सोच को सलाम! ADC रोहित राठौर ना होते तो कभी घर नहीं जा पाती साकम्मा, 25 साल बाद परिवार से मिल पाई


मंडी. वो किसी और भाषा को समझती थी और हम किसी और भाषा को. यही कारण था कि ना वो अपने बारे में कुछ बता पाई और ना ही हम उसके बारे में कुछ जान पाए. लेकिन भाषा की इस बाधा से उस अधिकारी की सोच ने पार पा लिया, जिसने शायद इस महिला के दर्द को सही ढंग से समझा और उसके अंदर अपनो से मिलने की कसक को महसूस किया. यह प्रेरणादायक कहानी अपनों से बिछड़ी कर्नाटक निवासी साकम्मा और हिमाचल प्रदेश के मंडी में तैनात एचएएस अधिकारी एडीसी मंडी रोहित राठौर की.

दरअसल, साकम्मा को तो उसके परिवार वाले मरा हुआ समझकर उसका अंतिम संस्कार भी कर चुके थे, लेकिन उसे फिर से जीवित करने का काम किया, रोहित राठौर की सोच ने. बात 18 दिसंबर 2024 की है जब एक प्रशासनिक अधिकारी के नाते रोहित राठौर मंडी के मंडी के बल्ह के वृद्ध आश्रम भंगरोटू पहुंचे. यह उनका रूटीन का दौरा था ताकि यहां रह रहे बुजुर्गों को मिल रही सुविधाओं का जायजा लिया जा सके और कमी-पेशी को पूरा किया जा सके. जब वे यहां से वापस आने लगे तो उनकी नजर साकम्मा पर पड़ी जो शक्ल-सूरत से ही हिमाचली प्रतीत नहीं हो रही थी.

जब उसके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश की तो पता चला कि वो कर्नाटक की रहने वाली है और यहां कुछ समय से रह रही है. उसे हिंदी नहीं आती थी, इसलिए अपने बारे में कुछ बता नहीं पा रही थी और एडीसी मंडी को कन्नड़ नहीं आती थी जिसके चलते वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे.

कर्नाटक के दो अधिकारियों से करवाई साकम्मा की बात

एडीसी मंडी रोहित राठौर ने साकम्मा की बात को समझने के लिए कर्नाटक से यहां आए दो अधिकारियों की मदद ली. उन्होंने सबसे पहले आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती को फोन किया जो एसडीएम पालमपुर के पद पर कार्यरत हैं और मूलतः कर्नाटक की रहने वाली हैं. नेत्रा मैत्ती की बात साकम्मा से करवाई तो साकम्मा को अपनी भाषा में बात करने वाला कोई मिला. इससे वह खुशी से फूली नहीं समाई और फटाफट से अपनी कहानी सुना दी. यहां से कुछ जानकारियां जुटाने के बाद रोहित राठौर ने डीसी मंडी अपूर्व देवगन के माध्यम से जिला में प्रोवेशन पर आए आईपीएस अधिकारी रवि नंदन को इस महिला के पास व्यक्तिगत तौर पर जाकर बातचीत करने का निवेदन किया. रवि नंदन भी कर्नाटक से हैं. इस महिला ने उन्हें भी अपनी सारी बात बताई और इस तरह साकम्मा के असली घर और यहां आने की कहानी के बारे में पता चल सका.

कर्नाटक में मर चुकी थी साकम्मा, लेकिन फिर से हो गई जिंदा

इसके बाद साकम्मा के परिवार को तलाशने का कार्य शुरू हुआ. डीसी मंडी अपूर्व देवगन ने प्रदेश सरकार के माध्यम से कर्नाटक सरकार से संपर्क साधा और साकम्मा के फोटो-वीडियो और अन्य प्रकार की जानकारी सांझा की गई. कर्नाटक में साकम्मा के वीडियो बहुत ज्यादा वायरल हुए, इससे नतीजा यह निकला कि साकम्मा के परिवार की तलाश हो सकी, लेकिन यहां एक ऐसी जानकारी भी मिली, जिससे यह मामला और भी ज्यादा सुर्खियों में आ गया.

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अपने परिवार के साथ महिला.

हुआ यूं कि 25 वर्ष पहले जब साकम्मा लापता हुई थी तो उस वक्त परिवार के लोगों ने किसी और महिला के शव को साकम्मा का शव समझकर अंतिम संस्कार कर दिया था, लेकिन जब परिवार को पता चला कि साकम्मा जिंदा है तो वह फूले नहीं समाए. कर्नाटक सरकार ने अपने तीन कर्मियों को साकम्मा को लाने के लिए यहां भेजा और दिनांक 24 दिसंबर को साकम्मा वापिस अपने घर लौट गई.

सामूहिक प्रयासों से वापिस अपने घर पहुंची साकम्मा

एडीसी मंडी रोहित राठौर कहते हैं कि यह सभी के सामूहिक प्रयास थे, जिस कारण साकम्मा आज अपने घर वापिस पहुंच पाई है. हिमाचल प्रदेश सरकार, डीसी मंडी अपूर्व देवगन, आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती और आईपीएस प्रोबेशन रवि नंदन सहित अन्य लोगों ने जो प्रयास किए, यह उसी का नतीजा है. हमें इस बात की खुशी है कि हम एक महिला को इतने वर्षों के बाद वापिस अपने घर पहुंचा पाए हैं.

रोहित राठौर न होते तो साकम्मा कभी घर नहीं पहुंच पाती

यदि रोहित राठौर न होते तो शायद साकम्मा कभी अपने घर नहीं जा पाती. क्योंकि साकम्मा इससे पहले प्रदेश के कई आश्रमों में रह चुकी थी. वर्ष 2018 में उसे हिमाचल प्रदेश में स्पॉट किया गया था. उसके बाद जिन आश्रमों में साकम्मा रही वहां भी कई अधिकारियों ने दौरे किए, लेकिन कभी किसी ने साकम्मा के दर्द को उस नजरिए से नहीं देखा और जाना, जिस नजरिए से रोहित राठौर ने समझने की कोशिश की. रोहित राठौर ने वो नजीर पेश की है, जिसके चलते हम कह सकते हैं कि ’’यदि कुछ कर गुजरने की चाह हो तो मुश्किल से मुश्किल राहें भी आसां हो जाती हैं.’’

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