शक्ति रक्षते रक्षतः…रक्षाबंधन मनाएं, नारी और नदी के सम्मान और स्वाभिमान का प्रण करें


हाइलाइट्स

रक्षाबंधन का मतलब केवल बहनों की भौतिक तौर पर रक्षा करना नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा
महिलाओं और शक्तियों को उचित माहौल दें, उन्हें सपनों को हकीकत में बदलने में मदद करें

धर्मे रक्षते रक्षतः अर्थात धर्म हमारी रक्षा करता है. हालांकि समय के साथ-साथ हमने धर्म की परिभाषा बदलते देखी हैं और समय के अनुसार हमें भी धर्म को परिभाषित करना होता है. रक्षाबंधन का मतलब केवल अच्छे कपड़े, गिफ्ट और मिठाइयां ही नहीं हैं. ये प्रतीक है भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का. आमतौर पर इसका मतलब भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा और उनका ध्यान रखना है परन्तु अब समय आ गया है कि हम रक्षाबंधन के मूल को समझे, विस्तार दें और उसके पीछे के वास्तविक अर्थ को जाने

रक्षाबंधन एक सेतु 
रक्षाबंधन के माध्यम से भाई-बहन दोनों एकदूसरे की रक्षा करते हैं. रक्षा का बंधन एक प्रतीक है, एक सेतु है रक्षा का. हमारी संस्कृति में एक ओर तो हम स्वतंत्रता को महत्व देते हैं परन्तु दूसरी ओर बंधन का उत्सव मनाते है, बंधन भी प्रेम का, धर्म का और मर्यादा का, जिसमें हम सहज भाव से प्रवेश करते हैं और यह एक ऐसा बंधन है जो हमें मुक्त करता है; दिशा देता है और हमारे मूल, मूल्य, जड़ों से जोड़ता है.

शक्ति का अनादर ही समाज का पतन
जो समाज अपनी शक्तियों को अंडरस्टीमेट करता है, कमजोर, अयोग्य या असमर्थ मानता है उस समाज का पतन होता है. हमारे इतिहास में इसका उल्लेख भी मिलता है, चाहे वह महाभारत हो या फिर रामायण हो इसलिये हमें अपने अतीत से सीखना चाहिए. हमने देखा कि जिस काल में नारियों की रक्षा नहीं हुई या उनके साथ अहित या अन्याय हुआ उस काल में कहीं न कहीं हमें धर्मयुद्ध देखने को मिला है.
अगर हम अपनी शक्तियों (नारियों) को उनकी शक्तियों का एहसास नहीं दिलायेंगे तो समय अवश्य उनकी शक्तियों का अहसास दिलायेगा इसलिये समाज का कर्तव्य है कि वह अपनी उन्नति, प्रगति और समृद्धि को केवल अपनी जीडीपी, रोजगार और विकास के आधार पर ही निर्धारित न करें बल्कि यह अत्यंत आवश्यक है कि समाज अपनी शक्तियों, नदियों और प्रकृति का स्वास्थ्य और सुरक्षा के मूल्यांकन के आधार पर अपनी प्रगति को निर्धारित करें.
अगर नारी व नदी दोनों अस्वस्थ है अर्थात हम मान सकते हैं कि हमारा पूरा समाज अस्वस्थ है. ऐसी परिस्थितियों में समाज में कितना भी परिवर्तन किया जाये परन्तु वह स्थायी, सतत व टिकाऊ नहीं होगा.

कैसे हो हमारा अमृतकाल में प्रवेश
जब हम मान रहे है कि यह समय हमारा अमृत काल है और आगे आने वाले एक हजार वर्षों की हम नींव डाल रहे हैं, बीज रोपित कर रहे हैं उस में हमें नारी शक्ति का सम्मान, स्वाभिमान व सुरक्षा को लेकर चलना होगा तभी हम वास्तव में अमृत काल का वास्तविक स्वरुप का दर्शन कर पाएंगे.
जब हम एक विकासात्मक समाज की परिकल्पना करते हैं तो यह बहुत जरूरी है कि उस विकास में नारी शक्ति की उन्नति, प्रगति और प्रकृति का संरक्षण व संवर्द्धन अत्यंत आवश्यक है.

