सुपर-अर्थ ग्रह के सौरमंडल में होने से पृथ्वी पर जीवन पर असर: अध्ययन
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वैज्ञानिकों ने सौरमंडल में सुपर-अर्थ ग्रह की परिकल्पना की, जिससे पृथ्वी और अन्य ग्रहों पर असर का अध्ययन किया. शोध में पाया गया कि बड़े ग्रह से पृथ्वी का झुकाव और मौसम बदल सकते हैं.
हाइलाइट्स
- वैज्ञानिकों ने सौरमंडल में सुपर-अर्थ ग्रह की परिकल्पना की
- बड़े ग्रह से पृथ्वी का झुकाव और मौसम बदल सकते हैं
- शोध में पाया गया कि बड़े ग्रह से पृथ्वी रहने योग्य नहीं रह सकती
वैसे तो हमारे सौरमंडल में सारे ग्रह अपनी जगह पर ठीक हैं और संतुलन बनाए हुए हैं. अजीब बात ये है कि इसके जैसा ग्रहों का सिस्टम कहीं और देखने को नहीं मिला है, जबकि वैज्ञानिक हमारी अपनी मिल्की वे में सैकड़ों ऐसे सिस्टम की पड़ताल कर चुके हैं. ऐसे में वैज्ञानिक अध्ययन के लिए यह जानने की कोशिश करते हैं कि अगर सौरमंडल में कोई ग्रह कम या ज्यादा होता तो क्या हाल होता? क्या तब भी पृथ्वी पर जीवन होता या क्या ऐसा जीवन किसी और ग्रह पर होता है. ऐसे ही एक रोचक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन हालात को जानने की कोशिश की है जहां सौरमंडल में एक सुपरअर्थ जैसा ग्रह और होता.
कहां होता वह बड़ा सा ग्रह?
फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (FIT) के ग्रह वैज्ञानिक एमिली सिम्पसन और हॉवर्ड चेन ने इस सवाल पर गौर किया कि मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट की जगह ‘सुपर-अर्थ’ के साथ ब्रह्मांड के इस हिस्से का संतुलन कैसा दिखेगा. उन्हें यह विचार यूं ही नहीं सूझा और इसके पीछे एक बड़ा तर्क भी था.
कहां से मिली प्रेरणा?
शोधकर्ताओं ने एक खास बात देखी कि हमारे जैसे कई सौर मंडलों में उनके तारे के पास कम से कम एक सुपर-अर्थ ग्रह देखने को मिल ही जाता है. ऐसे में उन्हें यह बात बहुत अजीब लगी कि हमारे सौर मंडल में ऐसा नहीं है. इसी फैक्ट से उन्हें इस परिकल्पना का अध्ययन करने की प्रेरणा मिली कि अगर हमारे सौरमडंल भी ऐसा होता तो क्या होता?
हैरानी की बात है कि हमारे सौरमंडल में किसी तरह का सुपरअर्थ नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
ग्रहों पर कैसा होगा असर?
खास बात ये है कि यह कोई असंभव बात नहीं है. ऐसा ना केवल हो सकता था, बल्कि शोधकर्ताओं का कहना है हो भी सकता है. सिम्पसन सवाल करते हैं, “क्या होगा अगर क्षुद्रग्रह बेल्ट, आज की तरह छोटे क्षुद्रग्रहों की अंगूठी बनाने के बजाय, मंगल और बृहस्पति के बीच एक ग्रह बना ले? तब शुक्र, पृथ्वी और मंगल जैसे अंदरूनी ग्रहों पर कैसा असर होगा.”
कैसे किया गया अध्ययन?
सिम्पसन और चेन ने गणितीय मॉडल बनाकर कई तरह के सिम्यूलेशन चलाए. उन्होंने जानने की कोशिश की कि पृथ्वी जैसे अलग-अलग आकार के ग्रह हमारे सौर मंडल के बाकी हिस्सों को कैसे प्रभावित करेंगे. परीक्षण किए गए ग्रहों का आकार पृथ्वी के भार का 1 प्रतिशत, पृथ्वी के भार का ठीक बराबर, पृथ्वी के भार का दोगुना, पृथ्वी के भार का पांच गुना और पृथ्वी के भार का दस गुना था.
सुपर अर्थ जैसा ग्रह पृथ्वी के मौसमों को बहुत ज्यादा प्रभावित कर सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
कुछ खास तरह के असर
हर सिमुलेशन को कुछ लाख सालों तक चलाया गया, जिसमें अन्य ग्रहों की कक्षा और झुकाव पर प्रभाव मापे भी मापे. ये किसी ग्रह पर रहने की क्षमता के लिए मुख्य कारक हैं. कक्षा मौसम की लंबाई को प्रभावित करती है, जबकि झुकाव मौसम की चरम सीमा को प्रभावित करता है. शोधकर्ताओं ने सुपर-अर्थ को फेटन नाम दिया.
किस तरह के बदलाव?
इससे होने वाले बदलाव दिलचस्प थे. सिम्पसन ने बताया “अगर यह एक या दो पृथ्वी के बराबर है, तो हमारा आंतरिक सौर मंडल तब भी काफी अच्छा रहेगा, हमें थोड़ी गर्म गर्मी या थोड़ी ठंडी सर्दी लगेगा क्योंकि तिरछापन में यह झुकाव है, लेकिन हम फिर भी अपना जीवन जी सकते हैं.”
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क्या होता अगर ग्रह का आकार ज्यादा बड़ा होता
बड़े आकार के सुपर-अर्थ ने अन्य ग्रहों की स्थिति को काफी हद तक बदल दिया. पृथ्वी से 10 गुना अधिक भार वाला एक अतिरिक्त ग्रह हमारे ग्रह को रहने योग्य इलाके से बाहर और शुक्र के करीब धकेल सकता है, साथ ही इसके झुकाव पर भी असर डाल सकता है, जिससे मौसमों के बीच खतरनाक चरम सीमाएं पैदा हो सकती हैं. ये सिमुलेशन भविष्य में रहने योग्य क्षेत्रों के लिए सही संतुलन वाले एक्सोप्लैनेट सिस्टम को खोजने में बहुत मददगार हो सकते हैं. इस शोध को इकारस में प्रकाशित किया गया है.
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
January 27, 2025, 19:42 IST