया. वह गुजराती और अंग्रेजी बोलती थीं, लेकिन इतनी अच्छी नहीं.”
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FIRST PUBLISHED : October 15, 2024, 08:33 IST