सिकंदरा की पत्थर नक्काशी: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान, 300 करोड़ का सालाना कारोबार


पुष्पेंद्र मीना/ दौसा: राजस्थान के दौसा जिले का सिकंदरा पत्थर नक्काशी के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है. यहां के शिल्पकार न केवल देश, बल्कि विदेशों के पत्थरों को भी उत्कृष्ट मूर्तियों और कलाकृतियों का रूप देने में माहिर हैं. जिले की सिकराय तहसील में स्थित स्टोन मार्केट ने सभी स्टोन मार्ट्स (पत्थर मेलों) में अपनी धाक जमाई है. यहां करीब 25,000 शिल्पकार 700 से अधिक इकाइयों में पत्थर पर नक्काशी का कार्य करते हैं, जिससे यह कारोबार सालाना 300 करोड़ रुपए से अधिक का हो गया है.

स्थानीय पत्थर व्यवसाय का विस्तार
सिकंदरा कस्बा और उसके आस-पास के क्षेत्रों जैसे मानपुर, गीजगढ़, धूलकोट, और पीलोडी में यह पत्थर व्यवसाय फल-फूल रहा है. एक स्टोन व्यापारी साल भर में लगभग 5 से 7 लाख रुपए की बचत कर सकता है. हालांकि इस व्यवसाय में खर्चा भी अधिक होता है, लेकिन मुनाफा भी बड़ा होता है.

पत्थर नक्काशी की प्रक्रिया
सिकंदरा में पत्थर पर नक्काशी का कार्य टांकी और हथौड़े की मदद से किया जाता है. हालांकि, अब मशीनों का उपयोग भी शुरू हो गया है, जिससे पत्थरों की कटाई और आकृति बनाने का काम तेज़ी से होता है. पत्थर पर काम करते समय सुरक्षा सावधानियों का पालन करना जरूरी होता है, क्योंकि कई मजदूर सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं. इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार की ओर से कुछ मदद भी दी जाती है.

पत्थर व्यवसाय की मांग और बाजार
स्टोन मार्केट संघ के अध्यक्ष खैराती लाल सैनी के अनुसार, जिले में पत्थर का सालाना व्यवसाय 300 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. यहां तैयार की गई नक्काशी और आकृतियों को देशभर में, साथ ही अमेरिका, यूके, फ्रांस, जापान, इटली, और नेपाल जैसे देशों में भी निर्यात किया जाता है. दिल्ली के उपराज्यपाल सक्सेना भी यहां का दौरा कर पत्थरों की नक्काशी को सराहा था, जिन्हें दिल्ली में लगाया जाएगा.

पत्थर की आपूर्ति और प्रसंस्करण
यहां आने वाला पत्थर मकराना, बंसी पहाड़पुर, ग्वालियर, सरमथुरा, बिजोलिया, और नागौर जिले के खाटू जैसे स्थानों से लाया जाता है. बड़े पत्थरों को मशीनों द्वारा काटकर छोटे टुकड़ों में बांटा जाता है, और फिर शिल्पकार उन पर महीन नक्काशी करते हैं. एक आकृति बनाने में 15 दिन से लेकर 1 महीने का समय लगता है, आकार और जटिलता के आधार पर.

जयपुर के शिल्पकारों को पछाड़ा
सिकंदरा के शिल्पकार अपनी नक्काशी को जयपुर के कलाकारों से अलग बताते हैं. जयपुर में जहां विभिन्न केमिकल और पाउडर का इस्तेमाल कर सजावट की जाती है, सिकंदरा की नक्काशी प्राकृतिक पत्थरों पर होती है, जिससे इसकी गुणवत्ता स्थायी रहती है. यही कारण है कि सिकंदरा की पत्थर नक्काशी की अमेरिका, यूके, फ्रांस, और जापान जैसे देशों में विशेष मांग है.

अंतरराष्ट्रीय मांग
सिकंदरा में तैयार नक्काशी और पत्थर की आकृतियां न केवल भारत के बड़े शहरों में, बल्कि अमेरिका, यूके, फ्रांस, जापान, और इटली जैसे देशों के होटलों और मकानों की सजावट में उपयोग हो रही हैं. यहां तैयार किए गए पत्थर के सामानों ने इन देशों में भी अपनी एक विशेष पहचान बनाई है.

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