स्वदेश : अमेरिका की जगह भारत को क्यों चुना नंदिनी ने…


हाइलाइट्स

एक ऐसी भारतीय की कहानी जिसका पूरा बचपन और युवावय पढ़ाई अमेरिका में हुई लेकिन भारत उसे खींच लाया
अमेरिका में पलीबढ़ीं गंगा नंदिनी को भारत का आध्यात्म और गहन प्रेम की अनुभूति ऐसी भायी कि वह यहीं आ गईं

एक युवा भारतीय अमेरिकी के रूप में भारत हमेशा मेरी पहचान का हिस्सा रहा. चाहे वह मेरी त्वचा का रंग हो या मेरे फीचर्स हों या फिर पूरे जोशोखरोश के साथ होली और दिवाली मनाने का उत्साह हो. उसी तरह चाहे आरती और हनुमान चालीसा के साथ सुबह की प्रार्थना हो या घर के पिछवाडे़ लगे केले के पेड़ की पूजा. सप्ताहांत पर मंदिर जाना, पारंपरिक परिधान और भोजन, आस्था और परंपरा से जुड़े गीत – मेरी संस्कृति हमेशा मेरे जीवन में गहराई से जुड़ी रही है. मुझे याद है कि समुद्र तट की हमारी यात्राओं में जब अन्य परिवार बिकनी और शॉर्ट्स पहनकर धूप सेंक रहे होते तब हम पूरे कपड़े पहनकर समुद्र तट के किनारे भारतीय मसालों और नमकीन के साथ पास्ता का आनंद ले रहे होते. कम से कम मैं तो यही करती थी.

मैं भारत के प्रति अपने पिता के प्रेम को इतनी दृढ़ता से महसूस कर सकती हूं. वह हमेशा अपनी मातृभूमि से जुड़ी खट्टी-मीठी यादों और भावनाओं के बारे में बहुत प्यार से बातें करते थे, अपने गांव और बनारस में कॉलेज के वर्षों को याद करते थे. वह हमेशा भारत की स्मृतियों में खो जाते थे.

हालांकि मुझे याद है कि मेरी सौतेली मां अक्सर मेरे बैग पैक करने और मुझे वापस भारत भेजने की धमकी देती थी, खासकर तब वह मुझसे नाराज होती थीं. वह खुद गोरखपुर की एक साधारण पृष्ठभूमि से थीं और उन्हें लगता था कि इससे बड़ी कोई सजा नहीं हो सकती. ये मेरे जीवन के दो छोर थे. एक ओर भारत में विस्तारित परिवार और उस देश की संजोई यादें और दूसरी ओर बेहतर जीवन और अमेरिकी सपने को जीने का अवसर.

भारत में महान प्रेम और अपनेपन को महसूस किया
एक छोटे बच्चे के रूप में मैं गर्मियों की छुट्टियों में भारत गई. मुझे याद है कि लखनऊ की सड़कों को पार करना जीवन और मृत्यु के निकट जैसा अनुभव लगा. जब हम टांडा में पिता के गांवों की यात्रा कर रहे थे तो सड़कों में गड्ढे थे, कोई प्राइवेसी नहीं.

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गंगा नंदिनी का बचपन और युवावय अमेरका में बीता. लेकिन पिता गोरखपुर से अमेरिका गए थे. लेकिन भारत हमेशा उन्हें आकर्षित करता था, लिहाजा एक दिन वह हमेशा के लिए यहीं आ गईं. (courtesy ganga nandini)

खैर तमाम मुश्किलों और धुंधली स्मृतियों के बाद भी भारत में मैने महान प्रेम, स्नेह और अपनेपन को जो महसूस किया, उसकी यादें भी अब भी अंदर रची बसी हैं. आपस में जुड़ाव की ये अनूठी भावना मैने अमेरिका में कभी नहीं देखी और ना ही महसूस की.

इस देश में परिवार का मूल तत्व गजब का
भारत में परिवार का मूल तत्व गजब का है. मुझे जल्द अहसास हुआ कि यहां हर किसी को परिवार बनाया जा सकता है. मुझे याद है कि जिस आदमी से हम ट्रेन में मिले, वह जल्द ही मेरा चाचा बन गया, क्योंकि मां ने उनसे हमारा सूटकेस सीट के नीचे करने में मदद के लिए कहा था. उसे भैया कहकर बुलाने लगी थीं.

भारत का प्यार बगैर शर्त और भरपूर
भारत में मैंने जो प्यार अनुभव किया, वह इतना निःशर्त और भरपूर था, जैसे आपकी अपनी मां प्यार दे रही हो. अमेरिका में प्यार की तुलना में इसे कभी भी विभाजित या कम नहीं किया जा सकता. मुझे लगता है कि मैं कभी इस पूर्णता की भावना को अमेरिका में महसूस नहीं किया, बेशक मैं वहां का राष्ट्रीय गान गाती थी लेकिन सही मायनों मैं कभी अमेरिकी जैसा जी ही नहीं पाई. फील नहीं कर पाई.