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रक्षाबंधन को धर्म और समाज के साथ महिला के महत्व और शक्ति के संबंध में फिर से विस्तारित पारिभाषित करने की जरूरत है. ये ऐसा रक्षा सूत्र होता है जो एक भाव देता है और इसमें दोनों ही एक दूसरे की रक्षा करते हैं लेकिन अपने तरीके से. (न्यूज18ग्राफिक्स)

वर्तमान समय में भी हमारे समाज में नारियों के साथ असमानता का व्यवहार हो रहा है। ऐसे में रक्षाबंधन को एक दिन मनाने से नहीं होगा बल्कि यह तो रोज का कर्तव्य है. रक्षाबंधन का सूत्र भाई को बहन के प्रति रक्षा का अपना प्रण याद दिलाता है.
नारियों का अस्तित्व बना रहे इस के लिये हम सभी को प्रयत्न करना होगा. वर्तमान समय में भी हमारा धर्म केवल नारियों को सुरक्षा प्रदान करना ही नहीं है बल्कि उनके साथ घर, परिवार, समाज व राष्ट्र के स्तर पर समानता का व्यवहार करना भी आवश्यक है. समानता से तात्पर्य उन्हें प्रत्येक मंच अर्थात् आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक मंचों पर समानता का अधिकार देना, उनकी आवाज सुनना, उनके विचारों को महत्व देना भी अत्यंत आवश्यक है.
हमारे शास्त्रों में सीताराम और राधेश्याम आदि अनेक उदाहरण है इसलिये रक्षाबंधन से इसकी शुरुआत करें, इसके लिये विशेष रूप हम पुरुषों का आह्वान करते हैं कि वे प्रण लें कि असमानता की सोच को जड़ से खत्म करेंगे.

स्त्री व पुरुष दोनों समान व समाज के अभिन्न अंग 
जब हम रक्षाबंधन मना रहे हैं तो सुरक्षा, सहयोग व समानता पर बात करना भी जरूरी है. हमारी बेटियों को आज भी जन्म से ही तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और व्यवहारिक स्तर पर रोज असमानता का सामना करना पड़ता है.

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रक्षाबंधन पर ये समझें कि नारीऔर नदी शक्ति का स्वरूप हैं, उन्हें सुरक्षित और संवर्धित करना चाहिए. (न्यूज18 ग्राफिक्स)

जिस तरह समाज में महिलाओं के अपमान और रेप की घटनाएं आये दिन होती है. हम अपराधों की खबरों को भी देखते हैं, वे घटनायें हमें दहलाती हैं लेकिन थोड़ी देर में हम इन्हें भुला भी देते हैं. बहुत सी घटनाओं पर हम अजान भी बने रहते हैं. बहुत सी खबरें सामने भी नहीं आ पाती. बहुत सी ऐसी खबरों का राजनीतिकरण करके घटनाओं को अनदेखा कर दिया जाता है. कई बार हम मुख्य घटना से भटक जाते हैं, जिससे उसकी गंभीरता नष्ट हो जाती है इसलिये हमें समाज से लिंग आधारित हिंसा, बाल विवाह, लिंग आधारित असमानता आदि कुरितियों को समाप्त करने के लिये कठोर दंड नीति का प्रावधान बनाना होगा और उसका शक्ति से पालन करना होगा.

हम फिल्मों में आइटम सांग डालते हैं. महिलाओं के शरीर व सुन्दरता को बाहरी तौर पर दिखाते हैं. इस माध्यम से हम नारी को अश्लीलता से प्रदर्शित करते हैं. जरूरत है उसके गुण, क्षमताओं व आत्मा के स्तर पर भी देखने की ताकि एक सभ्य व सुसंस्कृत समाज का निर्माण हो सके.

क्या होना चाहिए हमारा धर्म 
महिलाएं जिन बाधाओं और समस्याओं का रोज सामना करती हैं, उसे दूर करना हमारा धर्म होना चाहिए. नारी व प्रकृति की राह में बाधा समाज को भी बाधित कर देता है. इसका असर हम सभी पर पड़ता है. अगर शक्ति की रक्षा करना धर्म है तो हम कह सकते है कि शक्ति रक्षते रक्षतः अर्थात हमें शक्ति व धर्म के अर्थ को विस्तारित स्वरूप में क्रियान्वित कर अपनी कथनी व करनी को एक करना होगा ओर यही रक्षाबंधन का मूल उद्देश्य है.

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