भारतीय किशोरों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है संतुलन
कॉलेज में जाते समय, मेरी सांस्कृतिक पहचान को समझना और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया, क्योंकि भारतीय अमेरिकी किशोरों, विशेष रूप से युवा महिलाओं ने कॉलेज और किशोर जीवन की वास्तविक वास्तविकताओं के साथ अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को भी संतुलित करने की कोशिश की.

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जब गंगा नंदिनी अमेरिका में कॉलेज में पढ़ने गईं तो पहली बार उन्हें अपनी जड़ों और भारतीय पहचान का बोध हुआ. एक गरी आध्यात्मिक चेतना महसूस होने लगी. (courtesy ganga nandini)

इस अंतर को पाटने की कोशिश करते हुए जब मैने अपनी पहचान को समझने की कोशिश की तो गहरा आध्यात्मिक अनुभव मिला,जिसने हमेशा के लिए मेरे दृष्टिकोण को बदल दिया. मुझे भारत की जो पहचान और समझ मिली वह अभिव्यक्ति और तर्कों से परे थी.

इसने मुझे ये समझने का मौका दिया कि हमारा देश कितना विशाल है, इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में कितनी महान क्षमता और शक्ति है.ये भूमि जनचेतना जागृति, प्रेम, सेवा और अपनेपन की ऊर्जा से इतनी भऱपूर है कि आपको एक अलग उदारता देती है. ज्ञान की तलाश करने वालों के लिए ये धरती वाकई अद्वितीय है.

ये देश स्वस्थ जीवन का तरीका जानता है
अमेरिका में एक ऑटोइम्यून बीमारी से पीड़ित होने और स्वास्थ्य को समग्रता में समझने के लिए संघर्ष करने के बाद, मैंने पाया कि भारत में स्वस्थ्य जीवन का एक संतुलित तरीका है. मैने स्वास्थ्य को समस्त सृष्टि से जुड़ा हुआ पाया. अमेरिका में वही बीमारी और निदान जिसे स्टेरॉयड से सुन्न कर दिया गया था. उसे भारत में “बस तनाव से बचें” और साथ में योग, शाकाहारी जीवन शैली और सेवा से जुडे़ इलाज से ठीक कर दिया गया.

भारत के पास अद्भुत सांस्कृतिक संपदा
भारत निश्चित रूप से किसी भी दृष्टि से परिपूर्ण नहीं है, लेकिन मां गंगा के पवित्र तट पर, ऋषिकेश जैसे तीर्थ स्थलों के लिए प्रसिद्ध शहर में रहकर, मुझे भारत को एक देश के रूप में देखने और समझने का मौका मिला. ये जीवन से भरपूर जगह है. मैं कह सकती हूं कि इस देश के पास जितनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संपदा है, उतनी किसी और के पास नहीं. यह प्रचुर धन ही है जो हर स्थिति में एक घर और हर संगति से एक परिवार बनता है.

गुरु की कृपा से ये देखने का मौका मिला
मेरे गुरु परम पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वतीजी के साथ रहने और सेवा करने की कृपा से, मुझे भारत की उस महान समृद्धि को देखने का ऐसा आनंद मिला कि मेरे जैसी शिक्षित, युवा को स्वेच्छा से संयुक्त राज्य अमेरिका के बजाय यहीं रहना बेहतर लगने लगा है. सेवा के इस जीवन ने मुझे इस पवित्र भूमि के सार में महान अंतर्दृष्टि दी है, ये हमें सभी के साथ मिलकर काम करने का न्योता देती है. ये उदारता की भूमि हैं.

भारतीय मूल्य किसी वैक्सीन की तरह
ऐसी दुनिया में जहां हम हालिया महामारी से त्रस्त हैं, अलगाव में रहने को मजबूर हैं. मृत्यु पास है ये सोचकर डरते हैं. ऐसे में भारतीय मूल्य वास्तव एकमात्र वैक्सीन हैं. योग का ज्ञान ही अमृत सरीखा है. माँ गंगा का जल ही एकमात्र आशा है. भात में हम ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस देश में हर युवा को वो अवसर मिले, जिनके वो हकदार हैं,

फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे मैं गहराई से आभार जैसा महसूस कराता है. इस पवित्र भूमि में हर बार जब आरती के बाद “जन गण मन” राष्ट्रगान गूंजता है, तो मैं गर्व से सीना चौड़ा करके खड़ी हो जाती हूं,जब भी मैं लंबी विदेश यात्रा के बाद भारत लौटती हूं तो इस भूमि को शाष्टांग प्रणाम करती हूं. महसूस होता वास्तव में मेरी आत्मा के लिए घर से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती, जो मैने यहां पाई.
(लेखिका अमेरिका में पैदा और बड़ी हुईं. केवल एक बार बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में भारत आई. इसके बाद 12 साल पहले ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन के प्रमुख स्वामी चिदानंद के आमंत्रण पर यहां आईं. तब से भारत में हीं हैं. परमार्थ निकेतन से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने कैलिफोर्निया बार्कले यूनिवर्सिटी से मॉलिक्यूलर सेल बॉयोलॉजी और सॉयक्लॉजी में डिग्री ली.)

Tags: America, Haridwar, Rishikesh, Spirituality, USA



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